पंड़ितजी के हाथ में खीर-पूड़ी और हलवा….?

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                                        प्रभुनाथ शुक्ल

अपनी यूपी में इन दिनों चोटीवाले पंड़ितजी का जलवा है। हर कोई उन्हें खीर-पूड़ी और हलवा खिलाना चाहता है। पांच साल बेचारे खूब गाली खाए और हासिए पर रहे। लेकिन अब चुनाव करीब है तो चोटीवालों की पूछ बढ़ गईं है। वैसे भी चुनाव और बारिश के मौसम में समानता होती है। बारिश के मौसम में नदियों में खूब उफान होता है, लेकिन सूखे में कोई उन्हें कोई पूछता नहीं। यहीं हाल अपने पंड़ितजी का है। अब चुनाव है तो बुआ और बबुआ एकदम हाथ धोकर पीछे पड़े हैं। पंड़ितजी को लुभाने के लिए बुआजी ने अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत भी करवा चुकी है। इधर बबुआ जी भगवान परशुराम को जरुरत से अधिक भजने लगे हैं। अब पंड़ित जी के दोनों हाथ में लड्डू है। 2022 में अब वह बाबा की जय बोलते हैं या हाथी के लिए शंख बजाते हैं या फिर साईकिल चलाते हैं यह देखना होगा…।

             अब नहीं चटकती पंड़ितजी कि चट्टी 

यूपी वाले पंड़ित जी कि कभी दिल्ली और दारुलसफा में तूती बोलती थी। चोटीवालों पंड़ित जी के चट्टी और जनेऊ की धमक चौतरफा थी, लेकिन दूसरों की गोल कराने वाले बेचारे आज खुद गोल से बाहर हैं। यूपी में जबसे कांग्रेस का सफाया हुआ ब्राह्मणों की राजनीति खत्म हो गईं। पंड़ित नारायणदत्त तिवारी के बाद कोई ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना। राज्य में जाति की बात करें तो आज कोई दमदार ब्राह्मण चेहरा नहीं दिखता। राज्य में कांग्रेस के गायब होते ही ब्राह्मणों का अस्तित्व भी खत्म सा हो गया। बदले राजनितिक हालात में दलित और पिछड़ों की सियासत करने वालों के पीछे भागना इनकी मज़बूरी बन गईं है।

      ब्राह्मण किसके लिए बजाएगा शंख…?

राज्य में 12 से 15 फीसदी ब्राह्मण हैं। 2017 में भगवा का झंडा उठाया तो 80 फीसदी वोट कर भजपा की झोली में 46 ब्राह्मणों को देकर बाबा की जयजय कार करवाई। 2012 में समाजवादी पार्टी को 21 ब्राह्मण विधायक मिले जबकि जबकि 2007 में बसपा की सोशल इंजीनियरिंग कामयाब हुई और बहनजी यूपी की सत्ता पर काबिज हुई। उस दौरान बसपा में 41 ब्राह्मण हाथी पर सवार होकर विधायक बने। बसपा ने कभी यह नारा भी दिया था ‘तिलक, तराजू और तलवार…. लेकिन इन्हीं अगड़े समाज ने विशेष रुप से ब्राह्मणों ने उसे सत्ता सौंपी। आज फिर ब्राह्मणों की जरुरत बुआ को है। लेकिन सवाल उठता है कि इस बार वह कहाँ जाएगा। बाबा राज में ब्राह्मण कितना खुश यह तो वहीं जानता है। बदले सियासी हाल में वह साईकिल चलाएगा या फिर शंख बजाकर हाथी पर चढ़ेगा। लेकिन गुंडों कि छाती पर तो बाबा ने वार किया है…फिर क्या वह हाथी पर चढ़ेगा…?

