किराना व्यापार में विदेशी निवेश की खुल रहीं पर्तें —

डा कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

सोनिया कांग्रेस की सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि हंसी ठिठोली बहुत हो ली , अब भारत में किराना व्यापार के क्षेत्र में विदेशी निवेश को कोई नहीं रोक सकता । प्रधानमंत्री खुद भी अर्थ शास्त्र ही पढ़े हुये हैं और काफ़ी देर तक लोगों को यह विद्या पढ़ाते भी रहे हैं , इस लिये जब भी उनसे इस विषय पर बात करने के लिये कोई गया तो वे तुरन्त कापी पेंसिल लेकर समझाना शुरु कर देते थे कि किराना के क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों के आ जाने से किस प्रकार देश एक बार फिर स्वर्ण युग में पहुँच जायेगा । नौकरियाँ तो इतनी ज्यादा निकलेंगीं की लेने वाले हाथ कम हो जायेंगे । उनकी फ़ाइल में आंकड़े तो इतने कि यदि चाहें तो घंटा भर में सिद्ध कर दें कि भारत में ग़रीबी विल्कुल ही नहीं है , जो थोड़ी बहुत बची भी है उसका कारण यही है कि अभी तक साम्प्रदायिक ताकतों ने देश में किराना क्षेत्र में विदेशी पूंजी को नहीं आने दिया । लेकिन मनमोहन सिंह की दिक्कत है कि बहुत ऊँची आवाज में बोलते नहीं । इस लिये कई बार सुनने वाला प्रभावित नहीं होता । इस कमी को पूरा करने के लिये कपिल सिब्बल को साथ रखते हैं । अब क्येंकि किराना क्षेत्र में विदेशी निवेश का केस इज्जत का सबाल बन गया है , इसलिये तगड़ा वकील साथ रखना ही पड़ेगा । कपिल सिब्बल को पता है कि जिस सायल ने केस दिया है , उनका दायित्व उसी को जिताना है । धन्धे का एथिक्स है । हाँ यदि किराना व्यापार में विदेशी निवेश का विरोध करने वाला पक्ष पहले ही उन्हें हायर कर लेता तो निश्चय ही वे उतनी ही ऊँची आवाज में उनका केस लड़ते । ळेकिन इस केस में कपिल सिब्बल अपनी जीत के प्रति केस लड़ने से पहले ही आश्वस्त थे । क्योंकि विदेशी कम्पनियों को बुलाने का निर्णय तो पहले ही हो चुका था । मनमोहन सिंह फतवा दे ही चुके थे कि चाहे सरकार ही क्यों न गिर जाये विदेशी कम्पनियाँ तो इस देश में अब किराने की दुकानें खोलेंगी ही । कुछ लोगों को लगता था कि ऐसा हो नहीं सकता । मनमोहन सिंह और सोनिया गान्धी जमीनी हालात को नहीं समझते । मायावती की बहुजन समाज पार्टी और मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी कसम खाकर डटी हुईं हैं कि भारत में किराना के क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों को नहीं आने देंगे । आखिर इन के आने से सबसे ज्यादा नुक़सान तो बहुजन समाज को ही होगा जो छोटा मोटा ” वणज वपार” कर अपना काम चला लेता है । फिर मुलायम सिंह तो ठहरे खांटी समाजवादी । राम मनोहर लोहिया का नाम लिये बिना पानी तक नहीं पीते , वे भला छोटे मोटे मेहनतकशों का आशियाना कैसे उजाड़ सकते हैं ? लेकिन इस सबके बावजूद सोनिया कांग्रेस का आत्मविश्वास सभी को अाश्चर्यचकित करता था । यह भी मानना ही पड़ेगा कि अन्त में उनका आत्विश्वास ही जीता । मनमोहन सिंह किराना क्षेत्र में विदेशी दुकानों को देश में ले आने का प्रस्ताव संसद में पास करा ही गये । मायावती और मुलायम सिंह जो संसद में चीख़ चीख़ कर बता रहे थे कि विदेशी दुकान आ जाने से देशी दुकानें बन्द हो जायेंगी और बेरोजगारी बढ़ेगी । विदेशी दुकान के आने से देश की कृषि विदेशियों के हाथों गिरवी हो जायेगी और इससे देश की सरकार की स्वतंत्रता से निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होगी , वे जब सचमुच विदेशी दुकान को देश में प्रवेश करने से रोकने का वक्त आया तो देखते देखते फुस्स हो गये । लेकिन यह सारा ड्रामा हुआ कैसे ? इस को लेकर क्यास ही लगाये जा रहे थे । एक क्यास तो यही था कि मुलायम और मायावती दोनों की गर्दन सी बी आई के शिकंजे में फँसी हुई है । इसलिये सरकार जब ज़रुरत पड़ती है तो थोड़ा सा सी बी आई को मरोड देती है । अब जब पता ही है कि इन दोनों की जान इस तोते में है , तो दोनों वही भाषा फिर से बोलना शुरु कर देते हैं जैसी जादूगर चाहता है । इस बार तो जादूगर ने एक और रियायत दी हुई थी । भाषा जो मर्जी बोलते रहो लेकिन वोट के वक्त वही करो जैसा जादूगर कहे । बस जादूगर जीत गया । जादूगर अपना पिटारा और दर्शक अपना सामान समेट ही रहे थे कि एक रहस्योदघाटन ने सभी को चौंका दिया ।

