चुनाव के नतीजे आये और सबको पता चला की लालू के दोनों लाल मंत्री बनेंगे, एक तो उपमुख्यमंत्री! पता है, क्या गुज़र रही थी उन लाखों युवाओं के दिल पर जिसने जी-तोड़ मेहनत करके तमाम डिग्रियां हासिल की है, एक सरकारी नौकरी के लिए योग्यता के बावजूद भी कितनी भाग-दौड़ करनी पड़ रही है? सभी आहें भर रहे थे, काश मेरा भी बाप ‘लालू प्रसाद यादव’ होता!
यही होता है लोकतांत्रिक राजनीति में जब मतदाता अपना मत वंशवाद, जातिवाद के नाम पर देकर लोकतंत्र की हत्या कर देता है| बिहार की जनता को अब संभलना होगा, जागना होगा लेकिन मौका तो 5 साल बाद ही आएगा| जनता जानती थी उसके फैसले के बाद कौन है जो उनपर राज करेगा? कौन आईएस, आईपीएस जैसे अधिकारियों से अपनी सलामी ठुकवायेगा, फिर भी हद है! बिलकुल साफ़ है की नेताओं वाली मौकापरस्ती के गुण जनता में भी आ गए है| वो आलसी हो गयी है| सच जानने के लिए मीडिया पर आधारित हो गयी है| उसे अपनी जागरूकता का अहंकार हो गया, नहीं तो उसके फैसले से इतने ख़राब-ख़राब नेता कैसे चुन लिए गए? इसलिए की, उम्मीदवार के तौर पर तो नेता मतदाताओं के सामने सर तो झुका लेता है| लेकिन लोकतंत्र में जनता राजा है, फिर वो क्षेत्र में नेताओं के आने पर सख्त सवाल करने के बजाए उसके सामने पूरे 5 साल सर क्यों झुकाती है? उसके पीछे-पीछे चाटुकारों की तरह झंडे लेकर नारेबाजी करने वाला लोकतंत्र का एक जीता-जागता गुंडा है जिसे पोषित करने वाले भी वही नेता हैं, जो कैमरे पर लोकतंत्र की तोता-रटंत जुमले सुनाता है|
लालू के एक लाल नीतीश जैसे तेजतर्रार नेता को बिहार की आर्थिक, सामजिक हर फैसले में उन्हें अपनी सलाह देंगे| वाकई, एक नौवीं पास युवा उपमुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकता? तेजस्वी या तेजप्रताप तो ये भी नहीं कह सकते की उन्होंने गरीबी देखी है इसलिए वे गरीबों का दर्द समझते हैं! आखिर जनता ने उन्हें चुना है, जनता ने उनकी समझदारी, योग्यता में कुछ तो ऐसा जरूर देखा होगा! क्योंकि अरस्तु ने पहले ही कहा था की लोकतंत्र मूर्खों का शासन है और मुर्ख भी उसमें सता के सर्वोच्य शिखर तक पहुँच सकता है| पहले मांझी और अब लालू के दोनों लाल ने उनकी बात को बल जरूर दिया है| लालू के दुसरे बेटे तेजप्रताप को स्वास्थ-पर्यावरण मंत्रालय मिला है| क्या भाग्य है उनके डिपार्टमेंट के आला अफसरों की! यही मौका है, कर डालो सारे फायदेमंद फैसले, बेच डालो पेड़-पौधे और लकड़ियाँ! डर किस बात का, फैसले अंग्रेजी में लिखकर दो और हस्ताक्षर करा लो, उन्हें कौन सा हिंदी पढने आता है जो इंग्लिश समझेंगे!
राजनीति में वंशवाद जनता के लिए अभिशाप है तो नेताओं के लिए वरदान| बिहार की जनता देश में सबसे जागरूक मतदाता का स्थान रखती है, लेकिन उसकी ये छवि जातिवाद के चुंगल में फंसकर धूमिल होती जा रही है| बेटे-पोतों को सता दिलाने का इतिहास इन 66 सालों में काफी पुराना रहा है, पर इस चुनाव में जिस तरीके से जनता ने नीतीश को चुना, उनपर भरोसा दिखाया अगर इस दौरान राजद की तरफ से कोई भी ऐसी-वैसी बात हुई तो वो नीतीश पर कायम विश्वास को ले डूबेगी| बिहार ने 15 साल लालटेन के सहारे गुजारे, गुंडागर्दी झेली, अत्याचार सहा फिर भी उन्हें 10 साल जनता का विश्वास हासिल करने में लग गए| सवाल है, क्या नीतीश की बेदाग़ छवि उनकी सता वापसी करने में मदद दे गयी या बीजेपी का मोदी-शाह पर से जनता का उठता भरोसा? बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषण किये गए है, पर मेरा मानना है की बीजेपी की घटती लोकप्रियता का एक बड़ा हाथ नीतीश को जीत दिलाने में रहा है| क्योंकि लोकसभा चुनावों में बीजेपी तमाम जातिवादी आंकड़ों को दरकिनार करते हुए 180 सीटों पर आगे थी|
मोदी-शाह की घटती लोकप्रियता के अन्दर उनका अहंकार और हाईकमान प्रणाली है| जमीनी कार्यकर्ताओं से संपर्क टुटा है क्योंकि बीजेपी मिस कॉल से कार्यकर्ता जो बनाने लगी है… मोदी ये मान रहे थे की उनकी जीत गुजरात के विकास गाथाओं के नाम पर हुई है, लेकिन सच ये है की जनता कांग्रेस की कारनामों से खासी परेशान थी और मंहगाई जले पर नमक छिड़क रही थी| वैसे में पुरा देश खदबदाया हुआ था| मोदी की जगह कोई भी होता तो वो जीत जाता पर 282 सीट नहीं| पूर्ण बहुमत हासिल करने के पीछे मोदी की हिन्दू-मर्द नेता की छवि का बड़ा योगदान रहा| बिहार में आकर घोषणाएं कर रहे थे, बोली लगा रहे थे, अमेरिकी यात्रा की कहानियां सुना रहे थे और व्यापार आसान बनाने की कोशिश कर रहे थे| जबकि लोगों को दाल चाहिए, टमाटर चाहिए, व्यापार नहीं जिन्दगी आसान चाहिए| मोदी को ये याद रखना होगा की 2019 में पुतिन, ओबामा या नेतान्याहू नहीं जिताने आयेंगे, बल्कि देश की जनता जिताएगी|
और… बिहार में महागठबंधन की सरकार चल रही है, स्वछन्द उड़ रहे नीतीश के पैरों में बेड़ियाँ लग चुकी है| जिसमें साइकिल चलाने की योग्यता वालों को विमान उड़ाने के लिए दे दिये गए है और सरकार में राहुल गांधी जैसे तेजतर्रार, ओजस्वी नेता के नुमाइंदे भी है… आगे क्या होगा, राम जाने…