-शैलेन्द्र कुमार
ये एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि जो विचार मानव समाज के अनुकूल नहीं होंगे वो स्वतः ही ख़त्म हो जायेंगे। वामपंथ ऐसी ही एक फांसीवादी विचारधारा है, जो जहाँ भी उभरी भारी जन-धन की तबाही लेकर आयी लेकिन जल्द ही लोगों को इस असफल विचारधारा का भान हो गया और अब ये खात्मे की और है। फ़िलहाल ये दुनिया के मात्र ६ देशों(चीन, बेलारूस,उत्तर कोरिया, क्यूबा, लाओस, वियतनाम) में ही सिमट कर रह गयी है। लगभग २० के आस पास देशों(अल्बानिया, मंगोलिया, पोलैंड, बुल्गारिया, कम्बोडिया, कांगो, हंगरी, रोमानिया, सोमालिया, युगोस्लाविया, पूर्वी जर्मनी, बेनिन अफगानिस्तान, दक्षिण यमन,सेज़ोस्लोवाकिया, मोजाम्बिक, एथिओपिआ, अंगोला और सोवियत संघ) ने इस फांसीवादी विचारधारा को अलविदा कह दिया है। चीन में भी अब वामपंथ खात्मे की ओर है और उसमे भी पूंजीवाद(साम्यवादी पूंजीवाद) ने अपनी जगह बना ली है। चीन के वामपंथियों ने वामपंथ के उन्हीं सिद्धांतों को अपना रक्खा है, जिससे उनकी सत्ता बरक़रार रहें और ये इस बात का भी उदाहरण है कि धुर साम्यवादी विचार किसी का भी भला नहीं कर सकते। हिटलर को तानाशाह और फांसीवादी कहने वाले खुद के गिरेबान में झांकना भूल जाते है स्टालिन, सोवियत संघ (८ मिलियन से लेकर ६१ मिलियन), माओत्से तुंग, चीन(४० मिलियन से ७० मिलियन), कम्पूचिया की साम्यवादी पार्टी, कम्बोडिया(१.२ मिलियन से लेकर २.२ मिलियन) लोगो की हत्या अपने शासन काल में इन महानुभावों और इनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने किये। अगर वामपंथियों को ये आकड़े कम लगते हो तो ठीक लेकिन अगर कोई शंका हो तो यहाँ चटका लगाये।
https://en.wikipedia.org/wiki/Mass_killings_under_Communist_regimes
https://en.wikipedia.org/wiki/Stalin
https://en.wikipedia.org/wiki/Mao
https://en.wikipedia.org/wiki/Khmer_Rouge
लेकिन इनका एक महान सिद्धांत “वामपंथी हिंसा, हिंसा न भवति।।” इनके सारे पापों को ढक लेता है। ये तो कुछ उदाहरण है जेएनयू में प्रवेश लेने वाले जिन बच्चों के भोलेपन का ये फायदा उठाते हुए उन्हें वामपंथी चश्मा पहना देते है, वो अगर इनकी सच्चाई जान ले तो ये वामपंथी उन्हें क्या नास्तिक बनायेंगे उनका स्वतः ईश्वर पर से विश्वास उठ जायेगा।
वामपंथ के जिस स्वघोषित स्वर्णिम इतिहास को वामपंथी अपने दिल में बसाये रखना चाहते है, उसे दुनिया के सभी लोग काला इतिहास मानते है। पूरी बींसवी सदी इनके खून-खराबे से रक्त रंजित रहीं और ये नारे लगाते रहे की वामपंथ एक महान विचार है और इससे पूरी दुनिया के सभी लोगो में आर्थिक समानता आ जाएगी। इनके इस झूठे प्रचार में दुनिया के कई देश और उसके बुद्धिजीवी आ गए और जब तक उन्हें ये पता चला की ये विचारधारा न केवल अनुत्पादक है बल्कि उनके देश की समृद्धि के लिए घातक भी है, तब तक देर हो चुकी थी लाखों लोग इसकी हिंसा के शिकार हो चुके थे जैसे कई बार ऐसा होता है कि व्यापारी अपने लाभ के लिए किसानों को फसलों के बीज ये कह कर बेच देता है कि फलां बीज बहुत ही उत्पादक है। ये सीधे विदेश से आयात किया गया है और इसका इस्तेमाल करते ही उसकी दरिद्रता दूर हो जाएगी और इसके लिए वो प्रचार साधनों का इस्तेमाल करता है और कुछ देशी-विदेशी क्षद्म विद्वानों का सहारा उन्हें कुछ पैसा देकर और कुछ विदेशी पुरस्कारों की व्यवस्था कर ले लेता है। और किसानों को जब तक सच्चाई पता चलती है तब तक देर हो चुकी होती है। वामपंथी विचार किसी खेंत में उग रहें खर-पतवार की तरह होते है, जो न केवल अनुत्पादक होते है बल्कि खेत में उगने वाली अन्य फसल को भी चौपट कर देते है। एक अनपढ़ किसान भी इस बात को समझता है और अपनी फसल को बचाने के लिए इन खर-पतवारों को जड़ से उखाड़ने में लग जाता है। इसलिए दुनिया के हर देश से इनको उखाड़ा जा रहा है। भारत में भी कुछ खर-पतवार बची रह गयी है, जरूरत इस बात की है की देश के किसान(राष्ट्रवादी) अपने कार्य में बिना थके बिना रुके लगे रहें नहीं तो इस खर-पतवार को फिर भयानक रूप लेने में समय नहीं लगेगा।
