कृषि कानूनों की वामपंथी व्याख्या

प्रातःकाल लाल झंडा उठाए द्रुत गति से दौड़ते हुए, वामपंथी यूनियन के नेता जी को देख एक युवक ने पूछा, नेताजी कहाँ दौड़े जा रहे हो ? नेताजी ने कहा, धरना देने, चलो आप भी चलो | युवक ने पूछा क्यों ? वे बोले, अपने खेत नहीं बचाने क्या | युवक बोला, जरा ठहरो विस्तार से समझाओ क्या हुआ मेरे खेतों को ! नेताजी ने अपना लाल झंडा पेड़ से टिकाया,बैनर-पोस्टर चेले को दिए फिर बोले मोदी सरकार काले कृषि कानून ले आई है | किसानों के खेत अम्बानी अडानी को देने जा रही है उसी को रद्द करवाना है | जमीन बचानी है तो हमारे साथ हड़ताल पर चलो | खेती चली गई तो खाओगे क्या ? अम्बानी अडानी खेत ले जाएँगे सुनते ही युवक का  रक्त उवलने लगा वह भी हड़ताल में जाने को तैयार हो गया | युवक ने कहा उन काले  कानूनों को दिखाइए मैं उनमें अभी आग लगा दूँगा | नेताजी बोले मेरे पास फोटो कॉपी नहीं है | युवक ने तत्काल गूगल सर्च कर कृषि क़ानून पढ़ना आरंभ किया, तो उसका माथा ठनक गया | अब आगे की सुनिए –

नेताजी आप कहरहे थे, इस कानून से हमारे खेतों पर अम्बानी अडानी का कब्जा हो जाएगा पर इसमें तो अम्बानी अडानी का नाम ही नहीं है |

नेताजी, नाम तो प्रतीकात्मक हैं, भोले भाले किसानों और आप जैसे नौजवानों को समझाने के लिए, इसमें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को पढ़िए | युवक ने कहा, इसीको पढ़ रहा हूँ इसमें लिखा है कि कॉन्ट्रैक्ट फसल का होगा खेतों का नहीं | खेत न गिरवी रखा जाएगा और नहीं बंधक | इसमें तो यह भी लिखा है कि प्राकृतिक आपदा से फसल नष्ट होने पर भी किसान को कोई क्षति नहीं होगी |

नेताजी ने बात काटते हुए कहा आप नहीं समझेंगे इसे छोड़िये, देखिये सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समाप्त कर के किसानों को बर्बाद कर दिया है | 

युवक ने तीनों कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) क़ानून, कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार क़ानून एवं आवश्यक वस्तु (संशोधन) क़ानून 2020 ध्यान से पुनः पढ़े फिर कहा, इसमें तो कहीं भी एमएसपी शब्द लिखा ही नहीं है  और आप कह रहे हैं समर्थन मूल्य समाप्त कर दिया | झूठ बोलकर भ्रम मत फैलाइए जो लिखा है उसी पर स्पष्ट चर्चा कीजिए  |

इसबार नेताजी का चेला बोला, कामरेड इन्हें बताओ कि सरकार प्राइवेट मंडी खोलकर, एपीएमसी (कृषि उपज मंडी) बंद करने जा रही है जब मंडी ही नहीं रहेगी तो समर्थन मूल्य देगा कौन ?

युवक ने कहा, छोटे कामरेड जी सभी चीजों को एक साथ मिलाकर गड्ड-मड्ड मत कीजिए |  प्राइवेट मंडी और एमएसपी का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है | सरकार को राष्ट्रिय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए), 2013 के अनुसार देश की लगभग 80 करोड़ गरीब  जनता को सस्ता राशन (दो रु किलो गेंहूँ, तीन रु किलो चावल), विद्यालयों में मिड डे मील, आँगन बाड़ी में पोषण आहार आदि बाँटना होता है | इसके लिए सरकार सदैव ही अनाज खरीदती रहेगी अतः समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद बंद हो ही नहीं सकती | प्राइवेट मंडीके आने से आढ़तिये/कमीशन एजेंटों का एकाधिकार अवश्य समाप्त हो जाएगा किसान को फसल बेचने के दो विकल्प मिलेंगे | आढ़तिये चाहें तो कृषि मंडी को उन्नत बनाने के लिए सरकार से बात करें, न कि किसान के कंधे पर बन्दूक रख कर कानून को रद्द कराने की जिद |

