हर्षवर्धन पाण्डे
“ दिल्ली में आम आदमी पार्टी का बढ़ता जनाधार भाजपा के लिए आगामी चुनावो के मद्देनजर जहाँ मुश्किलें खड़ी कर रहा था वहीँ पहली बार हमारी बोलती केजरीवाल की राजनीती ने बंद कर डाली जिसके चलते भाजपा को दिल्ली में बिसात बिछाने में असहजता महसूस हो रही थी | अब किरण पार्टी में नई उम्मीद बनकर आई हैं । सही समय पर हमारी पार्टी ने उनको आगे किया है”
भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में सुबह सुबह किरण बेदी के सतीश उपाध्याय के साथ लगे पोस्टरों को देखकर वहां खड़े पार्टी के कार्यकर्ता के मुह से भाजपा की नई उम्मीद किरण शब्द इस बात की गवाही देने के लिए काफी थे कि केजरीवाल से दिल्ली के चुनावी समर में लड़ाई भाजपा को बिना चेहरे के कितना भारी पड़ सकती थी । किरण बेदी के पार्टी में शामिल होते ही दिल्ली का भाजपा कार्यकर्ता जिस अंदाज में जागा है और बेदी ने 6 पी और मॉडल दिल्ली का जो फार्मूला अपने पहले सम्बोधन में ही गिनाया है उसने पहली बार राजनीती को एक सौ अस्सी से ज्यादा के कोण पर झुकने को मजबूर कर दिया है । क्युकि अभी तक मध्यम वर्ग के अलावे दिल्ली में गरीबो का एक बड़ा वर्ग केजरीवाल के समर्थन में ना केवल नारे लगा रहा था बल्कि बड़ी बिजली और पानी की कीमतों के खिलाफ अपनी आवाज फिर से उन्ही के नेतृत्व में बुलंद करता नजर आ रहा था । कम से कम अब किरण बेदी के आने के बाद आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली फतह करना इतना आसान तो नहीं लग रहा | चेहरे के अभाव में भाजपा ना केवल टिकटों आवंटन सही से कर पायी थी और ना ही दिल्ली की जनता तक अपना मैनिफेस्टो पहुँचा पायी थी |
तो क्या माना जाए पहली बार किरण बेदी के आने से दिल्ली में लड़ाई रोचक हो चली है और क्या पहली बार केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को उसी मुद्दे पर चुनौती मिलेगी जिसको पाक साफ़ बनाने को लेकर वह न केवल राजनीती के कीचड में कूदने की बात न केवल कहते रहे हैं बल्कि आम आदमी की सरकार बनाने का दम फिर से भरते नजर आते रहे हैं | दरअसल दिल्ली मे किरण बेदी को पार्टी में शामिल कर मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने एक बार फिर अपने को राजनीती का सबसे बड़ा चाणक्य साबित किया है | मोदी और शाह का यह दिल्ली की पिच पर खेला गया अब तक का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक है | हालंकि किरण बेदी की भाजपा से निकटता उसी समय जगजाहिर हो गई थी जब वह अन्ना का झंडा थामे रामलीला मैदान में मनमोहन सरकार को जन लोकपाल लाने के लिए घेर रही थी | इसी दौर में वह कॉमनवेल्थ खेलों में हुए गड़बड़झालों के खिलाफ पहली बार रामदेव के साथ सामने आती हैं । इसके बाद लोक सभा चुनावों से पूर्व उन्होंने मोदी को पी एम का उम्मीदवार बनाये जाने से पहले ही उन्हें इस पद के लिए सबसे योग्य उम्मीद वार करार दिया और ट्विटर में मोदी के समर्थन पर खूब पोस्ट डाले जिसके बाद से ही उनके और भाजपा के बीच नई जुगलबंदी और कदमताल होने के आसार दिखाई देने लगे थे | फिर लोक सभा चुनावो में उनको किसी सीट से प्रत्याशी बनाये जाने को लेकर