संघ और भाजपा के विचारशील नेता रहे श्री गोविंदाचार्य ने आज कमाल की बात कह दी है। उन्होंने कहा है कि गोरक्षा और गोहत्या के प्रश्न को धार्मिक चश्मे से देखना अनुचित है। यह धार्मिक या मजहबी मुद्दा है ही नहीं। यही बात कभी वीर सावरकर ने कही थी, जो ‘हिंदुत्व’ के आदी प्रवक्ता थे। महर्षि दयानंद सरस्वती ने लगभग 135 साल पहले जो गोरक्षा आंदोलन चलाया था, उनका कहना भी यही था कि गाय भारतीय अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ है। उनका तर्क था कि रीढ़ को तोड़कर आप शरीर को कैसे चलाएंगे? उन्होंने अपनी अत्यंत प्रसिद्ध पुस्तक ‘गोकरुणानिधि’ में गोरक्षा को कहीं भी धार्मिक या मज़हबी या सांप्रदायिक मुद्दा नहीं बनाया है। उनके लिए यह हिंदू-मुसलमान का मुद्दा था ही नहीं। उन्होंने गोरक्षा के लिए लाखों लोगों के हस्ताक्षरवाला एक आवेदन महारानी विक्टोरिया को भी भिजवाया था। महर्षि दयानंद ने जितने भी तर्क गोरक्षा के पक्ष में दिए हैं, वे आर्थिक हैं। उन्होंने लंबा-चौड़ा हिसाब लगाकर सिद्ध किया है कि एक गाय अपनी पूरे जीवन-काल में औसतन 4 लाख 10 हजार 440 मनुष्यों का एक समय का आहार प्रदान करती है। यदि उसे मारकर उसका मांस खाया जाए तो ज्यादा से ज्यादा 80 लोगों का पेट भर सकता है। इसके अलावा भी उन्होंने खेतिहर पशुओं की रक्षा के लिए बहुत-से तर्क दिए हैं। उन्होंने कहीं भी मुसलमानों के विरुद्ध कोई आरोप नहीं लगाया है। वास्तव में गोमांस पर कई मुगल बादशाहों ने प्रतिबंध लगा रखा था। अंग्रेजों ने ही गोमांस-भक्षण को बढ़ावा दिया था। कहा जाता है कि मुसलमान इसे इसलिए ज्यादा खाते हैं, क्योंकि यह सस्ता मिलता है। सस्ता इसलिए मिलता है कि इसे हिंदू नहीं खाते।
गोविंदाचार्य ने कहा है कि गोहत्या के लिए सिर्फ मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराना गलत है, क्योंकि कसाइयों को अपनी गाएं बेचनेवाले तो हिंदू ही हैं। दुनिया में गोमांस का सबसे बड़ा निर्यातक है- भारत! भारत के हिंदू व्यवसायी सबसे बड़े निर्यातक हैं। भारत में गोमांस या मांस खाने का निषेध जिन शास्त्रों में है, उस समय इस्लाम पैदा ही नहीं हुआ था। भारत में उस समय एक भी मुसलमान नहीं था, जब स्मृतियां लिखी गई थीं। जो लोग यहां थे, उनसे ही मांसाहार नहीं करने के लिए कहा गया था। मेरी नज़र में जैसा गोमांस, वैसा ही सूअर का मांस है। समस्त मांसाहार त्याज्य है। कोई भी व्यक्ति यदि मांसाहार छोड़ दे तो उसके मुसलमान या ईसाई या यहूदी या हिंदू होने में कोई कमी नहीं रह जाएगी।