         दिल्ली वालों के दिल में बसती है यूपी

यूपी की सत्ता से बाबा को बेदखल करना इतना आसान नहीं है। क्योंकि दिल्ली वाले फ़क़ीर की निगाह पुरी तरह यूपी पर है। लिहाजा यूपी अब दिल्ली वालों के दिल में बसने लगी है। साम-दाम,दंड और भय, भेद की राजनीति चालू आहे। दिल्ली ने यूपी का चुनाव देखते हुए आरक्षण का चुनावी जिंद एकाबार फिर बाहर निकल आया है। कभी ब्राह्मणों की नाराजगी के बाद संसद में दलित एक्ट लाया गया। अब पिछड़ों और दलितों को फिर आरक्षण। जबकि पंड़ितजी को 10 फिसदी का झुनझुना, उसमें भी सभी अगड़ी जातियां शामिल हैं। अगड़ी जातियों के न चाहते हुए भी आरक्षण लागू किया गया लेकिन अगड़ी जाति के एक भी सांसद और विधायक ने इसका विरोध नहीं किया। भाजपा के चाणक्य यानी अमितशाह के दिल में यूपी बसती है। वह जब यूपी में आते हैं तो उन्हें लगता है कि घर में आए हैं। पिछले दिनों विंध्याचल कॉरिडोर के उदघाटन के दौरान उन्होंने यह बात कहीं। साहब चुनावी मौसम है सो सबको साधना पड़ता है। लेकिन जब लोग ऑक्सीजन से मर रहे थे तो दिल से दूर थी… अब तो कोई ऑक्सीजन से मरा ही नहीं। चुनाव आया तो यूपी घर जैसा लगने लगा।

  यूपी में दो समधियों का सियासी आलिंगन 

बंगाल जीत के बाद दीदी यूपी में भी खेला होबै का खेल करना चाहती हैं, लेकिन यह डगर बेहद मुश्किल लगती है।इस डगर को आसान करने के लिए अर्से बाद दो समधी भी गले मिले हैं। हालांकि बिहार की राजनीति के दिग्गज लालू यादव और यूपी में अपनी सियासी अहमियत रखने वाले मुलायम सिंह की मुलाक़ात औपचारिक बताई गईं है, लेकिन इसके सियासी मायने भी हैं, जिसे लालू यादव ने साफ कर दिया है। अब दोनों समधियों का सियासी आलिंगन कितना गुल खिलाएगा यह तो वक्त बताएगा। लेकिन बगैर हाथ के फिलहाल साथ बनता दिखता नहीं।क्योंकि अब दोनों दिग्गजों के राजनैतिक फैसले तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव के हाथ में है। बुआ और बबुआ फिलहाल एक मंच पर आने से रहे। उधर ओवैसी भगवा वाले बाबाजी का मार्ग एकदम साफ करने में लगे हैं।

              हाथ के साथ के बगैर नहीं बनेगी बात

बिहार और लालू प्रसाद यादव के सियासी उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस यानी हाथ के बगैर कोई राजनैतिक मोर्चा सफल नहीं हो सकता। इसके लिए शरद पवार, दीदी और अखिलेश को अपना ईगो छोड़ना पड़ेगा। यानी टीएममसी, एनसीपी और एसपी इस बात को गंभीरता से समझे वरना यूपी में खेला होना संभव नहीं है। बात तो सच है। क्योंकि क्षेत्रीय स्तर पर कांग्रेस भले कमजोर हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसका सीधा मुकाबला भाजपा से है। तक़रीबन 200 सीटों पर उसका भाजपा से सीधा मुकाबला है। अब तो आप बूझ गए होंगे न कि हाथ का साथ कितना जरूरी है। उधर ओवैसी जीतनी मजबूती से मुस्लिममतों का ध्रुवीकरण करेंगे। भाजपा को उतना लाभ होगा। फिर बुआ को सीबीआई का भी डर है लिहाजा यूपी में वह एकमंच पर बबुआ के साथ नहीं दिख सकती हैं। उस हालात में दीदी का खेला कैसे होबै…? क्योंकि 2017 में भाजपा को तक़रीबन 40 फीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को छह, सपा और बसपा को तक़रीबन 22-22 फिसदी वोट मिले। फिर ब्राह्मणों के भरोसे नैया पार लगनी आसान नहीं दिखती। 

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