भाजपा का हाई कमान उनके सीधे संपर्क में था लेकिन किरण ने हामी नहीं भरी जिसके चलते मामला ठन्डे बस्ते में चला गया और अब दिल्ली चुनावों की उलटी गिनती शुरू होने के बाद भाजपा उनको अपने पाले में लाने में कामयाब हो गयी है जिसके बाद दिल्ली का महासमर अब तक का सबसे रोचक मैच होने के आसार दिखाई देने लगे हैं | २ जी , आदर्श सोसाईटी , कामनवेल्थ घोटाला ,कर्नाटक की खदान में हुए घोटालों के बाद अन्ना आन्दोलन ही ऐसा जनांदोलन था जिसने पूरे देश को एक प्लेटफोर्म देने का काम किया | लोगो ने इस जनांदोलन से सीधा जुड़ाव महसूस किया शायद इसी के चलते सभी नए इस पर बढ़ चढकर भागीदारी की और इसमें सूत्रधार की भूमिका में केजरीवाल के साथ कोई खड़ा था तो वह कोई और नहीं बल्कि देश की पहली महिला आई पी एस किरण बेदी ही थी | अब अन्ना के इन दो चेलो के आमने सामने आने से दिल्ली का संग्राम रोचक बन गया है |
दिल्ली में पिछले साल हुए विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पहली बार शानदार प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया था | भाजपा बड़ी पार्टी के रूप में दिल्ली में जरुर उतरी लेकिन वह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पायी | वहीँ आम आदमी पार्टी कांग्रेस की मदद से सरकार बनाने में कामयाब हुई लेकिन उसकी 49 दिन तक ही सरकार चल सकी | जन लोकपाल के मसले पर केजरीवाल ने अपनी सरकार कुर्बान कर दी जिसके बाद से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया | इधर दिल्ली में इस साल चुनावी डुगडुगी बजने के बाद भाजपा के लिए सबसे बड़ी गले की हड्डी केजरीवाल की काट बन गयी क्युकि उसके पास केजरीवाल को टक्कर देने के लिए कोई दमदार चेहरा नहीं था जिसके चलते वह दिल्ली का गणित और मूड नहीं समझ पा रही थी | अब किरण बेदी के भाजपा में आने से जहाँ भाजपा के लिए दिल्ली का मैदान खुला खुला नजर आ रहा है वहीँ आम आदमी पार्टी की मुश्किलें भी बढ़नी तय हैं |
महिला सुरक्षा को बड़ा मुद्दा बना रही आप को अब किरण के आने से अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड सकता है क्युकि किरण बेदी के पुलिस अधिकारी के रूप में किये गए कार्यो से पूरा देश अच्छी तरह वाकिफ है | तिहाड़ में कैदियों के साथ जिस अंदाज में उन्होंने काम किया वह काबिले तारीफ है | साथ ही ईमानदार अधिकारी , प्रशासनिक अनुभव में वह केजरीवाल से इक्कीस ही बैठती हैं | पुलिस सेवा के समर्पण के बाद अब राजनीती के माध्यम से देश सेवा में समर्पण के उनके शुरुवाती भाषणों को राजनीती में अच्छे संकेत के तौर पर लिया जाना चाहिए | कम से कम कोई नेता तो है जो राजनीती में समर्पण और देश सेवा से इसे जोड़ रहा है नहीं तो अभी तक की राजनीती कॉरपरेट और अपना घर भरने का साधन ही बनी हुई थी जिसमे आम आदमी के सरोकार सपनो की तरह मर रहे थे |
