pravakta.com
चलो एक नई उम्मीद बन जाऊँ... - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
प्रभुनाथ शुक्ल चलो एक नई उम्मीद बन जाऊँ!बसंत सा बन मैं भी खिल जाऊँ!! प्रकृति का नव रूप मैं हो जाऊँ!गुनगुनी धूप सा मैं खिल जाऊँ!! अमलताश सा मैं यूँ बिछ जाऊँ!अमराइयों में मैं खुद खो जाऊँ!! धानी परिधानों की चुनर बन जाऊँ!खेतों में पीली सरसों बन इठलाऊं!! मकरंद सा…