अब नेताजी थोड़े उत्तेजित हो कर बोले आप समझ ही नहीं रहे, किसान बर्बाद हो जाएँगे |

युवक ने कहा, आपको पता है,किसान अभी कितने समृद्ध हैं, प्रतिदिन लगभग 45 किसान आत्महत्या कर लेते हैं क्यों ? केवल पिछले बीस वर्षों का हिसाब लगाओ तो अब तक, तीन लाख छियालीस हजार पाँच सौ अड़तीस  किसान आत्महत्या कर चुके हैं | अब इससे अधिक और क्या बर्बाद होंगे | पढ़े लिखे नव युवक कृषि से दूर भागते हैं क्यों ? वे पाँच-सात हजार की नौकरी कर लेते हैं पर खेती नहीं करना चाहते क्यों ? इसमें छोटे किसान को न धन मिलता है न सम्मान | अपना ही अनाज लिए-लिए  दो-दो  किलोमीटर लम्बी लाइन में चार-पाँच दिन तक खड़े रहो या मंडी में पड़े रहो | आढ़तिये के हाथ जोड़ो कमीशन दो चार-पाँच  महीने बाद बैंक में पैसा आएगा | क्या इसके स्थान पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होनी चाहिए ? कृषि व्यवस्था में सुधार क्यों नहीं होना चाहिए ?

नेताजी थोडा  सोचते हुए, हम सुधार के विरोधी नहीं हैं पर हमें मोदी पर भरोसा नहीं है, देखों पंजाब और हरियाणा के किसान भी इसे रद्द कराने पर तुले हैं |

युवक ने कहा, आपको मोदी पर भरोसा नहीं है तो ये आपकी समस्या है, आप लेनिनवादी हैं और मोदी जी राष्ट्रवादी, अर्थात आप विचारधारा के लिए कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं किसानों के लिए नहीं | रहा प्रश्न पंजाब और हरियाणा के किसानों का तो सुनिए हरित क्रांति के लिए इन्हीं किसानों को चुना गया था | इन्हें सरकार ने प्रोत्साहन दिया,इन्होने भी अथक श्रम किया आज ये लोग बहुत ही संपन्न और अमीर हो चुके हैं | अब ये लोग यथा स्थिति चाहते हैं, नए सुधार और परिवर्तन से आशंकित हैं क्योंकि भारत सरकार जिस गेंहूँ,चावल की खरीद करती है ये दोनों राज्य, उसके सबसे बड़े उत्पादक हैं | जिन 6 प्रतिशत किसानों को समर्थन मूल्य का लाभ मिलता है उनमें भी सबसे बड़े लाभार्थी ये ही लोग हैं | इन्हें पट्टी पढ़ाई गई है कि प्राइवेट मंडी के आने से सरकारी खरीद और एमएसपी  समाप्त हो जाएगी जो कि संभव ही नहीं है | मैं आप को बता चुका हूँ आप उन्हें बता देना |

अब नेताजी के पास कहने को कुछ नहीं बचा वे अपना लाल झंडा उठाते हुए खिसकने लगे, जाते-जाते बोल पड़े तो क्या इनमें संशोधन की भी आवश्यकता नहीं है |

युवक ने कहा, संशोधन की आवश्यकता है रद्द करने की नहीं | कोई भी कानून आदर्श नहीं होता उसमें सुधार की संभावना सदैव बनी रहती है | इसमें भी कुछ सुधार होने चाहिए जैसे किसानों को विवाद की स्थिति में न्यायालय में जाने का अधिकार मिले | फसल खरीदने वाले के पंजीयन की व्यवस्था हो आदि सुधारों के साथ इसका स्वागत किया जाना चाहिए | विरोध करने वाले किसानों को ‘हाँ और ना’ की जिद छोड़ संशोधन पर चर्चा करनी चाहिए…युवक बोले जा रहा था किन्तु कामरेड जी तो दौड़ चुके थे भोले भाले किसानों और नवयुवकों की तलाश में |

डॉ.रामकिशोर उपाध्याय

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