अमित शाह और अरुण जेटली ने किरण को पार्टी में शामिल किया है उससे यह माना जाने लगा है दिल्ली में भंवर में फँसी भाजपा अब भंवर से बाहर निकल रही है | किरण बेदी क्या केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी यह अभी साफ़ नहीं है लेकिन किरण के साहस की दाद देखिये उन्होंने कहा है अगर पार्टी कहेगी तो वह बेशक नई दिल्ली से ही केजरीवाल के खिलाफ मैदान में उतरेंगी | हालंकि मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर अभी मुहर लगनी बाकी है लेकिन अमित शाह और किरण बेदी का हौंसला और आत्मविश्वास इस बात की गवाही दे ही रहा है दिल्ली में भाजपा का मुख्यमंत्री पद का चेहरा वह ही रहेगी | खुद किरण बेदी ने कहा है वह मोदी के करिश्माई नेतृत्व से कायल हुई हैं और उनके ड्रीम प्रोजेक्टों को पूरा करने में भागीदार बनना चाहती हैं |
इस मास्टर स्ट्रोक के बाद आम आदमी पार्टी के उन समर्थको के मुह पर ताला जड़ गया है जो दिल्ली में केजरीवाल का विकल्प किसी नेता को बताने से बाज नहीं आते थे | आप ने तो अपने तमाम सर्वे में केजरीवाल के खिलाफ जगदीश मुखी को भाजपा का सी एम पद का उम्मीद वार ट्रांजिट विज्ञापनों और इश्तेहारो में गली गली में घोषित भी कर दिया था | हालाँकि किरण की सी एम दावेदारी का मसला भी संसदीय बोर्ड के सामने ही तय होगा लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद हर किसी नेता ने जिस अंदाज में किरण की तारीफों के पुल बांधे हैं उससे यह साफ़ है दिल्ली का भाजपा का बड़ा चेहरा किरण बेदी ही रहेंगी | अब पार्टी के नीति नियंता उनके चुनाव प्रचार की आक्रामक रणनीति अमित शाह के साथ बनाने में जुटे हुए है | यह तय किया जा रहा है कि 20 जनवरी से किरण बेदी की हर विधान सभा सीट में कम से कम 2 से 3 सभाएं कराई जाए जिससे कि भाजपा के पक्ष में दिल्ली में लहर बनाई जा सके |
किरण के हाथ चुनाव प्रचार की कमान रहने से महिलाओ का एक बड़ा तबका भाजपा के साथ लामबंद होने की संभावना से भी अब इनकार नही किया जा सकता क्युकि बड़े पैमाने पर आम आदमी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर वोटरों को लुभाने में जुटी हुई थी और महिलाओं के खिलाफ दिल्ली में बड़े अपराधो को आप ने इस बार बड़ा मुद्दा भी बनाया है | जाहिर है किरण के आने के बाद आम आदमी के वोट बैंक में सेंधमारी शुरू हो गयी है | ईमानदार चेहरों की लड़ाई में इस बार दिल्ली का महासमर घिर गया है | भाजपा के लिए तो दिल्ली में सरकार बनाना नाको चने चबाने जैसा बन गया है क्युकि प्रधान मंत्री मोदी की प्रतिष्ठा अब सीधे दिल्ली से जुड़ गयी है | 49 दिन की आप सरकार गिरने और लोक सभा चुनाव के बाद भले ही केजरीवाल की रफ़्तार थम गयी हो लेकिन दिल्ली में उनका बड़ा जनाधार आज भी है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता | झुग्गी झोपड़ी से लेकर ऑटो चालक और रेहड़ी लगाने वालो से लेकर महिलाओ के एक बड़े तबके को केजरीवाल करिश्माई तुर्क नजर आता है जिससे उन्हें आज भी बड़ी उम्मीद हैं |
