क्या भारत का मतदाता बहरूपियों को नयी दिल्ली की गद्दी सौंपने को तैयार है?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

इस समय देश की दिशा और दशा दोनों ही डगमगाने लगी हैं| सम्पूर्ण भारत में मंहगाई सुरसा की भांति विकराल रूप धारण करती जा रही है| जिसके प्रति केन्द्र सरकार तनिक भी चिन्तित नहीं दिखती है| परिणामस्वरूप जहॉं एक ओर गरीब मर रहा है| उसके लिये जीवनयापन भी मुश्किल हो गया है| किसान आत्महत्या कर रहे हैं| जबकि इसके विपरीत सम्पन्न और शासक वर्ग दिनोंदिन धनवान होकर विलासतपूर्ण जीवन जीने और उसका प्रदर्शन करने से भी नहीं चूक रहा है|

इन हालातों में जहॉं एक ओर युवा वर्ग निराशा और अवसाद से ग्रस्त होकर सृजन के बजाय विसृजन तथा आपराधिक कार्यों की ओर प्रवृत्त हो रहा है| जिसके चलते सड़क पर चलती औरतों के जैवर लूटे जा रहे हैं, चोरी-डकैतियॉं और एटीम मसीनों को चुराने तक की घटनाओं में भारत का भविष्य अर्थात् युवावर्ग लिप्त हो रहा है|

 

प्रतिपक्ष जिसका कार्य, सत्ताधारी दल की राजनैतिक असफलताओं, कमजोरियों और मनमानी नीतियों को उजागर करके देश और समाज के सामने लाना है, वह निचले दबके और अल्पसंख्यकों के प्रति पाले हुए स्थायी दुराग्रहों और धर्मान्धता की बीमारी से मुक्त नहीं हो पा रहा है| स्वयं प्रतिपक्षी पार्टी के लोग जो कभी ‘चाल, चरित्र और चेहरे’ की बात किया करते थे, खुद भी उसी प्रकार से सत्ताधारियों की भांति भ्रष्ट हैं और गिरगिट की भांति रंग बदल रहे हैं| जिस प्रकार से कांशीराम के अवसान के बाद मायावती ने ‘तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार’ के नारे को भूलकर ब्राह्मणों के साथ दिखावटी दोस्ती करके सत्ता पर काबिज हो चुकी हैं| यही नहीं माया ने अन्य सभी राजनैतिक दलों को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को भी मजबूर कर दिया है|

 

सत्ताधारियों और सत्ता से बेदखल लोगों का चरित्र कहॉं है, आम लोग समझ ही नहीं पाते हैं| जो पार्टी सिर्फ सोनिया तथा मनमोहन की पूँजीवादी नीतियों के इर्दगिर्द घूमती रही है, उस पार्टी को मिश्रित अर्थव्यवस्था के जन्मदाता जवाहर लाल नेहरू को अचानक अपने बैनरों पर छाप देना और इन्दिरा, लाल बहादुर, राजीव और नरसिम्हाराव को एक ओर कर देना अपने आप में अनेक भ्रम और भ्रान्तियों का शिकार होने का द्योतक है| इसका मतलब ये समझा जाये कि अब मनमोहन सिंह के दिन लद गये हैं? जबकि स्वयं यूपीए का कहना है कि दुनिया के तमाम देश आर्थिक संकट से त्रस्त हैं, लेकिन भारत में अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री होने के कारण ही भारत की अर्थव्यवस्था बच सकी है?

 

भारत की सबसे बड़ी दूसरी पार्टी भाजपा का रिमोट कंट्रोल संघ भी अब अपने आपको इस कदर नीचे गिरा चुका है कि जबरन अन्ना के पीछे लग रहा है, जबकि अन्ना मानने को ही तैयार ही नहीं है| यह बात अलग है कि अब तो सारा देश जान चुका है कि अन्ना भाजपा और संघ का ही संयुक्त उत्पाद है| इसके बावजूद अन्ना अभी भी संघ और भाजपा से दूरी बनाये रखने में क्या कोई ऐसी राजनीति खेल रहे हैं, जिसके परिणाम यूपीए को उसकी बेवकूफियों और हठधर्मिता का दुष्परिणाम भोगने को विवश कर देंगे?

