वैदिक प्रकरण से सीखें पत्रकार

-सिद्धार्थ शंकर गौतम-
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक| हिंदी भाषी पत्रकारों में प्रखर हस्ताक्षर| एक ऐसा पत्रकार जो स्वयं पत्रकारों की पूरी जमात का आदर्श हो| पर पिछले एक हफ्ते की सुर्ख़ियों पर नज़र दौड़ाएं तो यह आदर्श ही अब विवादित होकर खुद को जांच के घेरे में आने से बचाने हेतु प्रयासरत है| दरअसल एक उच्चस्तरीय कमेटी के साथ पाकिस्तान यात्रा पर गए डॉ. वैदिक ने जमात-उत-दावा के सरगना और आईएसआई के प्रियपात्र हाफिज सईद से मुलाक़ात की और उस मुलाक़ात को पत्रकारीय धर्म बताकर प्रचारित-प्रसारित करवाया| डॉ. वैदिक को यह उम्मीद कतई नहीं होगी कि उनकी इस कथित सौजन्य भेंट से भारत में इतना बवाल मचेगा कि खुद एक पत्रकार अपने कृत्य से संपादकीय पृष्ठों के लेखों में स्थान पाकर आलोचना का पात्र बनेगा| डॉ. वैदिक ने खुद पर उठ रहे सवालों के जवाब भी ऐसे दिए, मानो वे अभी पत्रकारिता में पढ़ाई के दौर से गुजर रहे हों| मान भी लिया जाए कि डॉ. वैदिक ने बतौर पत्रकार आतंकी हाफिज सईद से मुलाक़ात की तो उस मुलाक़ात की खबर या इंटरव्यू कहां है? फिर यदि उन्होंने मुंबई हमलों में वांछित और अमेरिका द्वारा विश्व के दुर्दांत आतंकियों में शुमार हाफिज सईद से मुलाक़ात की तो उनकी यह भेंट किसने करवाई? सभी जानते हैं कि हाफिज सईद को पाकिस्तान में उच्चस्तरीय सुरक्षा प्राप्त है| कहा जाता है कि उसकी सुरक्षा पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से भी कड़ी है और बिना आईएसआई के उच्चाधिकारियों की अनुमति के, उससे कोई नहीं मिल सकता| फिर पाकिस्तान के उच्चायोग को भी इस मुलाक़ात की भनक न होना डॉ. वैदिक के प्रति संदेह उत्पन्न करता है| डॉ. वैदिक से एक गलती यह भी हुई कि उन्होंने अपनी इस मुलाक़ात को अपने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथियों द्वारा पहले तो महिमामंडित करवाया और जब इस पर उनकी छीछालेदर होने लगी तो उन्होंने अपने उसी रूप को प्रस्तुत करना शुरू किया जिसके लिए वे कई दशकों से कुख्यात रहे हैं| अपनी आत्मप्रशंसा सुनने के आदी डॉ. वैदिक ने पत्रकारिता तो यूं भी काफी पहले ही छोड़ दी थी|

१०-१२ वर्षों से तो वे वैसे भी राजनीतिक लाइजनिंग का काम कर रहे थे| कभी इंदिरा गांधी के करीबी तो कभी राजीव के सखा, कभी पीवी नरसिम्हा के हिंदी गुरु तो कभी अटल बिहारी वाजपेयी के सलाहकार, डॉ. वैदिक अपने इन्हीं रूपों से खुद को देश के समक्ष प्रस्तुत करते रहे हैं| हां, यह बात और है कि उपरोक्त किसी भी व्यक्ति ने इनके दावे की पुष्टि नहीं की किन्तु डॉ. वैदिक ने हमेशा खुद को महिमामंडित किया है| एक समय हिंदी भाषा के लिए लड़ने वाले डॉ. वैदिक वैसे तो किसी परिचय के मोहताज नहीं थे किन्तु सत्ता की नजदीकी ने उन्हें हमेशा आकर्षित ही किया है| डॉ. वैदिक में एक गुण यह भी है कि ये एक ही वक़्त में लोहिया के समाजवाद के अनुगामी, राहुल गांधी के प्रियपात्र और संघ प्रमुख मोहन भागवत के सखा हो सकते हैं| यह बात और है कि इनका यह गुण सिर्फ इन्हीं को पता है, अन्य उल्लिखित हस्तियां शायद इससे परिचित न हों| खैर डॉ. वैदिक की हाफिज सईद से मुलाक़ात पर भाजपा और संघ ने तो पल्ला झाड़ा ही, उनके सखा मुलायम सिंह यादव भी उनसे कन्नी काटते दिखे| देखा जाए तो डॉ. वैदिक का यूं भी संघ से कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा है| वे राष्ट्रवादी लेखन अवश्य करते हैं पर उसका यह मत नहीं होना चाहिए कि उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव है| लोकसभा में राहुल गांधी ने डॉ. वैदिक को संघ का आदमी बताकर बेवजह इस मुद्दे से भटकाने और समाज को भड़काने का काम किया है| मूल मुद्दे से इतर इस मुलाक़ात को सनसनीखेज बनाकर कांग्रेस न जाने कौन सी राजनीति कर रही है?