वहीँ दिल्ली की नई किस्सागोई में यह सवाल भी भाजपा के सामने खड़ा हो गया है अगर दिल्ली में दूसरी बार विपक्ष में बैठने की नौबत आई तो झटके में आप भाजपा की राजनीतिक जमीन पर पूरे देश में बड़ी सेंध लगा सकती है | ऐसे हालातों में भाजपा को भी यू पी बिहार के आने वाले विधान सभा चुनाव में बड़ा नुकसान झेलने को मजबूर होना पड सकता है | | आतंरिक सर्वे में भी पार्टी की हालत केजरीवाल नाम के भूत ने खराब की हुई थी शायद इसका बड़ा कारण अरविन्द केजरीवाल के कद का कोई नेता दिल्ली में ना होना था | वहीँ भाजपा भी चुनाव को लेकर अपने पत्ते फेंटने की स्थिति में नहीं थी | उसके तुरूप के इक्के हर्षवर्धन केंद्र की नमो सरकार में मंत्री हैं और जगदीश मुखी से लेकर आरती शर्मा और विजय गोयल से लेकर विजेंदर गुप्ता आउटडेटेड हो चुके थे और इनको आगे कर भाजपा दिल्ली में कमल खिलाने में नाकाम रह सकती थी क्योंकि उसे मालूम था कि दिल्ली की जनता को उसने जो भरोसा दिलाया था वह उसे पूरा नहीं कर पाई है। भाजपा ने जिस महंगाई को मुद्दा बनाकर चुनाव लडा उसे वह दूर नहीं कर पाई साथ ही सबसे बड़ा दल होने के बाद भी वह सरकार बनाने से पीछे हट गयी और आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर 49 दिनों की सरकार चलायी जिसके चलते भाजपा की दिल्ली में कई सर्वे में लोकप्रियता में भारी गिरावट हाल के दिनों में देखने को मिली है | वहीँ समाज के मजदूर और पिछड़े तबके के साथ ही मध्यम वर्ग और युवाओ का एक बड़ा वोट बैंक आप के साथ आज भी जुड़ा है | दिल्ली भाजपा की असल परेशानी यहीं से शुरू होती है और यही वह दुखती रग रही जो भाजपा की परेशानी को ना केवल बढाने का काम कर रही थी बल्कि भावी सरकार के मुखिया के तौर पर जगदीश मुखी को आगे करने का दाव आम आदमी पार्टी के जरिये ऑटो में लगे पोस्टरों से चल रही थी |
दिल्ली में हाल के दिनों में बिजली पानी से लेकर पेट्रोल डीजल और सीएनजी के दामो में उतार चदाव देखने को मिला है | नरेंद्र मोदी से चुनाव निपटने के बाद जनता की अपेक्षाएं इस कदर बड़ी हुई है आने वाले पांच बरस में उनके पूरे होने पर सभी की नजरें लगी हुई हैं | वैसे उनके अब तक के कार्यकाल में आम आदमी ही सबसे ज्यादा निराश हुआ है और महंगाई की सबसे अधिक मार इसी तबके ने झेली है | जिस नरेंद्र मोदी सरकार ने कांग्रेस मुक्त भारत का सपना लोक सभा चुनावो के चुनाव प्रचार के दौरान दिखाया था वह सरकार भी अब कांग्रेस के पग चिन्हों पर चलती दिखाई दे रही है | बीमा और ऍफ़ डी आई सरीखे मसलो पर कभी कांग्रेस को घेरने वाली भाजपा आज सत्ता में आने के बाद अब इन सबको लागू करने का मन बना चुकी है तो स्थितियों को बखूबी समझा जा सकता है | महंगाई लगातार बढ़ रही हैं लेकिन सरकार इस पर चुप्पी नहीं तोड़ रही | | लव जेहाद , हिन्दू राष्ट्रवाद, घर वापसी जैसे मसले उछालकर उसके नेता खुद मोदी की छवि पर बट्टा लगाने पर तुले हैं । कभी विपक्ष में रहने पर भाजपा ने सत्ता में आने पर 30 फीसदी की सब्सिडी और बिजली पर 700 करोड़ की सब्सिडी देने का वादा किया था जिससे उन्होंने आज दिल्ली में उन्होेने पल्ला झाड लिया है | बेशक मोदी को आगे कर भाजपा केंद्र का ताज अपने नाम कर सकती है लेकिन मोदी को भी इस बात को समझना जरुरी होगा कि लोक सभा चुनाव और राज्यों के विधान सभा चुनावों में जनता का मूड अलग अलग होता है जिसके ट्रेंड को हम हाल के कुछ वर्षो से देश में बखूबी देख भी रहे हैं |