 

अब तो कॉंग्रेस से दशकों से जुड़े कट्टर कॉंग्रेसी भी यह मानने लगा है कि कॉंग्रेस दिशाभ्रम की शिकार होने के साथ-साथ भाजपा-संघ-हिन्दुत्वादी ताकतों के चक्रव्यूह में इतनी बुरी तरह से फंसती जा रही है कि २०१४ के चुनाव में कॉंग्रेस की नैया पार लगना आसान नहीं होगा| वहीं दूसरी ओर कॉंग्रेस की राजनीतिक सूझबूझ के जानकारों का कहना है कि २०१४ आने तक तो देश का परिदृश्य ही बदल चुका होगा| उनका कहना है कि नीतीश कुमार भाजपा से पीछा छुड़ा चुके होंगे और आडवाणी, मोदी, स्वराज, जेटली, राजनाथ सिंह और गडकरी की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाओं से टकराकर भाजपा बिखरने के कगार पर पहुँच चुकी होगी| जबकि कुछ दूसरे जनाकारों का कहना है कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो भाजपा के नेतृत्व की कमान पण्डित मुरली मनोहर जोशी को मिल सकती है, जो लम्बे समय से इन्तजार में हैं|

 

इन हालातों में भारत की दिशा और दशा दोनों ही पटरी से उतरी हुई लगती हैं, जिसके चलते न मात्र देश का शासकीय भविष्य भ्रष्ट ब्यूराक्रेट्स की मनमानी नीतियों का शिकार है, बल्कि अन्ना हजारे, बाबा रामदेव और श्रीश्री रविशंकर जैसे लोग भी नीति और अनीति को भूलकर इसी स्थिति का लाभ उठाकर तथा एकजुट होकर अपनी पूरी ताकत झोंक देने का रिस्क ले चुके हैं और हर हाल में इस देश में मुस्लिम, दमित, दलित, पिछड़ा, आदिवासी और महिला उत्थान के विराधी होने और साथ ही साथ हिन्दुत्वादी राष्ट्र की स्थापना करने की बातें करने का समय-समय पर नाटक करने वाले लोगों को भारत की सत्ता में दिलाने के हर संभव प्रयास कर रहे हैं|

 

अब सबसे बड़ा सवाल यही है की क्या भारत का धर्मनिरपेक्ष, सामाजिक न्याय को समर्पित और सौहार्दपूर्ण संस्कारों में आस्था तथा विश्वातस रखने वाला आम मतदाता, मंहगाई और भ्रष्टाचार से तंग होकर ऐसे भहरूपियों को नयी दिल्ली की गद्दी सौंपने को तैयार है? लगता तो नहीं, लेकिन यूपीए सरकार की वर्तमान आम आदमी विरोधी नीतियों से निजात पाने के लिये मतदाता गुस्से में कुछ भी गलती कर सकता है!

 

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

12 COMMENTS

  1. डॉ. मीणा जी, नमस्कार।
    हर कोई लिखने के लिए स्वतन्त्र है। सम्पादक अभद्र भाषा का नियन्त्रण कर सकते हैं। गठित रूपसे कोई साथी नहीं है।
    कुछ परिचित लोगों को, प्रवक्ता पढने का अनुरोध निश्चित, मैं ने किया है। पर बाकी, आपकी धारणा भ्रान्त है।
    मुझे व्यस्तता, व्याख्यान, प्रवास, और परामर्शी अभियान्त्रिकी, इत्यादि के कारण, टिप्पणी में भी देर होती है।
    समय ही नहीं है, और कुछ, करने के लिए।
    सभी स्पष्ट लिखा है।
    सविनय।

  2. आदरणीय श्री मधुसूदन जी
    सादर प्रणाम!

    मेरी टिप्पणी 29.11.2011 पर आपने चर्चा को आगे बढ़ाना चाहा है, लेकिन निम्न तथ्य पर आप मौन साध गए हैं! कृपा करके इस बारे में भी तो कुछ कहें जिससे सच में हम आगे बढ़ सकें!

