मृत्युंजय दीक्षित
जैसे – जैसे समय आगे बढ़ रहा है प्रदेश के सभी राजनैतिक दलों में मिशन- 2017 को लेकर बैचेनी बढ़ रही है।उत्तर प्रदेश में तीन विधानसभा उपचुनावों व गाजियाबाद मंे मेयर उपचुनावों के परिणाम आ गये हैं। इन चुनाव परिणामों से सबसे बड़ी राहत की संास भारतीय जनता पार्टी ले ली है उसके बाद कांग्रेस को देवबंद सीट जीतने में 28 वर्षों के बाद सफलता मिली है। समाजवादी पार्टी को केवल फैजाबाद में सपा के पूर्व दिवंगंत नेता मित्रसेन यादव की सीट को बचा पाने में सफलता हासिल हुई। इन उपचुनावों में बहुजन समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। यदि बसपा ने अपने उम्मीदवार उतारे होते तो कुछ सीमा तक मिशन 2017 की तस्वीर और साफ हुई होती। भारतीय जनतापाटठी्र ने उम्मीदवार ने देवबंद में भी कांटे की लड़ाई लड़ी और उसे अंतिम राउंड में पराजय का सामना करना पड़ा। यहां पर कांग्रेस ने अपने मुस्लिम उम्मीदवार के कारण 28 साल बाद सफलता हासिल की है। लेकिन इस एकमात्र विजय से यह कहना कि प्रदेश में कांग्रेस की वापसी हो रही है जल्दबाजी में किया गया विश्लेषण मात्र होगा।
राजनैतिक नजरिये से देखा जाये तो यह साफ पता चल रहा है कि इन चुनाव परिणामों से सबसे अधिक आहत और चेतावनी सत्तारूढ समाजवादी पार्टी को मिली है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के चेहरे पर चिंता की साफ लकीरें आसानी से पढ़ी जा सकती हैं। बहुजन समाजवादी पार्टी की अनुपस्थिति का लाभ भी कोई दल पूरी तरह से नहीं उठा सका है। जबकि एक बात यह भी साफ हो गयी हे कि आगामी चुनावों में असदुदीन उवैसी की आल इंइिया मजलिस ए इत्त्ेहादुल मुसलमीन ने मजबूती से चुनाव लड़कर यह जता दिया है कि आगामी विधानसभा चुनावों में वह समाजवादी पार्टी के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनकर उभरेगा। उपचुनावों से यह साफ संकेत मिल रहे हैं कि मुस्लिम मतदाता अब समाजवादी पार्टी के नहीं रहे। मिशन – 2017 में मुस्लिम मतदाताओं के पास वोट के लिए कई विकल्प रहेंगे। यदि चुनावों के पहले कोई बड़ा गठबंधन सामने नहीं आ पाता है तो इसका लाभ भारतीय जनता पार्टी और फिर सरकार विरोधी मत बसपा को भी मिल सकते हैं। कांग्रेस पार्टी के सामने अभी एक सबसे बड़ा संकट है कि प्रदेश में उसका संगठनात्मक ढंाचा ध्वस्त है। प्रदेश में सपा बसपा के सतर का कोई धारदार नेता नहीं हैं। कांग्रेस का परम्परागत वोटबैंक भी अब उसके पास नहीं रह गया है। हालांकि कांग्रेस पार्टी दलित और मुस्लिम सम्मेलनों के बहाने अपनी जमीन को तलाशने का काम रही है। इस काम में कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी जोरदार अभियान में लगे हुये हैं। लेकिन जिस प्रकार से जेएनयू प्रकरण में राहुल गांधी पाकिसतान समर्थक नारेबाजों के साथ खड़ें हो गये हैं उससे उनकी छवि को गहरा आघात लगा है। 18 फरवरी को लखनऊ में राहुल गांधी को काले झंडे दिखाये गये। इलाहाबाद हाइ्र्रकोर्ट में उनके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया है।