सभी राष्ट्रवादियों को सचेत हो जाना चाहिए कि इस खर-पतवार की कोई दवा नहीं इसलिए समय और धन दोनों का इस्तेमाल इसको जड़ से उखाड़ने में करें न कि इसका इलाज़ करने में क्योंकि देश कि कुछ राष्ट्रविरोधी शक्तियों ने इन्हें दवा देकर अपने अनुसार नियंत्रित करने कि कोशिश कि लेकिन ये खर-पतवार एक नए घातक रूप(माओवाद) रूप में हमारे सामने आ गयी है। इनको नियंत्रित करना है तो इनको समूल नाश करना ही एक विकल्प है।
ये विचार न केवल मानव के बल्कि प्रकृति के सामान्य सिद्धांतों के भी विपरीत है, जब एक खेत में बहुत सारें फलों, सब्जिओं और अनाजों कि खेती होती है तो क्या सभी फसलों को एक बराबर जल, वायु, मृदा और सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है और क्या वो एक बराबर उत्पादन भी करते है और क्या उनके उत्पाद के सभी गुणों में भी समानता होती है, अगर नहीं तो मानवीय विचारों की फसल के ऊपर इन सिद्धांतों को कैसे लागू किया जा सकता है। १ किलो चावल पैदा करने के लिए लगभग २५०० लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि १ किलो आलो के लिए मात्र १३३ लीटर की, जबकि दोनों उत्पादों में बहुत सी समानताएं है तो क्या चावल जितना पानी आलू में भी डाल दे या चावल से भी आलू के समानुपातिक उत्पाद की उम्मीद करें। सभी फसलों को जल, वायु, मृदा और सूर्य का प्रकाश मिलता है, लेकिन नारियल, सरसों, मूंगफली और सूरजमुखी के पेड़-पौधे उसी में से अलग अलग तरह के तेलों का उत्पादन करती है तो आवंला तेल के साथ बहुमूल्य लवणों का। हमें पीपल और बरगद के विशाल वृक्षों की भी आवश्यकता है और प्याज, लहसुन, धनियाँ और पुदीने की भी। कुछ वामपंथी ये दावा करते है कि वामपंथ विचारों की विविधताओं से भरा हुआ है, लेकिन उन्हें ये समझना होगा की चावल की कितनी भी किस्में क्यों न पैदा हो जाएँ उससे मनुष्य की कुछ आवश्यकता तो पूरी हो सकती है, लेकिन सारी शारीरिक आवश्यकताए नहीं पूरी की जा सकती। वैसे ही वामपंथ के विचार मानव की कुछ बौद्धिक आवश्यकताओं को ही पूरा कर सकते है(हालाँकि इसमें भी मुझे संदेह है)। एक मानव और एक भारतीय होने के नाते भी मेरा ये मानना है कि भारत में भी वो दिन दूर नहीं जब सभी को अपने आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए सामान अवसर मिलेंगे सौभाग्य से इतने भौतिक पतन के पश्चात आज भी भारत कि बगियाँ में सभी विचारों को सामान अवसर मिलते हैं। जगत में कोई भी मानवीय सिद्धांत प्रकृति के सिद्धांतों के उपर नहीं है चाहे वो दुनिया के किसी भी सर्वमान्य महापुरुष द्वारा ही क्यों न उत्पादित किया गया हो तो मार्क्स-लेनिन क्या चीज़ है। प्रकृति का सिद्धांत कहता है कि सभी को समान अवसर मिलने चाहिए न की मार-काट के सभी को एक समान बनाया जाये।
ईस्लाम तथा कट्टर वामपंथ अपने लक्ष्यो को प्राप्त करने के लिए हिंसा को जायज ठहराता है। सभ्य समाज मे ऐसी विचारधाराओ पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए।……. और जब उनके खुद के विरुद्ध हिंसा हो तो अपने खुद के प्रायोजित तथाकथित मानवधिकारवादी संगठनो से बवाल करवाना उनकी रणनिति है।
शैलेन्द्र कुमार Says: November 7th, 2010
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शैलेन्द्र कुमार जी, आपने उत्तर के अंत में कहा है :
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“हाँ अपने संघ द्वारा प्रायोजित हिंसा आकड़े मांगे है मुझे तो नहीं मिले उम्मीद है ये आप हमें उपलब्ध करा देंगे”
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***** अब मैं आपको अपना प्रश्न दुबारा बताता हूँ:*****
“भारत में साम्यवादियोँ द्वारा हत्या कितने लोगों की हो चुकी है ?
केरल, पश्चिम बंगाल व् भारत के अन्य प्रान्तों में ?