    “मैं ऐसा मानता हूँ कि अब हम आपस में एक दूसरे के वैचारिक धरातल के बारे में जानने लगे हैं! विगत में आपके साथ जब भी मैंने चर्चा करने का सकारात्मक प्रयास किया है आपके द्वारा या आपके साथियों के द्वारा उस चर्चा को एकजुट होकर (एक गिरोह की भांति) विषय को सदैव विवाद में डाला जाता रहा है और अभद्र, अशिष्ट तथा असंसदीय भाषा का उपयोग शुरू हो जाता है, जिस पर आप मौन साध लेते हैं! जो आपकी प्रदर्शित शिष्ट छवि की पोल खोल देता है!”

  3. डॉ. मीणा जी—आप कहते हैं।
    (१)“आप और हम भारत के बारे में सोचें न कि इंडिया या हिंदुस्तान के बारे में! जब हम इस बात पर सहमत होंगे तो भारत की बात करेंगे! भारत के उत्थान की बात करेंगे! भारत का मतलब तो आप जानते ही होंगे!”
    (२) 98 फीसदी आबादी लोगों को नाइंसाफी से मुक्त कराने या उनके सम्मान की बात करना भारत के उत्थान की जरूरत है!”98 फीसदी आबादी लोगों को नाइंसाफी से मुक्त कराने या उनके सम्मान की बात करना भारत के उत्थान की जरूरत है!”
    ———————————————–
    सीमित समय के कारण केवल दिशा संकेत कर रहा हूं। इसपर तो पूरा लेख लिखा जा सकता है।
    ===>
    तत्वतः सहमति। (९८% ? संदेह है) पर यह कोई असहमति का कारण नहीं।
    प्रश्न:
    पर क्या केवल बात करने से काम चल जाएगा?
    मेरे विचार में, केवल “बात करने” और लिखते रहने से ठोस सफलता की अपेक्षा नहीं करता।
    हां यह उस प्रक्रिया का एक भाग निश्चित हो सकता है।
    मेरा सुझाव है, हम निम्न दिशामेऎ सोचे।
    (१) हम हमारे बंदुओं की, हीनता या गुरूता ग्रन्थि का त्याग करवाने के लिए प्रोत्साहन और मानसिक ऊर्जा देनेवाले शिविरों के बारे में सोचे।
    (२) अपने पीडित बंधुओंकी अस्मिता जगाएं।
    (३) उन्हें अपने पैरोंपर खडे रहने की योग्यता प्राप्त करने के लिए “कर्म योग” की शिक्षा दें।
    (४) जहां जहं शासकीय सहायता उपलब्ध है, उसकी जानकारी, और उसे प्राप्त करने में सहायता, मार्ग दर्शन दें।
    (५) गुजरात के प्रतिमान (मॉडल) का अध्ययन करे।
    (६) उन्हें किसीके भी द्वेषसे उत्तेजित ना करें।
    अमरिका में अभी यहां की कृष्ण वर्णी अफ्रिकी प्रजा, INDEPENDENCE का अर्थ NOT DEPENDENT अर्थात दूसरो पर जो अवलम्बित नहीं , ऐसा करती है।
    इसी प्रकारसे सोचे।
    मुझे मेरे हर भारतीय से प्रेम है।
    कुछ संगोष्ठियों में मेरी ओरसे कुछ प्रस्तुतियां हुयी है। सहायता स्पर्धा करने की क्षमता प्राप्त करने में दी जाए। जीताने में नहीं।
    (७) अमरिका में यदि गोरों को आरक्षण प्राप्त होता, तो हमारे भारतीय कब के बेकार हो जाते, और निश्चित कुछ कंपनियां भी बंद हो जाती।
    (८) कल कोई यदि क “क्रिकेट टिम में आरक्षण लागु करे, तो भारत संभवतः हार जाएगा। शिक्षक, डाक्टर, विमान चालक, इत्यादि भी अपवाद नहीं।
    (९)विश्वसत्ता की दौड में सफल होने के लिए गूणवत्ता का ही चुनाव हो।
    (१०) आरक्षण गुणवत्ता प्राप्त करने की सहायता में अवश्य मानता हूं।
    (११) भारत देश की उन्नति भारत के सारे नागरिकों की और कंपनियों की उन्नति का जोड होगा।
    कहीं भी हम घाटा सह नहीं सकते।
    (१२) यदि इस दिशामें विचार कर आगे बढना चाहते हैं। तो स्वर्ण अवसर हमारी राह देख रहा है।
    (१३)मनुष्य के मन-मस्तिष्क-आत्मन में, असीम शक्ति का भंडार भरा पडा है।
    चुनौतियां है।
    पर समस्या ओं के सामने महा महिम पू. राष्ट्र पति, ए पी जे कलाम कभी हारे नहीं। उनकी लिखी ५ या ६ पुस्तकॊ के आधार पर कोर्स तैय्यार किया जा सकता है।
    आप और मैं और भी अन्य देश भक्त विचारक-चिंतक इत्यादि कुछ कर सकते हैं।
    मुझे भी भारत मां का ॠण चुमाने का अवसर प्राप्त हो सकता है।
    जल्दी जल्दी में विचार लिख दिए। पर सोचिए।
    और संदेह ना करें, हम भी हृदय तलसे हमारे हर भारत वासीका कल्याण ही चाहते हैं।
    ===>इस प्रकार की उन्नति दीर्घ जीवी होगी।<=== और वह किसीके द्वेष पर खडी नहीं होगी।
    आप अपने विचार लिखे। मैं पढूंगा।
    २ दिन व्यस्त रहूंगा। उत्तर देने में समय लगेगा।

