ज्ञान गुनने से बहु गुणित हो जाता है

—विनय कुमार विनायक
ज्ञान गुनने से,
जीव गुणसूत्र ही बहुगुणित हो जाता है
स्व अंतर्मन में!
करो सद्गुणों का विकास अंतःकरण में
कि ज्ञान जीव के अंदर है!

ज्ञान धुनने से,
रुई की तरह ही आच्छादित हो जाता है
अपने रुह में!
करो ज्ञान का विस्तारण स्व आत्मन में
कि आत्मा ज्ञान का मंदिर है!

ज्ञान रुंधने से,
मिट्टी की तरह मूर्तिमान होने लगता है
अंतर भूमि में!
करो विज्ञान का अनुसंधान इस जीवन में
कि मानस ही ज्ञान का घर है!

ज्ञान मनन से,
मन के समान गतिमान होने लगता है
मानव मन में!
करो ज्ञान का चिंतन शांति के क्षण में
कि ज्ञान नहीं कहीं बाहर है!

ज्ञान तिरने से,
तीर की तरह मति तीक्ष्ण हो जाता है
तिर्यक योनि में!
करो तीक्ष्ण विचार अवचेतन मन में
कि ज्ञान समस्त जीवों के अंदर है!

ज्ञान मांजने से,
धातु की तरह चमत्कृत हो जाता है
अपने चित्त में!
करो चमत्कार चितवन में
कि चितवान करे जो वही गुरुवर है!

ज्ञान गुहारने से,
गुह्य तत्व दृश्यमान हो जाता है
सबके आनन में!
करो गीता सा गुहार भ्रम में
कि ग्रंथ-प्रवचन-कथन तो गुहार है!
—विनय कुमार विनायक
राम कृष्ण आश्रम हाई स्कूल रोड

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here