खाट सभा और टाट सभा

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khatiya
कल शाम शर्मा जी के घर गया, तो वे माथे पर हाथ रखे ऐसे बैठे थे, जैसे सगी सास मर गयी हो। हर बार तो मेरे आने पर वे हंसते हुए मेरा स्वागत करते थे, पर आज उनमें कोई हलचल ही नहीं थी। भाभी जी भी घर पर नहीं थी। इसलिए मैंने रसोई से एक बोतल ठंडा पानी लाकर उनके ऊपर उड़ेल दिया। इससे वे चौंके और जाग्रत अवस्था में आ गये।
– क्या बात है वर्मा, ठंडा पानी क्यों डाल दिया ?
– शर्मा जी, आप तो ऐसे शांत बैठे थे, जैसे आंधी में गिरा हुआ कोई सूखा पेड़। मैं कई आपका शुभचिंतक हूं, तो मुझे चिन्ता होनी ही थी। आपके मायके और ससुराल में कोई समस्या हो तो मुझे बताइये।
– समस्या कुछ नहीं है वर्मा। बस ‘खाट सभा’ के समाचार से परेशान हूं। पहले ही कौर में मुंह मक्खियों से भर गया।
– शर्मा जी, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में खाप सभाओं की बात तो मैंने सुनी है, पर ये खाट सभा पहली बार सुन रहा हूं। क्या खाप सभा के विरोध में कोई नयी संस्था बनी है ?
– तुम तो निरे मूर्ख हो वर्मा।
– क्या करूं शर्मा जी, पिछले 40 साल से आपके साथ हूं। संगत का कुछ असर तो होता ही है।
– बेकार की बात मत करो। पिछले दिनों हमारे राहुल बाबा ने उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में एक खाट सभा की थी।
– हां, मैंने भी टी.वी. पर देखा था। राहुल बाबा मंच पर माइक हाथ में लेकर ऐसे घूम रहे थे, जैसे कोई गायक संगीत सभा में कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा हो।
– हां हां। तुम्हें तो उनका भाषण गीत-संगीत ही लगेगा; पर उन्होंने मजदूर और किसानों के हित में जो बातें कहीं, वे लोगों के दिल में बहुत गहरे तक उतर गयीं।
– ये तो तब पता लगेगा वर्मा जी, जब विधानसभा के चुनाव होंगे; लेकिन उसके कुछ परिणाम तो सभा के बाद ही दिख गये।
– वो क्या ?
– शर्मा जी, राहुल बाबा आपकी पार्टी के ‘आखिरी मुगल’ हैं। आपने भी तो टी.वी. पर देखा होगा कि सभा के बाद लोग खाटों पर कैसे टूट पड़े। किसी के हिस्से में एक खाट आयी, तो किसी के दो। जिसे पूरी खाट नहीं मिली, उसने बान, बांस या पाये ही समेट लिये। कुछ पायेदार नेताओं के समर्थक पाये लेकर ही एक-दूसरे पर पिल पड़े। बच्चों से खाट नहीं उठी, तो उन्होंने मूढ़ों पर ही हाथ साफ कर लिया।
– हां, देखा तो है।
– यानि लोगों का ध्यान राहुल बाबा के भाषण पर नहीं, दिल्ली से आयी नयी खाट और मूढ़ों पर था। सुना है खाट भेजने वाले ठेकेदार ने अगली पंचायतों में खाट देने से मना कर दिया है। बहुत नुकसान हो गया बेचारे का।
– बिल्कुल। सभा के आयोजकों को इस बात का जरा भी अनुमान नहीं था कि लोगों का नैतिक स्तर इतना गिर जाएगा।
– औरों का तो पता नहीं, पर उस प्रशांत किशोर को बिल्कुल नहीं था, जिसे कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ाने का ठेका दिया है।
– वर्मा जी, मुझे तो लगता है ये प्रशांत किशोर कांग्रेस की लुटिया डुबो कर मानेगा। इसे जमीनी हकीकत का कुछ पता नहीं है।
– शर्मा जी, लुटिया है कहां जो डूबेगी; पर इतना जरूर है कि ये उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की खटिया जरूर खड़ी कर देगा।
– लेकिन वर्मा, मेरी समझ में ये नहीं आया कि लोगों ने सभा खत्म होते ही खटिया क्यों लूट ली ?
– शर्मा जी, ये तो हर आदमी जानता है कि उ.प्र. में कांग्रेस का न कोई वर्तमान है और न भविष्य। हां उसका भूत जरूर है। वह राज्य में चौथे नंबर पर है और वहीं रहेगी। राहुल बाबा जो सपने परोस रहे हैं, वे इस जन्म में तो सच होंगे नहीं। ऐसे में जो सच सामने है, उसे ही समेट लेना ठीक है।
– मैं समझा नहीं.. ?
– मतलब ये कि राहुल बाबा का भाषण झूठे वायदों का पुलिंदा है, जबकि खाट और मूढ़े सच हैं। उ.प्र. सूर, कबीर और तुलसी जैसे श्रेष्ठ संतों की भूमि है, जिन्होंने कहा है कि झूठ के पीछे भागने की बजाय सच को पकड़ना चाहिए। इसलिए लोगों ने राहुल बाबा के जाते ही सच को पकड़ लिया। पता नहीं, फिर मौका मिले न मिले। ‘भागते भूत की लंगोटी’ ही भली।
– लेकिन ये लूटपाट अच्छी बात नहीं है। जरूर यह शरारत कांग्रेस के विरोधियों ने की होगी।
– वर्मा जी, लूटपाट तो कांग्रेस के नेताओं ने आजादी के बाद से शुरू कर दी थी। पचास साल के उसके राज में यह बीमारी नीचे तक पहुंच गयी है। इसलिए मेरा सुझाव है कि राहुल बाबा अपनी यात्रा के अगले चरण में ‘खाट सभा’ के बदले ‘टाट सभा’ करें। लुटने के बाद भी वह काफी सस्ती पड़ेगी।
कहते हैं कि सच बहुत गरिष्ठ होता है। हर कोई उसे हजम नहीं कर सकता। शर्मा जी के साथ भी ऐसा ही हुआ। एक लम्बी जम्हाई लेकर उन्होंने कुर्सी से पीठ टिकाई और एक मूढ़े पर पैर रखकर फिर मूर्तिमान हो गये।

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