  4. श्री जीत जी मैंने श्री मदु सूदन जी को लिखा है, उसे ही दोहरा रहा हूँ-

    “आप और हम भारत के बारे में सोचें न कि इंडिया या हिंदुस्तान के बारे में! जब हम इस बात पर सहमत होंगे तो भारत की बात करेंगे! भारत के उत्थान की बात करेंगे! भारत का मतलब तो आप जानते ही होंगे! 98 फीसदी आबादी लोगों को नाइंसाफी से मुक्त कराने या उनके सम्मान की बात करना भारत के उत्थान की जरूरत है!”

  5. मीणा जी
    जैसे आप चाहे वैसे एक लेख लिखिए|
    प्रत्येक पाठक स्वतंत्र है, जो उसे कहना होता है, लिखता है|किसीका कोई नियंत्रण नहीं है|
    (१) आप जो मानते हैं, उसको सर्व मान्य हो ने के लिए, कार्य कारण कड़ियाँ, और/वा तर्क देना पड़ता है| आप पी एच डी, या M B B S है –जानते ज़रूर होंगे|
    (२) मैं मेरी माँ की पूजा करने में स्वतंत्र हूँ, पर यदि सभीसे पूजा करवाना चाहूँ, तो तर्क ही चलेगा| चर्चा इसीके आधार पर होगी|
    (३) मत गणना से चुनाव जीता जा सकता है| चर्चा तर्क आधारित होती है|
    (४) स्मृतियाँ भी काल बाह्य होती है| मनुस्मृति भी अपवाद नहीं है|
    आप तर्क पर अपना मत प्रस्थापित करें, स्वीकार्य होगा|
    (५) आप को मैं ने पहले सुझाव दिया था, की लेखक रमेश पतंगे लिखित –“मैं मनु और संघ” पढ़ें|
    आप ने पढ़ी क्या?
    बिन्दुवार विचार रखने से सरलता होगी|
    कुछ सच्चाई हाथ लगे तो ही चर्चा सफल होती है|

    (६) आप जैसा उचित समझे वैसे प्रारम्भ कीजिए|

  6. मीणा साहब, आपने विभिन्न पार्टियों को एक ही तराजू में तोलकर सबकी बीमारियों की रिपोर्ट तो बना दी… अब इलाज भी बताइये?? क्या करना चाहिए.

  7. आदरणीय श्री मधुसूदन जी
    सादर प्रणाम!

