मानव मन की गहराइयों को थाह लेना सरल नहीं होता। नानाप्रकार की अभिलाषाओं से भरा मन जब अत्यन्त प्रफुल्लित होता है तब आदमी विविध कार्यकलापों से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करता है, अपनी उत्कंठाओं की प्यास बुझाता है । ऐसा हीं एक उद्यम है -पतंगबाजी। भारतवर्ष में पतंगबाजी का शौक लोगों में किस कदर छाया है,, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग अवसरों पर पतंगबाजी का आयोजन एक प्रतिस्पर्धा के रूप में किया जाता है । इनमें से कई प्रतियोगिताएं तो विश्व स्तरपर ख्यातिप्राप्त हैं।
जनवरी -फ़रवरी, अप्रैल -मई , जुलाई-अगस्त ये कुछ ऐसे महीने हैं जब त्योहारों की आड़ में देश का कोई न कोई हिस्सा पतंगबाजी में डूबा होता है । बरसात के इस मौसम में राजधानी दिल्ली के बाज़ार रंग-बिरंगे पतंगों से पटा पडा है । शाम होते हीं हर उम्र के लोग बच्चों से लेकर बूढे तक अपनी -अपनी छतों पर पतंगों से कलाबाजी करते नज़र आते हैं । नीला आसमान पतंगों से यूँ ढका होता है मानो बरसात से बचने के लिए हर किसी ने छतरी लगा रखी हो । दिल्ली जैसे व्यस्त शहर में लोगों को कुछ समय अपने आनंद के लिए बिताते देखना काफ़ी सुखद अहसास देता है । लाख उपभोक्तावाद आए अथवा भूमंडलीकरण हो जाए या पश्छिमी संस्कृति का बोलबाला हो हमारी जीवन शैली बिल्कुल ख़त्म नहीं होने वाली है । हम परिवर्तन से डरने वालों में से नहीं हैं बल्कि उसे स्वीकारने में विश्वास करते हैं । यहाँ कि विविधतापूर्ण संस्कृति की छाप पतंगों पर भी उकेरी होती है । एकरंगीय और बहुरंगीय कागजों से पतंग कई आकृतियों में बनाया जाता है । मसलन , चौकोर , मानवाकृति , पशु-पक्षी , चाँद -तारे , दैवीय चिन्हों आदि । लोगों के कौतुक क्रीडा के लिए प्रयुक्त होने वाला पतंग महज मस्ती का साधन नहीं रह गया है । आज पतंग एक समृद्ध कुटीर उद्योग के रूप में हजारों को रोजगार दे रहा है । बरेली , रूहेलखंड जैसे क्षेत्र पतंग और मांझे (डोर) बनाने के लिए देश भर में प्रख्यात है ।