कितने कल्पों से संग रहा!

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कितने कल्पों से संग रहा,
कितने जीवन ग्रह छुड़वाया;
रिश्ते नाते कितने सहसा,
मोड़ा तोड़ा छोड़ा जोड़ा!

परिवार सखा जीवन साथी,
वह बना रहा सब में साक्षी;
हर राही से वह मिलवाया,
हर साथी सोम सुधा लाया!

सब छूटे टूटे या रूठे,
कुछ ही बँध पाए प्रभु खूँटे;
माधुर्य मनोहर उनका था,
अपनापन उनसे लगता था!

हर कोई कहाँ ढ़िंग रह पाता,
संस्कार अलग सबका होता;
मिलना औरों से भी होता,
तब ही उर सुर समझा जाता!

चल लो, गा लो, औ ध्यान करो,
हर मार्ग प्रकृति प्रभु छवि देखो;
जो लगा स्वयंभू का साया,
‘मधु’ हृद उसको था अपनाया!

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