    मैं ऐसा मानता हूँ कि अब हम आपस में एक दूसरे के वैचारिक धरातल के बारे में जानने लगे हैं! विगत में आपके साथ जब भी मैंने चर्चा करने का सकारात्मक प्रयास किया है आपके द्वारा या आपके साथियों के द्वारा उस चर्चा को एकजुट होकर (एक गिरोह की भांति) विषय को सदैव विवाद में डाला जाता रहा है और अभद्र, अशिष्ट तथा असंसदीय भाषा का उपयोग शुरू हो जाता है, जिस पर आप मौन साध लेते हैं! जो आपकी प्रदर्शित शिष्ट छवि की पोल खोल देता है! क्षमा करें सच कहने की आदत है!

    1-ऐसे में कौन सा संवाद और किसलिए?
    2-मनुस्मृति की आपके अनुसार या हमारे अनुसार मान्य बातों पर ही क्यों, उन बातों पर क्यों नहीं जो हिन्दुओं की 98 फीसदी आबादी का अपमान करती हैं?
    3-जिस पुस्तक में 98 फीसदी लोगों के विरुद्ध अपमानकारी और अमानवीय प्रावधान हों, उसको जलाने और प्रतिबंधित करने पर आप केवल इस कारण समतावादी और मानवतावादी लोगों का समर्थन नहीं करें, क्योंकि आप ब्राह्मणवाद के अंध-समर्थक हैं! तो फिर आपके साथ सार्थक संवाद कैसे संभव है?

    अनुरोध : अत: मैं सबसे पूर्व विनम्रता पूर्वक आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप और हम भारत के बारे में सोचें न कि इंडिया या हिंदुस्तान के बारे में! जब हम इस बात पर सहमत होंगे तो भारत की बात करेंगे! भारत के उत्थान की बात करेंगे! भारत का मतलब तो आप जानते ही होंगे! 98 फीसदी आबादी लोगों को नाइंसाफी से मुक्त कराने या उनके सम्मान की बात करना भारत के उत्थान की जरूरत है!

    आशा है कि आपका मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिलता रहेगा!

  8. डॉक्टर मीणा जी:
    आप चाहे तो मनुस्मृति के जो श्लोक आप को मान्य है, उनपर एक लेख लिखे| उसका आधार लेकर क्यों ना, हम लोग संवाद करें? वाद-विवाद नहीं|
    मान्य श्लोक चयनित हो, जिससे मेल बना रहेगा|
    नइ स्वीकार्य स्मृति भी आप ही आप बन जाएगी|
    इसको करने की आवश्यकता भी तो है, ही|
    स्मृतियाँ संहिता होती है| विशेष काल के बाद, काल-बाह्य हो जाती है|
    श्रुतियां सनातन मानी जाती है|
    स्मृतियाँ नहीं|
    प्रकृति उत्क्रांत हो कर बदलती है, उसके अनुसार आचार भी बदलता है| इस लिए हर काल में आचार के नियम बदलने चाहिए| और सनातन हिन्दू धर्म भी कई बार उत्क्रांत हुआ है|
    हम नियम नहीं बनाएं| पर नियमो पर विचार तो कर ही सकते है|
    आप क्या सोचते हैं?
    कुछ धृष्टता से ही पर संक्षेप में लिखा है|
    चर्चा तो कर ही सकते हैं|

  9. सर्वप्रथम तो डाक्टर निरंकुश और टिप्पणीकारों के साथ मैं प्रवक्ता का भी आभारी हूँ कि मेरी टिप्पणी को आप लोगों इतना महत्त्व दिया..जैसे मैंने अपने विचारो के साथ अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए इस लेख पर अपने ढंग से टिप्पणी की,वैसे प्रत्येक को यह अधिकार प्राप्त है.मैं आगे केवल यही कहना चाहता हूँ कि जब भी मैं भ्रष्टाचार के बारे में कुछ कहता हूँ तो मेरा ध्यान भ्रष्टाचार की क़ानून द्वारा मान्य परिभाषा पर रहता है और उसके विरुद्ध किसी अभियान को मैं अन्य किसी सम्बन्ध से जोड़ कर नहीं देखता.ऐसे भी हमारा समाज आज भी ऐसा है कि लड़का लडकी के मिलने पर या अंतरजातीय विवाह को मेरे द्वारा वर्णित भ्रष्टाचार से बड़ी बुराई मानता है या समाज में ऐसे लोग भी हैं जो तथाकथित मनुवादी संस्कार को भ्रष्टाचार का मूल . कारण मानते हैं.ऐसा भी हो सकता है,पर मैं इन सब कारणों से ऊपर उठकर और एक जूट होकर भ्रष्टाचार से लड़ने में ही भारत का उत्थान देखता हूँ.

