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कितने ही दर्द सर्द मिले ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
कितने ही दर्द सर्द मिले, सुरमयी दुनियाँ; उर में थीं कितनी व्याधि रखी, विरहिन बुधिया ! सुधियों की बरातों में बही, ध्यान कब रही; ज्ञानों की गरिमा उलझे-सुलझे, गूढ़ मति गही ! सामान्य सरोजों की भाँति, खिल कभी सकी; किलकारी बालपन की पुन:, पक के वो तकी ! तत्काल काल…