क्यों भई चाचा, हां भतीजा

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शिवपाल
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शिवपाल

बचपन में स्कूल से भागकर एक फिल्म देखी थी ‘चाचा-भतीजा।’ उसमें एक गीत था, ‘‘बुरे काम का बुरा नतीजा, क्यों भई चाचा.., हां भतीजा।’’ फिल्म के साथ यह गाना भी उन दिनों खूब लोकप्रिय हुआ था। आजकल भी ये गाना उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में जूतों की ताल पर खूब बज रहा है।
इस मनोरंजन का श्रेय कोई शिवपाल सिंह को दे रहा है, तो कोई अखिलेश को। कोई मुलायम सिंह का नाम ले रहा है, तो कोई अमरसिंह ‘बाहरी’ का। जो भी हो, पर इससे उस फिल्म की भी फिर से चर्चा होने लगी है। सरकारी काम तो चाचा-भतीजे की तकरार में ठप्प है, इसलिए सब अधिकारी यू ट्यूब पर यह फिल्म देखकर ही टाइमपास कर रहे हैं।
मौका देखकर लखनऊ में पुरानी फिल्में दिखाने वाले एक सिनेमाघर ने यह फिल्म फिर से चला दी है। फिल्म पुरानी है, इसलिए वह बार-बार अटकती है। कभी आगे बढ़ती है, तो कभी पीछे। कभी कटती है, तो कभी टूटती है; पर सिनेमाघर का तकनीशियन काफी अनुभवी है। वह हर बार मामला संभाल लेता है।
इस राजनीतिक फिल्म के नवीन संस्करण के बारे में शर्मा जी के विचार जानने कल मैं उनके घर गया, तो वे दूरदर्शन पर उ.प्र. की खबरें ही सुन रहे थे।
– शर्मा जी, कहते हैं कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है; पर वहां जो हो रहा है, उसे देखकर बहुत दुख हो रहा है। जिन पर उ.प्र. में सरकार चलाने की जिम्मेदारी है, वे एक दूसरे पर जूते चला रहे हैं।
– वर्मा जी, वह पार्टी नहीं कुनबा है, कुनबा। जिस पार्टी में सारे पद एक ही परिवार के पास हों, उसे और क्या कहेंगे ?
– लेकिन कांग्रेस में भी तो शीर्ष पद एक परिवार के पास ही रहता है… ?
– बात समाजवादी कुनबे की हो रही है, कांग्रेस की नहीं।
– अच्छा तो ये बताइये कि इस तकरार की जड़ कहां है ?
– देखो वर्मा, पिछले विधानसभा चुनाव के बाद जब मुलायम पार्टी को बहुमत मिला, तो इस बात पर बड़ी उठापटक हुई कि मुख्यमंत्री कौन बने ? कुनबा होने के कारण असली हक तो मुलायम सिंह के बाद उनके छोटे भाई शिवपाल का ही था, पर बेटे का मोह भाई के मोह पर हावी हो गया और अखिलेश बाबू मुख्यमंत्री बन गये। बस, तब से ही अंदरखाने एक-दूसरे को काटने के दांव चल रहे हैं।
– हमने तो सुना था कि सब कुछ बड़े प्रेम से हुआ था ?
– कहा ऐसा ही जाता है; पर राजमहल में कुछ भी प्रेम से नहीं होता। कुछ दिन बाद फिर चुनाव होने हैं। अब शिवपाल पर उनके बेटों का दबाव है कि इस बार वे खुद मुख्यमंत्री बनें। मुलायम सिंह बीमार रहते हैं। उनका कोई भरोसा नहीं। यदि पार्टी और सरकार दोनों अखिलेश के कब्जे में रहीं, तो फिर शिवपाल और उसके बच्चों को दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया जाएगा।
– यानि शर्मा जी, इस बार आरपार की लड़ाई है ?
– बिल्कुल। लग तो ऐसा रहा है कि शिवपाल चुनाव से पहले अपनी अलग पार्टी बना लेंगे। अभी तो इस कुनबे में घर में ही जूते चल रहे हैं। फिर सपा (मुलायम) और सपा (शिवपाल) के लोगों में गलियों और सड़कों पर लठ चलेंगे। सपा में जिन तत्वों की भीड़ है, ऐसे में गोलियां चल जाएं, तो भी कुछ आश्चर्य नहीं होगा।
– लेकिन कुछ लोग कह रहे हैं कि ये झगड़ा किसी ‘बाहरी’ के कारण है ?
– वर्मा जी, तुमने महाभारत की कथा सुनी होगी। वहां भी झगड़ा घर में ही था, जिसमें मुख्य भूमिका गांधारी के भाई शकुनि की थी। यहां भी आग लगाने वाला एक मुलायमवादी ही है। उसने तय कर रखा है कि जिन लोगों ने उसे अपमानित कर पार्टी से निकलवाया था, वह भी उन्हें बरबाद करके छोड़ेगा।
– शर्मा जी, आपका संकेत अमरसिंह की ओर तो नहीं है ?
– अमरसिंह हो या समरसिंह, पर अब ये समर रुकने वाला नहीं है। और इस तकरार का लाभ सीधे हमारी कांग्रेस पार्टी को होगा। देख नहीं रहे, राहुल बाबा कितनी दौड़भाग कर रहे हैं ? कहीं खाट सभा और कहीं मूढ़ा पंचायत। बस कुछ दिन की बात और है। फिर तो….।
– लेकिन शर्मा जी, जिन शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी कहा जा रहा है, वे तो राहुल बाबा की सभाओं में दिखाई नहीं देती। लगता है यहां भी बुआ और भतीजे में कुछ तकरार हो गयी है।
शर्मा जी यह सुनकर गुस्से से लाल हो गये। वे दरवाजे के पीछे रखी लाठी उठाने लगे। इस पर मैंने वहां से फूटना ही ठीक समझा। बाहर निकलकर देखा, सड़क पर एक गाड़ी ‘चाचा-भतीजा’ फिल्म का प्रचार करते हुए जा रही थी। उसके भोंपू पर वही गीत बज रहा था, ‘‘बुरे काम का बुरा नतीजा, क्यों भई चाचा.., हां भतीजा।’’

1 COMMENT

  1. अखिलेश की बुआ तो अपने भाई को रिटायर होने व घर बैठने की सलाह दे रही हैं ताकि बुआ राज कर सके , ये भतीजा (अखिलेश ) व छोटा भाई शिवपाल आपस में लड़ ही रहे हैं , और बुआ वापस सत्ता पर आँख गड़ाए हुए हैं , पर दिल्ली वाली बुआ को खड़ा कर , भतीजा भगा भगा चुनाव प्रचार में लगा तो है पर बार बार खटिया लुटी जा रही है , मूढ़े भी कम हो रहे हैं ,,, ये बुआ भतीजे भी एक मीटिंग के बाद साथ दिखाई नहीं दे रहे , यह बुआ भी लगता है खुद को फंसा महसूस कर रही है
    हालात यह भी हो गयी है कि अब सारी सेनाएं रण में खड़ी हो गयी हैं तलवारें भी खिंच गयी हैं , वापसी भी सम्भव नही है अब तो खेत होना ही पड़ेगा

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