यह रहस्योदघाटन अमेरिका से हुआ है । सात समुद्र पार से । क्योंकि भारत में किराना क्षेत्र में निवेश की सुविधा मिलने पर इस सात समुद्र पार से ही विदेशी दुकानें आने वाली हैं । ऐसी ही एक दुकान अमेरिका में वालमार्ट है । दुनिया की सबसे बड़ी दुकान । दुनिया के जिस देश में भी जाती है डायनासोर की तरह बाकी सभी को चट कर जाती है । लेकिन इसके बावजूद अमेरिका में एक ईमानदारी बची हुई है । काम धन्धें में पारदर्शिता है । उनकी मान्यताएँ भी भारत की मान्यताओं से थोड़ी अलग हैं । यहाँ जिसे रिश्वत और भ्रष्टाचार कहा जाता है , अमेरिका में उसे लाबिंग कहते हैं । वहाँ लाबिंग का धन्धा काफी सम्मानजनक माना जाता है । अत: वे इसे किसी को बताते हुये शर्माते नहीं । अपने यहाँ जिस को दलाल या दल्ला कह कर गाली दी जाती है , अमेरिका में उसे लायजन वर्क कहा जाता है और व्यवसाय में इसे ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है । तो इस वालमार्ट ने अमेरिका की सरकार को बताया कि उसने हिन्दोस्तान के बाजार में प्रवेश पाने के लिये उपयुक्त नीतियों बनें , इस काम के लिये एक सौ पच्चीस करोड़ रुपये अब तक खर्च किये हैं । भरे बाज़ार में जेबकतरा पकड़ा जाये तो पहले हल्ले में तो वह घबरा जाता है । यही हालत सोनिया कांग्रेस की हुई । वालमार्ट ने यह पच्चीस करोड रुपया आखिर किसको दिया ? इससे एक बात और सिद्ध हुई की किराना बाज़ार में विदेशी दुकानों को प्रवेश मिले इसके लिये विदेशी कम्पनियाँ यहाँ के नीति बनाने वालों और जनमत तैयार करने वालों को प्रभावित करने के लिये पैसा खर्च कर रही हैं । यह भारत के हितों के लिये बहुत ही घातक है । जब नरसिम्हा राव पर किसी ने आक्षेप किया था कि वे देश को बेच रहे हैं तो उन्होंने व्यंग्य से कहा था कि पहले बाज़ार में जाकर पता कर लो कि इस का कोई खरीददार है भी ? उस समय मनमोहन सिंह नरसिम्हा राव के वित्त मंत्री थे । उनको यह श्रेय तो जायेगा ही कि उन्होंने इतने सालों में इस के खरीददार तैयार कर लिये हैं । अब तो भाव इतना बढ़ गया है कि खरीददार १२५ करोड रुपया खर्च करके लाबिंग भी कर रहा है । वालमार्ट तो केवल एक कम्पनी है , बाकी विदेशी कम्पनियाँ इस लाबिंग में कितना पैसा खर्च कर रही हैं कौन जाने ?