  10. आदरणीय श्री आर सिंह जी,
    सादर प्रणाम|
    आपने इस आलेख पर टिप्पणी की है| इसके लिये आपका आभार|
    जहॉं तक आपकी ओर से उठाये गये सवालों के बारे में मेरे मत का सवाल है| तो सबसे पहले तो मैं आपके विचारों का सम्मान करता हूँ और साथ ही इस बात का कतई भी दावा नहीं करता कि जो कुछ मैंने लिखा है, केवल वहीं सच है| सच दूसरों के नजरिये से देखने पर ही सामाने आता है| इसलिये आपके नजरिये पर भी विचार करना चाहिये| फिर भी मैं विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हूँ कि-

    १. कोई बात किसी व्यक्ति विशेष के मत में सही हो और वह दूसरों के खिलाफ जाती है, तो क्या इस प्रकार से विचार प्रकट करना पूर्वाग्रह का द्योतक है? यदि हॉं तो फिर सभी लोगों को इस बात पर विचार करना होगा कि आज के दौर में पूर्वाग्रह की परिभाषाएँ बदल रही हैं| श्री सिंह जी अब तो सारा संसार जान चुका है कि भारत की कथित हिन्दुत्ववादी ताकतें ही हिन्दुओं की सबसे बड़ी दुश्मन हैं| जो हिन्दुत्व को मजबूत करने और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का नाटक करके इस देश के लोगों में वैमनस्यता फैलाने का बखूबी नाटक करती रहती हैं| यही नहीं ये लोग कमजोर तथा विपन्न वर्गों की खिलाफत करते समय अपने मुखौटों का छुपा नहीं पाती हैं और हर हाल में इस देश के कमजोर तबकों को कुचलने पर आमादा रहती हैं| यदि इस बात को मैंने लिख दिया तो यह आपकी दृष्टि में यह पूर्वाग्रह हो गया| यदि आपकी दृष्टि में अब पूर्वाग्रही होने की यही परिभाषा है तो मैं कुछ भी कहने या लिखने की स्थिति में नहीं हूँ| क्योंकि अनुभव और सम्भवत: ज्ञान में भी मैं आपसे बहुत कनिष्ठ हूँ| यदि मेरे विचार से मेरे सच्चे किन्तु थोड़े से कुट विचारों से आपको तकलीफ हुई है तो मुझे दुख है| हालांकि मैं अभी भी अपने विचारों को सही और समाज, राष्ट्र तथा हिन्दुत्व के हित में मानता हूँ|
    २. दूसरी बात आपने कही है कि भ्रष्टाचार मिटने से गरीबतम लोगों को लाभ होगा| कागजों पर तो गरीब को लाभ आज भी हो रहा है! कॉंग्रेस का हाथ गरीब के साथ कब से है, परिणाम क्या हुआ? सब बकवास है! जब तक मनुवादी व्यवस्था को समूल नष्ट नहीं किया जाता भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता, जिसके अन्ना कट्टर समर्थक है| यही कारण है कि अन्ना का संघ समर्थन कर रहा है|
    ३. आपने बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर को हिन्दू धर्म के उत्थान तथा आध्यात्म के साथ जुड़े होने की बात कही है जो आपकी दृष्टि में ठीक हो सकती है, लेकिन इस देश के बहुसंख्यक हिन्दू इस बात को जानते हैं कि ये दोनों मनुवादी व्यवस्था की पुनर्स्थापना के लिये कार्य कर रहे हैं| जिसमें इन दोनों ने बड़ी चालाकी से भ्रष्टाचार और कालेधन को जोड़कर आम व्यक्ति को गुमराह करने का नया और भ्रामक तरीका निकाला है| इनका और इन जैसे ही अनेकों कथित संतों का पहला मकसद मनुवाद की फिर से स्थापना करना है! जिससे इनकी और इन जैसे अनेकों का ठगी का धन्धा चलता है|