प्रदेश की राजनीति में आगामी चुनावों में बड़े राजनैतिक दलों के समक्ष एक बड़ा संकट होगा रालोद व नीतिश कुमार की अगुवाई मंे बनने वाला छोटे दलों का गठबंधन। माना जा रहा है कि फैजाबाद की बीकापुर सीट पर व मुजफ्फरनगर में भी रालोद जैसे छोटे दल ने बड़े दल को कांटे की टक्कर दी है। टी वी चैनलों में उप्र के चुनाव परिणाम और भविष्य को लेकर बड़ी लम्बी – चैड़ी बहसें हो रही हैं। इन बहसों में कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी अभी तक अपने नेता का चयन तक नहीं कर पा रही है। यह वह पार्टी है जिसके राज्य में 71 सांसद हैं । लेकिन भारतीय जनता पार्टी के पास पीएम मोदी और उनका विकास का मंत्र तो एकमात्र सहारा हे ही साथ ही साथ जातिवादी गणित को भी बिठाने का प्रयास किया जा रहा है। आगामी चुनावों तक राममंदिर का मुददा एक बार फिर गर्मा सकता है। भाजपा नेता यदाकदा यह बयान देकर मामला गर्म कर देते हैं कि मंदिर तो 2016 में ही बनेगा। रही बात अन्य मुददों की तो प्रदेश की राजनीति में मुददों की कोई कमी नहीं रह गयी है। समाजवादी पार्टी की सरकार ने इस बार भारी भरकम बजट पेश किया है। समाजवादी पार्टी विकास को मुददा बनाकर यादव – मुस्लिम तुष्टीकरण के सहारे अपनी आगे की रणनीति तय कर रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की यह दिली तमन्ना है कि आगामी विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया प्रारम्भ होने से पहले ही कम से कम लखनऊ मेट्रो का शुभारम्भ हो जाये। ऐसे ही चार वर्षो में ऐसे बहुत से कार्य समाजवादी सरकार ने कर दिये हैं जिनके आधार पर वह चुनावी मैदान मेें उतरेगी। लेकिन सरकार की बहुत सी ऐसी योजनायें जो अभी तक धरातल पर नहीं उतर सकी हैं। अगले आठ माह में समाजवादी सरकार वह सभी काम काफी तेजी से जमीनी धरातल पर उतारना चाह रही है।
रही बात मुददों की इस सरकार के सामने खड़ा विपक्ष सरकार व दल को बहुत से मुददों पर घेरेगा। समाजवादी सरकार के बहुत से फैसले न्यायपालिका में नहीं टिक सके। कानून व्यवस्था के हालात बहुत खराब है। महिलाओं व छात्राओं के साथ अमानवीय और दर्दनाक घटनाएं घट रही हैे। जातिविशेष को खुश रखने के लिए भर्ती नियमावलियों में काफी छूट दी जा रही है। सबसे बड़ा मुददा तो समाजवादी वंशवाद और उनका मुस्लिम तुष्टिकरण तो रहेगा ही सबसे बड़ी बात यह है कि समाजवादी पार्टी ने बसपा के भ्रष्टाचार को आधार मानकर पिछला चुनाव लड़ा था और कहा था कि मायावती सरकार के हर घोटालेबाज को जेल भेजा जायेगा लेकिन आज चार साल हो गये लेकिन तत्कालीन मायावती सरकार के किसी भी दोषी को आजतक जेल क्या सुनवाई तक नहीं हो पायी है। समाजवादी सरकार का एक वायदा तो पूरी तरह से अधूरा ही रह गया।जनता तो समाजवादी वंशवाद के भ्रष्टाचार से भी पीड़ित है औऱ पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के तानाशाही शासन को भीयाद करती है। बसपा नेत्री मायावती के शासन को प्रदेश की अफसरशाही अच्छी तरह से झेल चुकी है। इस बार जनता को सांपनाथ और नागनाथ संे छुटकारा पाना है। जनता की नजरों में जो दोनों से दूरी बनाकर रखेगा और मजबूत व ईमानदार चेहरा मैदान में उतारकर देगा जनता उसी को सत्ता सौपेंगी।