कपिल सिब्बल तो वकील हैं । क्या बतायेंगे कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य क्या कहता है कि लाबिंग के वालमार्ट के इस धन्धे में किस किस ने माल लिया होगा ? कौन ऐसे लोग हैं जो इस देश में वालमार्ट को लाने के लिये सिर धड़ की बाज़ी लगाये हुये थे ? कौन ऐसे लोग हैं जो वालमार्ट की खूबियों से अखबारों के पन्ने काले कर रहे थे ? कौन ऐसे लोग हैं जिन्हें किराना क्षेत्र में विदेशी निवेश आने से किसान खुशहाल दिखाई देने लगे थे ? आखिर वालमार्ट किसको पैसा खिला कर अपने पक्ष में नीतियां बनाने का सफल प्रयास कर रहा था ? कपिल सिब्बल ही बतायेंगे कि मुकद्दमे में परिस्थितिजन्य सबूत की कितनी कीमत होती है ? क्या सिब्बल बतायेंगे कि इस पूरे धन्धे में शक की सूई किसकी ओर संकेत करती है ? वैसे तो सरकार कह रही है कि वह जाँच करवाने के लिये तैयार है । लेकिन जाँच तो उसने बोफोर्स रिश्वत केस में भी करवा दी थी । तब उसका सारा जोर क्वात्रोची को बचाने में लगा था और उसको उसने सफलता पूर्वक बचा भी लिया था । कहीं अब भी जाँच लाभार्थियों को बचाने के लिये ही तो नहीं होगी, क्योंकि इस बार शक की सूई उनकी ओर भी जा रही है जिन पर जाँच का जिम्मा है ।

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डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्‍बत सहयोग मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक के नाते तिब्‍बत समस्‍या का गंभीर अध्‍ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्‍ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्‍थान समाचार से जुडे हुए हैं।

2 COMMENTS

  1. मेरी टिप्पणी में एक वाक्य में” थोक” शब्द छूट गया है जो वाक्य इस प्रकार है,” क्या आप बता सकते हैं कि हमारे भारतीय और खुदरा व्यापारी घटिया और मिलावटी सामग्री( नकली दवाईयां,यूरिया और देजर्तेंत से बने दूध ,चमड़े के टूकड़े मिले हुए चाय,घोड़े की लीद मिले हुए मसाले,ईंट के बुरादे मिली हुई हल्दी,केरोसीन मिला हुआ डीजल इत्यादि) सरे आम बेचने के लिए हमारे राजनेताओं और सरकारी कर्मचारियों को नित्य कितना रिश्वत देते हैं?”
    उसकी जगह यह होना चाहिए था कि ,” क्या आप बता सकते हैं कि हमारे भारतीय थोक और खुदरा व्यापारी घटिया और मिलावटी सामग्री( नकली दवाईयां,यूरिया और देजर्तेंत से बने दूध ,चमड़े के टूकड़े मिले हुए चाय,घोड़े की लीद मिले हुए मसाले,ईंट के बुरादे मिली हुई हल्दी,केरोसीन मिला हुआ डीजल इत्यादि) सरे आम बेचने के लिए हमारे राजनेताओं और सरकारी कर्मचारियों को नित्य कितना रिश्वत देते हैं?”

  2. डाक्टर अग्निहोत्री से केवल एक प्रश्न.वालमार्ट ने तो भारत के बाजार में प्रवेश पाने के लिए १२५ करोड़ रूपये खर्च किये.क्या आप बता सकते हैं कि हमारे भारतीय और खुदरा व्यापारी घटिया और मिलावटी सामग्री( नकली दवाईयां,यूरिया और देजर्तेंत से बने दूध ,चमड़े के टूकड़े मिले हुए चाय,घोड़े की लीद मिले हुए मसाले,ईंट के बुरादे मिली हुई हल्दी,केरोसीन मिला हुआ डीजल इत्यादि) सरे आम बेचने के लिए हमारे राजनेताओं और सरकारी कर्मचारियों को नित्य कितना रिश्वत देते हैं?मेरे विचार से यह प्रतिदिन दिए जानेवाला रिश्वत इस पूरे लॉबिंग की रकम से ज्यादा ही होता होगा.

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