    मैं समझता हूँ कि आपको यह बतलाने की जरूरत नहीं होनी चाहिये कि मनुवाद की स्थापना का अर्थ है इस देश के ८५ फीसदी लोगों का सफाया| यदि ये लोग सच में ही दमित और साधनविहीन लोगों के सच्चे समर्थक हैं तो ये लोग यह घोषणा क्यों नहीं करते कि इस देश में जब तक स्त्रियों, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के हाथ में सारे संसाधन और सत्ता नहीं आयेगी तब तक सच में लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना नहीं हो सकती, जो संविधान का लक्ष्य है| इसके विपरीत मुनवादी सभी ताकतें एक स्वर में महिला आरक्षण और अजा/अजजा/अपिव के आरक्षण का तथा अल्पसंख्यकों के संरक्षण का खुलकर विरोध करती रहती हैं| जो लोग देश की ८५ फीसदी आबादी के विकास को राष्ट्र के उत्थान के खिलाफ मानते हैं, वे स्वयं किसके लिये कार्य कर रहे हैं, यह बात सहज समझी जा सकती है! इन लोगों की विचारधारा का विरोध नहीं करने वाला और, या इनका सहयोग करने वाला कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना ही बड़ा संत या साधु या अन्ना जैसा कथित गॉंधीवादी कोई भी हो ये सब इस देश के सच्चे और असली मालिकों के समर्थक नहीं, विरोधी और दुश्मन हैं| जिनका विरोध नहीं करने का अर्थ है, चुपचाप अन्याय को सहते जाना! जो अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार को बढावा देने के समान ही है| जिसे मिटाने का ये नाटक करते रहते हैं|
    ४. जहॉं तक लोकपाल बनने की बात है, जब तक इस देश में मनुवादी व्यवस्था लागू रहेगी लोकपाल कुछ नहीं कर सकता| सबसे पहले मनुवादी व्यवस्था को मरना होगा, तब ही इस देश का उद्धार होगा| काला धन लाना तो बीमारी का फौरी उपचार करना है| मनुवाद ही तो कालाधन पैदा करता है| मनुवाद ही तो भ्रष्टाचार को पनपाता रहा है| बीमारी के कारण को समाप्त किये बिना, किसी भी बीमारी को कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता|
    शभाकांक्षी
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  11. दलों की चिंता न करें एक सांपनाथ है तो दूसरा नागनाथ इनको अन्ना जी जैसे लोग ही सुधर सकते हैं क्योंकि अभी कोइ नई पार्टी बनाने का समय नहीं है. सब जानते हैं की नेता सत्ता बिन जल बिन मछली की तरह तड़पते हैं. सो इलाज बिलकुल सीधा है की वो करो जो जनता चाहती है. और जनता वो चाहती है जो अन्ना जी कहते हैं. नहीं मानेंगे तो दूसरी पार्टी जीत जायगी. यह जनता का हक है के वो किसको चुनती है? राजनेता नोकर हैं नोकर बनकर अपनी औकात में रहें और जनता यानि मालिक जो कहे करते जाएँ तो ठीक वर्ना अन्ना का तो कुछ बिगड़ना नहीं है, बेहरहाल जिन नेताओं ने मोती कमी की है वो जेल जाने को तैयार रहें. संपादक पब्लिक ऑब्ज़र्वर नजीबाबाद

