नस्लवाद की आड़ में चल रहा है खूनी खेल

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प्रवासी भारतीयों के साथ भेदभाव आज विदेशों में आम बात हो गई है। कुछ दिनों पहले शाहरुख खान के साथ अमेरिका में सिर्फ मुसलमान होने के कारण भेदभाव किया गया था। उनके सारे कपड़े जाँच और सुरक्षा के नाम पर उतरवा लिये गये थे। बिट्रेन में भी अक्सर नस्लवाद की घटनायें घटती रहती हैं। कुछ अरसा पहले वहाँ भी भारतीयों पर जानलेवा हमला किया गया था। हालत इतने खराब हैं कि अब उनकी जान की कीमत विदेशों में कौड़ियों के भाव रह गये हैं। न्यूजीलैंड में भी 31 जनवरी को एक टैक्सी ड्राइवर की हत्या की गई थी।

आजकल आस्ट्रेलिया में भारतीयों को न्याय नहीं मिल पा रहा है। पहले तो उनके साथ सिर्फ दुर्व्‍यवहार किया जा रहा था, किन्तु अब तो आये दिन उनकी हत्या की जा रही है और उनकी हत्या के सिलसिले को रोकने की बजाए वहाँ की सरकार उनकी हत्याओं को महज दुर्घटना बता रही है।

हाल ही में नामचीन स्पिनर हरभजन सिंह के दूर के रिश्‍तेदार उपकार सिंह की हत्या कुछ दिनों से चल रहे इसी सिलसिले की एक कड़ी थी, पर विडम्बना यह है कि आस्ट्रेलिया की सरकार उपकार सिंह की मौत को हत्या के जगह दुर्घटना बता रही है। वहाँ की मीडिया भी इस खेल में पूरी शिद्दत के साथ शामिल है। मेलबार्न में रजत गर्ग की मौत भी दुर्घटना की बजाए हत्या थी, पर वहाँ की पुलिस को भारत की दलील से जरा सा भी इत्तिाफाक नहीं है।

आस्ट्रेलिया जाने के पीछे भारतीयों का मूल उद्देश्‍य है वहाँ रहने के लिए पात्रता हासिल करना। पात्रता की प्रमुख शर्त है 2 साल का कोर्स और वहाँ रहने के लिए एक साधारण सी पात्रता परीक्षा पास करना। भारतीयों के लिए पात्रता प्राप्त करना हमेशा से मुफीद रहा है। वहाँ रहने की पात्रता हासिल करने के बाद वे वहाँ किसी भी तरह का व्यवसाय शुरु कर सकते हैं, जिसको वे भारत में शर्मों-हया और ताना की वजह से शायद ही कर सकें।

ऐसा नहीं है कि आस्ट्रेलिया की सरकार को भारतीयों के वहाँ रहने या फिर शिक्षा पाप्त करने से कोई आय या दूसरे तरह के फायदे नहीं हो रहे हैं। आस्ट्रेलिया के अधिकारियों के कथनानुसार वे भारतीयों से प्रतिवर्ष 16 बिलियन डॉलर रुपये फीस के रुप में कमा रहे हैं।

भारत में विदेश जाकर शिक्षा ग्रहण करना, व्यवसाय करना या नौकरी करना आज भी गर्व की बात समझा जाता है। हमारे समाज में प्रवासी भारतीयों को खास दर्जा हासिल है। वे आदर और श्रद्धा के पात्र समझे जाते हैं। इसी कारण आज हमारे युवा हेयर कटिंग तक का कोर्स करने विदेश चले जाते हैं। विदेश जाने की ऐसी ललक को देखकर ही विदेश मंत्री श्री एस एम कृष्णा ने छात्रों को सोच-समझ करके विदेश जाने की सलाह दी। श्री कृष्णा के अनुसार टुच्चे कोर्स को करने के लिए अपनी जान देना महज बेवकूफी है।

युवाओं में अधिकांश छात्र 20 साल के हैं। ये छात्र किसी भी कीमत पर विदेश जाना चाहते हैं। अब धीरे-धीरे छात्रों की पहली पंसद आस्ट्रेलिया बनती चली जा रही है। पिछले साल यानि केवल 2009 में ही तकरीबन 1,20,000 छात्रों ने आस्ट्रेलिया के विभिन्न संस्थानों में अपना नामांकन करवाया था। ज्ञातव्य है कि 2001 में विदेशी छात्रों को आकर्षित करने में चीन सबसे आगे था। उस बरस 26844 छात्रों ने वहाँ अपना नामांकन करवाया था, जबकि उसी वर्ष आस्ट्रेलिया में केवल 10461 छात्रों ने अपना दाखिला करवाया था, पर यही ऑंकड़ा 2008 में बढ़कर 97035 हो गया। आज विदेशी छात्रों में भारतीय छात्रों का प्रतिशत आस्ट्रेलिया में 18 है, वहीं चीन में इसी संदर्भ में भारतीयों छात्रों का प्रतिशत 23.5 प्रतिशत है। हालांकि चीन अभी भी भारतीय छात्रों को आकर्षित करने में आगे है, किन्तु लगता है चीन का यह वर्चस्व जल्द ही खत्म होने वाला है, क्योंकि चीन की तुलना में आस्ट्रेलिया में रहना भारतीय ज्यादा पसंद करते हैं और फीस भी कमोबेश दोनों देशों में समान है।

नस्लवाद के विविध रुप हैं। विदेशों में काले और गोरों के बीच बरसों से संघर्ष का इतिहास रहा है। भारतीयों पर हमला बरसों से चल रहे इसी संघर्ष का एक हिस्सा है या फिर इसका कोई दूसरा कारण भी है। इस पहलू पर निश्चित रुप से गौर किया जाना चाहिए। पड़ताल से स्पष्ट है कि नस्लवाद को सिर्फ भारतीयों पर हो रहे हमलों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। आस्ट्रेलिया में भारतीयों की बढ़ती जनसंख्या से वहाँ के मूल निवासी खौफजदा हैं। उनको लगता है कि उनके रोजगार छीने जा रहे है। कहीं न कहीं असुरक्षा की भावना उनके मन में घर कर गई है। इस संदर्भ में महाराष्ट्र की तरह वहाँ के राजनीतिज्ञ नस्लवाद की आड़ में राजनीति नहीं कर रहे हैं, क्योंकि भारतीय उनके लिए सोने की अंडे देने वाली मुर्गी के समान हैं। फिर भी वहाँ की सरकार भारतीयों को सुरक्षा देने में असफल रही है।

आस्ट्रेलिया की सरकार की स्थिति महाराष्ट्र सरकार की तरह है, जो एक तरफ बिहारियों और यू पी वालों को भगाना भी नहीं चाहती है और इस मुद्वे को जिंदा भी रखना चाहती है। राजनीति की दुकान चलते रहना चाहिए। यही उनका मुख्य उद्देश्‍य है। शिव सेना और मनसे शाहरुख खान के मामले में भीगी बिल्ली बन ही चुकी है।

लब्बोलुबाव यह है कि आस्ट्रेलिया की सरकार निश्चित रुप से भारतीयों के जरिये प्राप्त आय से वंचित नहीं होना चाहती है, परन्तु साथ ही अपने मूल नागरिकों को भी नाराज नहीं करना चाहती है। निश्चित रुप से वहाँ की सरकार को जल्द से जल्द अपनी स्थिति को स्पष्ट करनी चाहिए।

-सतीश सिंह

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