विलुप्त की कगार पर भाषाएं

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आज सुबह जैसे ही अख़बार उठाया एक छोटी सी खबर ने सोचने पर मज़बूर कर दिया…खब़र थी अंडमान की एक प्राचीन भाषा को बोलने वाली एकमात्र महिला बोआ का निधन। 85 वर्षीय बोआ के देहांत के बाद अब इस भाषा को बोलने वाला कोई नहीं बचा है। बोआ बो भाषा की जानकार थी और ये भाषा दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक थी। भाषाओं का संकट विकास की वेदी पर चढ़ती बलि ही है। भाषा विज्ञानियों की माने तो हर पखवाड़े एक भाषा लुप्त हो रही है। आज स्थिति यह है कि संसार में प्रचलित करीब 6000 भाषाओं में से एक-चौथाई को बोलने वाले सिर्फ एक ही हजार लोग बचे हैं। इनमें से भी सिर्फ 600 भाषाएं ही फिलहाल सुरक्षित होने की श्रेणी में आती हैं। किसी नई भाषा के जन्मने का कोई उदाहरण भी हमारे सामने नहीं है दुनिया भर में इस वक्त चीनी, अंगरेजी, स्पेनिश, बांग्ला, हिंदी, पुर्तगाली, रूसी और जापानी कुल आठ भाषाओं का राज है। दो अरब 40 करोड़ लोग ये भाषाएं बोलते हैं।

विकास के साथ भाषा स्वरूप…

भाषा शिक्षा और अभिव्यक्ति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सरल माध्यम है। वर्ष 1961की जनगणना के अनुसार आधुनिक भारत में प्रचलित भाषाओं को 5 विभिन्न भाषा परिवारों में बांटा गया है…जिनके अंतर्गत 1652 से भी अधिक मातृ भाषाएं हैं। वर्ष 1991 की जनगणना से मातृभाषाओं के 10,400 छोटे-छोटे विवरणों का पता चला था और इन्हें 1576 मातृभाषाओं के रूप में युक्‍तिसंगत बनाया गया। भारत में अधिकांश लोगों द्वारा इन्‍डो-आर्यन भाघाएं बोली जाती है। तत्‍पश्‍चात घटते क्रम में द्रविड, आस्ट्रो एशियाई और चीनी-तिब्बती (तिब्बती-वर्मा) भाषाओं का स्‍थान आता है। देश असमी, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, कन्नड, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिन्धी, तमिल, तेलुगू और उर्दू को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। इनमें से संस्‍कृत तथा तमिल को प्राचीन भाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। यूनेस्को की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर की भाषाओं में एक तिहाई सब सहारा अफ़्रीकी क्षेत्र में बोली जाती हैं। आशंका है कि अगली सदी के दौरान इनमें से दस फ़ीसदी भाषाएं विलुप्त हो जाएंगी। ऐसा नहीं कि यह संकट सिर्फ इस क्षेत्र में है,भारत में भी की कई भाषाएं हैं जो विलुप्ति के कगार पर हैं. एक आंकड़े के मुताबिक 196 भाषाएं ऐसी हैं जिनके ग़ायब होने का ख़तरा है और विलुप्ति की ये दर दुनिया में सबसे ज़्यादा भारत में ही है। इनमें से अधिकांश क्षेत्रीय और क़बीलाई भाषाएं हैं। कई भाषाविदों और विशेषज्ञों ने भाषाओं की विलुप्ति के इस संकट पर चिंता जताई हैं। दुनिया में सबसे तेज़ी से भाषाओं के ग़ायब होने की दर भारत में ही है. इसके बाद नंबर आता है अमेरिका का, जहां 192 ऐसी भाषाएं हैं और फिर तीसरे नंबर पर है इंडोनेशिया जहां 147 भाषाएं दम तोड़ रही हैं। यूनेस्को के अध्ययन के मुताबिक़ हिमालयी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और उत्तराखंड में क़रीब 44 भाषाएं-बोलियां ऐसी हैं जो जन-जीवन से गायब हो रही है। जबकि पूर्वी राज्यों उड़ीसा, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में ऐसी क़रीब 42 भाषाएं विलुप्त हो रही हैं. भाषाओं का इस भयानक तेज़ी के साथ अदृश्य होते जाना सामाजिक विविधता के लिए भी चिंता की बात है। 1962 के एक सर्वे में भारत में 1,600 भाषाओं का अस्तित्व बताया गया था और 2002 के आंकड़े बताते हैं कि 122भाषाएं ही सक्रिय रह पाईं। प्राचीन काल से ही भारत में विभिन्न धर्मों के साथ साथ भाषाओं का भी समावेश होता रहा है। दरअसल कोई भी भाषा अपने में एक पूरी विरासत होती है। भाषा की मृत्यु का अर्थ होता है अपने बीते वक्त से कटना, अपने इतिहास, दर्शन, साहित्य, चिकित्सा-प्रणाली और दूसरी तमाम समृद्ध परंपराओं के मूल स्वरूप से वंचित हो जाना।

– केशव आचार्य

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