  12. डाक्टर निरंकुश जब आप यह लिखते हैं क़ि
    “अन्ना हजारे, बाबा रामदेव और श्रीश्री रविशंकर जैसे लोग भी नीति और अनीति को भूलकर इसी स्थिति का लाभ उठाकर तथा एकजुट होकर अपनी पूरी ताकत झोंक देने का रिस्क ले चुके हैं”
    तो साफ़ जाहिर होता है क़ि आप पूर्वाग्रह के शिकार हैं.आपका यह पूर्वाग्रह और स्पष्ट हो जता है जब आप आगे यह लिखते हैंकि
    ” हर हाल में इस देश में मुस्लिम, दमित, दलित, पिछड़ा, आदिवासी और महिला उत्थान के विराधी होने और साथ ही साथ हिन्दुत्वादी राष्ट्र की स्थापना करने की बातें करने का समय-समय पर नाटक करने वाले लोगों को भारत की सत्ता में दिलाने के हर संभव प्रयास कर रहे हैं|”
    इन सब आक्षेपों के उत्तर में आपसे केवल एक या दो प्रश्न करूंगा.
    १.अन्नाहजारे का भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन क्या केवल सवर्ण हिन्दुओं के लिए है? मेरा विचार तो यह है क़ि इस आन्दोलन की सफलता से सबसे ज्यादा लाभान्वित वे होंगे जो समाज के आर्थिक उत्थान के सबसे नीचे वाले सोपान पर हैं या सीढ़ी पर चढ़ने की चेष्टा कर रहे हैं.चूंकि अन्ना ने सभी राजनैतिक दलों को अपने आन्दोलन से सामान दूरी पर रखा है अत; उनपर यह भी आक्षेप नहीं लगाया जा सकता क़ि वे किसी दल विशेष या समुदाय विशेष के आदेश या अनुरोध पर कार्य कर रहे हैं.मेरा अपना विचार तो यह है क़ि जो भी इस आन्दोलन के विरुद्ध आवाज उठा रहा है ,वह या तो किसी बड़ी गलत फहमी का शिकार है या भ्रष्टाचार से लाभान्वित हो रहा है.आप चूंकि यह दावा करते हैं क़ि आप स्वयं भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं तो आपको शक का लाभ देते हुए मैं यही कह सकता हूँ क़ि आप बहुत बड़ी गलतफहमी के शिकार हैं.
    २.दूसरा प्रश्न बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर से सम्बन्ध में है. चूंकि ये दोनों सज्जन प्रत्यक्ष रूप से हिन्दू धर्म के उत्थान और उसके आध्यात्मिक पक्ष के साथ जुड़े हुए हैं,उनपर एक दल विशेष के साथ होने का आक्षेप लगाया जा सकता है,पर जब वे विदेशों से काला धन वापस लाने या भ्रष्टा चार के विरुद्ध अभियान का हिस्सा बनते है तो उनपर केवल इसीलिए अकारण आक्षेप लगाना ठीक नहीं है क़ि उनका सम्बन्ध हिन्दू धर्म की कुरीतियों के दूर करने या हिन्दू दर्शन और आध्यात्म से है.भ्रष्टाचार से सब पीड़ित हैं,अतः अगर कोई उसके विरुद्ध अभियान में शामिल होता है या उस अभियान का नेतृत्त्व करता है तो उसके गुण दोष की समीक्षा उस अभियान के सन्दर्भ में करना चाहिए न क़ि उसके अन्य कार्यों से जोड़ कर .ऐसे भी बाबा रामदेव और श्री श्रीं रवि शंकर भी अपने ढंग से समाज सुधार के कार्यों में ही लगे हुए हैं.अतः उनका इससे जुड़ना कोई संयोग नहीं कहा जा सकता.
    अंत में मैं तो यही कह सकता हूँ क़ि चूंकि बहुत से लोग कांग्रेस के धर्म निरपेक्षता वाले मुखौटे से प्रभावित हैं अतः इस आन्दोलनं को सीधा सीधा कांग्रेस के विरुद्ध जाते हुए देख कर चिंतित हैं ,तो ऐसे लोग यह क्यों भूल जाते हैं क़ि जब से इस आन्दोलन ने जोर पकड़ा है कांग्रेस अपने नेताओं के बकवासों से भ्रष्टाचार की पर्यायवाची हो गयी है.हो सकता है क़ि कांग्रेस संसद के शीत कालीन अधिवेशन में एक मजबूत लोक पाल बिल पेश करे .उससे पाशा पलट भी सकता है.चूंकि कोई भी राजनैतिक दल भ्रष्टाचार से अलग नही है,अतः एक मजबूत लोक पाल बिल पेश होने से सबका मुखौटा उतरने की उम्मीद है.

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