मंजुल भटनागर
मजदूर कहाँ
ढूंढ़ता हैं छत अपने लिए
वो तो बनाता है मकान
धूप में तप्त हो कर
उसकी शिराओ में
बहता है हिन्दुस्तान —-
मजदूर न होता
तो क्या कभी बनता
मुमताज़ के लिए
ताज महल सी शान
और चीन की दिवार
आश्चर्य, कहाती सीना तान ——
मजदूर ने खडे किये गुम्बद मह्ल
रेगिस्तानो में ,जो है शहरों की आन
अजंता एल्लोरा कला शिलिप
देती है उसके हाथो को
कीर्ति की सोपान
हर देश का मजदूर
गढ़ता है ,अपने दो हाथो से
सुन्दर बुर्ज दरवाज़े
चाहता कुछ नहीं ,होकर नादान
रहता है उसका देश उसके कारण
दुनिया की नजरो में आसमान !
(मजदूर दिवस पर—-)
अच्छी कविता बाधाई