वहीँ आम आदमी पार्टी का मनोबल अभी दिल्ली में काफी ऊंचा है जिसे वह भुनाना भी चाहती है| देश में केजरीवाल का जादू भले ही ना चला हो लेकिन दिल्ली में आज भी केजरीवाल सब पर भारी पड रहे हैं और शायद इसकी सबसे बड़ी वजह दिल्ली में उनके साथ जुडा मजबूत जमीनी संगठन है | इस बात को अब भाजपा भी मान चुकी है दिल्ली के दंगल में अब उसकी सीधे लड़ाई किसी से अगर है तो वह आम आदमी पार्टी ही है । दिल्ली की गद्दी छोड़कर लोक सभा चुनावो में जल्द कूदने को अपनी भारी भूल बता चुके केजरीवाल इस बात को समझ रहे हैं आम आदमी के वोटर के साथ वह अपनी इस भावनात्मक अपील के साथ फिर से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं वहीँ जनता भी केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद छोड़ने को अभी भूली नहीं है। महंगाई पर भाजपा की विफलता , बिजली पानी की बड़ी कीमतों से दिल्ली में अगर कोई सबसे ज्यादा लाभ लेने की स्थिति में आज है तो वह आम आदमी पार्टी ही है | कांग्रेस के पास शीला दीक्षित का विकल्प नहीं है और वह वैसे ही वह कई राज्यों में ढलान पर है | वहीँ भाजपा में केजरी की काट के लिए कोई चेहरा नहीं था जो भाजपा को अच्छी सीटें दिल्ली में दिला सके | किरन बेदी का नाम अब भाजपा की भावी सी एम के रूप में जब एक्सपोज हो गया है और उन्होंने खुद दिल्ली को लेकर अपना माडल लोगो के सामने पेश किया है उससे दिल्ली की लडाई रोचक हो चली है | वैसे इस सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता दिल्ली पर आप की धार बेअसर करने के लिए आने वाले दिनों में किरण को आगे करने का भाजपा का यह मास्टर स्ट्रोक आप के खेमे में बड़ी खलबली मचा सकता है | किरण बेदी को प्रोजेक्ट कर भाजपा ने यह सन्देश साफ़ दे दिया है केजरीवाल की पाक साफ़ राजनीती को टक्कर उसी शुचिता और ईमानदारी से ही दी जा सकती है जिसकी दुहाई वह पार्टी बनाने के बाद से देते आये हैं शायद यही वजह है दीवानों की दिल्ली में इस बार की लडाई बिजली पानी महिला सुरक्षा सरीखे मुद्दों और ईमानदार प्यादों के आसरे ही लड़ी जा रही है जिसके केंद्र में आम आदमी ही है | पीएम मोदी भी अपने को दिल्ली के इस मैच से अलग रख रहे हैं क्युकि इस मैच में अगर भाजपा की जीत हुई तो किरण बेदी की ताजपोशी तय है अगर भाजपा दिल्ली में कमल खिलाने में नाकामयाब रहती है तो इससे मोदी की छवि पर ग्रहण नहीं लगेगा । वैसे भी अब दिल्ली की लड़ाई भाजपा किरण बेदी के जरिए लड़ रही है और वही केजरीवाल के खिलाफ आमने सामने हैं । अबकी बार इस राजनीती के केंद्र में कुछ नहीं है तो सिर्फ जनलोकपाल |
यह सही है की किरण बेदी को भाजपा मैं शामिल कराकर अमितजी और जेटलीजी ने मास्टर स्ट्रोक नहीं बल्कि बाउंसर फेंका है. किन्तु एक बात उल्लेखनीय है की केजरीवाल और किरणजी मूलतः अधिकारी वर्ग से आते हैं. केजरीवाल स्वयं को अराजकतावादी कहते हैं ,और किरण बेदी एक अनुशासन प्रिय हैं। राजनीती मैं अधिकारी किस्मके व्यक्ति कठिनाइ से कार्यकर्ताओं को समंजित करते हैं. यदि केजरीवाल असफल हुए तो उन्हें तो खोना कुछ नहीं किन्तु भाजपा को बड़ा नुकसान होगा ,और बिहार तथा उत्तर प्रदेश मे कठिनाई होगी. हालांकि शशिभूषण सरीखे वरिष्ठ तम नेता ने मास्टर स्ट्रोक की बात कही है. देखते हैं आने वाले दिन क्या कहते हैं?