कितने RSS के मारे ? ”
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मेरा ऊपरी supplementary प्रश्न explained : ” साम्यवादियोँ द्वारा ….. कितने RSS के मारे ? ”
(माफ़ कीजिए पहले साफ़ नहीं पूछ पाया)
मंशा है : शहीद RSS स्वयं सेवकों की संख्या की (Number of RSS swyamsevaks martyred by leftists in the country)
आशा है कि यह सूचना हेडगेवार भवन में उपलब्ध होगी.
– अनिल सहगल –
Ravindra Nath Says:November 7th, 2010 at 3:21 am
सहगल जी – बंगाल मे कितने लोग मरे हैं यह तो आपके (वामपंथियों के) ही चचेरे भाई (नक्सलवादी) बता देंगे
Ravindra Nath जी, आपने मुझे वामपंथी माना; आप गलती खा गए. वैसे मुझे पता लगे कि आपने मुझे किस कारण से वामपंथी होने का अनुमान लगा लिया. मैं उस लक्षण को बदल दूंगा. आपके उत्तर की प्रतीक्षा में.
– अनिल सहगल –
सहगल जी – बंगाल मे कितने लोग मरे हैं यह तो आपके (वामपंथियों के) ही चचेरे भाई (नक्सलवादी) बता देंगे, बचे खुचे आंकडे चुनाव के दौरान ममता बता देंगी। केरल मे जितना राजनीतिक हिंसा होती है उसका लेखा जोखा भी अखबारों से मिल जाएगा, जिन अखबारों मे RSS के द्वारा की गई हिंसा के बारे मे पढते हैं जरा उसी मे केरल की राजनीतिक हिंसा भी पढ लिया करो। इन दोनो राज्यों को छोड भी दो तो देश के १/३ हिस्से मे नक्सली हिंसा तो चतुर्दिक दृष्टव्य है, उसके बारे मे क्या कहना है? कहाँ नक्सली और कहाँ RSS? RSS कभी भी इस क्षेत्र मे वामपंथियों की बराबरी नहीं कर सकती।
@अनिल सहगल
भारत में नक्सली हिंसा में हुई मौतें
Period Civilians Security forces Insurgents Total per period
1989-2001 1,610 432 1,007 3,049
2002 382 100 141 623
2003 410 105 216 731
2004 466 100 87 653
2005 524 153 225 902
2006 521 157 274 952
2007 460 236 141 837
2008 399 221 214 834
2009 586 317 217 1,120
2010 528 250 212 990
TOTAL 5,886 2,071 2,734 10,691
Period Civilians Security forces Insurgents Total per period
1996 N/A N/A N/A 156
1997 202 44 102 348
1998 118 42 110 270
1999 115 36 212 363
2000 N/A N/A N/A 50
2001 N/A N/A N/A 564
ये तो केवल नक्सलियों द्वारा की गयी ज्ञात हत्याओं के आकड़े है अभी केरल, पश्चिम बंगाल, मणिपुर और त्रिपुरा में किये गए राज्य प्रायोजित हिंसा के आकड़े उपलब्ध नहीं हो पाए है मिलते ही आपको सूचित करूंगा
हाँ अपने संघ द्वारा प्रायोजित हिंसा आकड़े मांगे है मुझे तो नहीं मिले उम्मीद है ये आप हमें उपलब्ध करा देंगे
“…जेएनयू में प्रवेश लेने वाले जिन बच्चों के भोलेपन का ये फायदा उठाते हुए उन्हें वामपंथी चश्मा पहना देते है, वो अगर इनकी सच्चाई जान ले तो ये वामपंथी उन्हें क्या नास्तिक बनायेंगे उनका स्वतः ईश्वर पर से विश्वास उठ जायेगा…”
Excellent x 10 🙂
सहगल साहेब….अपनी हिंसा को लाशो के तराजू पर तोल कर क्या अपने पापो का लेखा जोखा करके यह कहने की कोशिश कर राहे है की भारत के साम्यवादी/वामपंथी कम कमीने है? बंगाल, केरला भारत के सबसे पचड़े राज्यों की श्रेणी मई आ चुके है… भारतीय वामपंथी दुनिया के सबसे घटिया दर्जे के जानवर है…भारत के १६ टुकड़े करने आ आव्हान करने वाली मानसिकता का पूर्ण रूओप से विनाश होना ज़रूरी hai
वामपंथी हिंसा, हिंसा न भवति।। – by – शैलेन्द्र कुमार
लोगों की हत्या :
– स्टालिन, सोवियत संघ (८ मिलियन से लेकर ६१ मिलियन),
– माओत्से तुंग, चीन(४० मिलियन से ७० मिलियन),
– कम्पूचिया की साम्यवादी पार्टी, कम्बोडिया(१.२ मिलियन से लेकर २.२ मिलियन)
लोगो की हत्या अपने शासन काल में इन महानुभावों और इनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने किये।
———————शैलेन्द्र कुमार जी से मेरा supplementary प्रश्न ———————–
भारत में साम्यवादियोँ द्वारा हत्या कितने लोगों की हो चुकी है ?
केरल, पश्चिम बंगाल व् भारत के अन्य प्रान्तों में ?
कितने RSS के मारे ?
– अनिल सहगल –