फिर जहां तक शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस द्वारा डॉ. वैदिक के विरोध का सवाल है तो यह विशुद्ध रूप से महाराष्ट्र विधानसभा से जुड़ा मामला है| चूंकि हाफिज सईद २६/११ के मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड है और महाराष्ट्र में उसके प्रति गुस्से और नफरत के भाव हैं लिहाजा डॉ. वैदिक के मामले को राजनीतिक नफे-नुकसान की तर्ज़ पर देखा जा रहा है| जहां तक इस कथित मुलाक़ात की बात है तो अब राजनीतिक दबाव के चलते डॉ. वैदिक से आईएनए और आईबी पूछताछ का खाका तैयार कर रही हैं| कथित ह्रदय परिवर्तन से शुरू हुआ यह खेल अब डॉ. वैदिक की पत्रकारिता को तो लील ही लेगा| उन्हें वैसे भी गंभीरता से नहीं लिया जाता था और इस प्रकरण के बाद तो उनका नामलेवा भी दिखना मुश्किल है| हाल ही में ऐसी खबर आई थी कि वैदिक जी ने भाजपा पर खुद को राज्यसभा में भेजे जाने का दबाव बनाया था, किन्तु पार्टी द्वारा उनकी मांग दरकिनार कर देने से वे पार्टी के एक धड़े से काफी नाराज भी हुए थे| हो सकता है यह खबर भी उन्हीं की कृपा का परिणाम हो? डॉ. वैदिक प्रकरण का हल जो भी निकले, भावी या नए नवेले पत्रकारों के लिए एक सबक ज़रूर है| पत्रकार को अपनी ज़ुबान पर लगाम तो रखनी ही चाहिए, सत्ता से अपनी नजदीकियों को भी उजागर नहीं करना चाहिए| डॉ. वैदिक के मित्रों और शुभचिंतकों की सूची देखकर उनके दुश्मनों की संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है| फिर पत्रकार भी एक इंसान है| यदि कोई गलती हो भी जाए तो उसका स्पष्टीकरण दिया जा सकता है किन्तु गलती के बाद भी खुद को सही ठहरना किसी भी सूरत में सही नहीं माना जाएगा| डॉ. वैदिक भी लगातार यही गलती दोहरा रहे हैं और अब भी सुधरने के मूड में नहीं दिखते| इस मुद्दे पर सरकार का रवैया भी अफसोसजनक कहा जाएगा| यदि वैदिक-सईद मुलाक़ात से सरकार या प्रधानमंत्री पर सवाल उठते हैं तो उसे अपना पक्ष मजबूती से रखना चाहिए| यह नहीं होना चाहिए कि एक चेहरा उनसे पल्ला झड़ाए तो दूसरा उनसे संबंधों के आधार पर उनका साथ दे| इस बेवजह के मुद्दे को सरकार और विपक्ष को मिलकर जल्द से जल्द सुलझाना चाहिए ताकि सदन की कार्रवाई इस मुद्दे की वजह से बाधित न हो और सिर्फ जनहितैषी मुद्दे ही चर्चा का विषय बनें|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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