आइये जाने ज्योतिष में ग्रहों का महत्त्व ; Importance of planets in jyotish

ज्योतिष में सूर्य का महत्त्व—- —

भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य को समस्त ग्रहों का राजा माना जाता है और इसे समस्त प्राणी जगत को जीवन प्रदान करने वाली उर्जा का केंद्र भी माना जाता है। सूर्य को ज्योतिष की गणनाओं के लिए पुरुष ग्रह माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में सूर्य को आम तौर पर उसके पिता का प्रतिनिधि माना जाता है जो उस व्यक्ति के इस प्राणी जगत में जन्म लेने का प्रत्यक्ष कारक होता है ठीक उसी प्रकार जैसे सूर्य को इस प्राणी जगत को चलाने वाले प्रत्यक्ष देवता का रुप माना जाता है। कुंडली में सूर्य को कुंडली धारक के पूर्वजों का प्रतिनिधि भी माना जाता है क्योंकि वे कुंडली धारक के पिता के इस संसार में आने का प्रत्यक्ष कारक होते हैं। इस कारण से सूर्य पर किसी भी कुंडली में एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने पर उस कुंडली में पितृ दोष का निर्माण हो जाता है जो कुंडली धारक के जीवन में विभिन्न प्रकार की मुसीबतें तथा समस्याएं पैदा करने में सक्षम होता है।

पिता तथा पूर्वजों के अतिरिक्त सूर्य को राजाओं, राज्यों, प्रदेशों तथा देशों के प्रमुखों, उच्च पदों पर आसीन सरकारी अधिकारियों, सरकार, ताकतवर राजनीतिज्ञों तथा पुलिस अधिकारीयों, चिकित्सकों तथा ऐसे कई अन्य व्यक्तियों और संस्थाओं का प्रतिनिधि भी माना जाता है। सूर्य को प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा का, जीवन दायिनी शक्ति का, इच्छा शक्ति का, रोगों से लड़ने की शक्ति का, आँखों की रोशनी का, संतान पैदा करने की शक्ति का तथा विशेष रूप से नर संतान पैदा करने की शक्ति का, नेतृत्व करने की क्षमता का तथा अधिकार एवम नियंत्रण की शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है।

व्यक्ति के शरीर में सूर्य पित्त प्रवृति का प्रतिनिधित्व करते हैं क्योंकि सूर्य ग्रह के स्वभाव तथा अधिकार में अग्नि तत्व होता है। बारह राशियों में सूर्य अग्नि राशियों (मेष, सिंह तथा धनु) में स्थित होकर विशेष रूप से बलवान हो जाते हैं तथा मेष राशि में स्थित होने से सूर्य को सर्वाधिक बल प्राप्त होता है और इसी कारण इस राशि में सूर्य को उच्च का माना जाता है। मेष राशि के अतिरिक्त सूर्य सिंह राशि में स्थित होकर भी बली हो जाते हैं जो कि सूर्य की अपनी राशि है तथा इसके अतिरिक्त सूर्य धनु राशि में भी बलवान होते हैं जिसके स्वामी गुरू हैं। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में सूर्य बलवान तथा किसी भी बुरे ग्रह के प्रभाव से रहित होकर स्थित होते हैं ऐसे कुंडली धारक आम तौर पर जीवन भर सवस्थ रहते हैं क्योंकि सूर्य को सीधे तौर पर व्यक्ति के निरोग रहने की क्षमता का प्रतीक माना जाता है।

कुंडली में सूर्य बलवान होने से कुंडली धारक की रोग निरोधक क्षमता सामान्य से अधिक होती है तथा इसी कारण उसे आसानी से कोई रोग परेशान नहीं कर पाता। ऐसे व्यक्तियों का हृदय बहुत अच्छी तरह से काम करता है जिससे इनके शरीर में रक्त का सचार बड़े सुचारू रूप से होता है। ऐसे लोग शारीरिक तौर पर बहुत चुस्त-दुरुस्त होते हैं तथा आम तौर पर इनके शरीर का वजन भी सामान्य से बहुत अधिक या बहुत कम नहीं होता हालांकि इनमें से कुछ तथ्य कुंडली में दूसरे ग्रहों की शुभ या अशुभ स्थिति के साथ बदल भी सकते हैं। कुंडली में सूर्य के बलवान होने पर कुंडली धारक सामान्यतया समाज में विशेष प्रभाव रखने वाला होता है तथा अपनी संवेदनाओं और भावनाओं पर भली भांति अंकुश लगाने में सक्षम होता है। इस प्रकार के लोग आम तौर पर अपने जीवन के अधिकतर निर्णय तथ्यों के आधार पर ही लेते हैं न कि भावनाओं के आधार पर। ऐसे लोग सामान्यतया अपने निर्णय पर अडि़ग रहते हैं तथा इस कारण इनके आस-पास के लोग इन्हें कई बार अभिमानी भी समझ लेते हैं जो कि ये कई बार हो भी सकते हैं किन्तु अधिकतर मौकों पर ऐसे लोग तर्क के आधार पर लिए गए सही निर्णय की पालना ही कर रहे होते हैं तथा इनके अधिक कठोर लगने के कारण इनके आस-पास के लोग इन्हें अभिमानी समझ लेते हैं। अपने इन गुणों के कारण ऐसे लोगों में बहुत अच्छे नेता, राजा तथा न्यायाधीश बनने की क्षमता होती है।

पुरुषों की कुंडली में सूर्य का बलवान होना तथा किसी बुरे ग्रह से रहित होना उन्हें सवस्थ तथा बुद्धिमान संतान पैदा करने की क्षमता प्रदान करता है तथा विशेष रुप से नर संतान पैदा करनी की क्षमता। बलवान सूर्य वाले कुंडली धारक आम तौर पर बहुत सी जिम्मेदारियों को उठाने वाले तथा उन्हें निभाने वाले होते हैं जिसके कारण आवश्यकता से अधिक काम करने के कारण कई बार इन्हें शारीरिक अथवा मानसिक तनाव का सामना भी करना पड़ता है। ऐसे लोग आम तौर पर पेट में वायु विकार जैसी समस्याओं तथा त्वचा के रोगों से पीडि़त हो सकते हैं जिसका कारण सूर्य का अग्नि स्वभाव होता है जिससे पेट में कुछ विशेष प्रकार के विकार तथा रक्त में अग्नि तत्व की मात्रा बढ़ जाने से त्वचा से संबधित रोग भी हो सकते हैं।

बारह राशियों में से कुछ राशियों में सूर्य का बल सामान्य से कम हो जाता है तथा यह बल सूर्य के तुला राशि में स्थित होने पर सबसे कम हो जाता है। इसी कारण सूर्य को तुला राशि में स्थित होने पर नीच माना जाता है क्योंकि तुला राशि में स्थित होने पर सूर्य अति बलहीन हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त सूर्य कुंडली में अपनी स्थिति के कारण तथा एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों के प्रभाव में आने के कारण भी बलहीन हो जाते हैं तथा इनमें से अंतिम प्रकार की बलहीनता कुंडली धारक के लिए सबसे अधिक नुकसानदायक होती है। किसी कुंडली में यदि सूर्य तुला राशि में स्थित हों तथा तुला राशि में ही स्थित अशुभ शनि के प्रभाव में हों तो ऐसी हालत में सूर्य को भारी दोष लगता है क्योंकि तुला राशि में स्थित होने के कारण सूर्य पहले ही बलहीन हो जाते हैं तथा दूसरी तरफ तुला राशि में स्थित होने पर शनि को सर्वाधिक बल प्राप्त होता है क्योंकि तुला राशि में स्थित शनि उच्च के हो जाते हैं। ऐसी हालत में पहले से ही बलहीन सूर्य पर पूर्ण रूप से बली शनि ग्रह का अशुभ प्रभाव सूर्य को बुरी तरह से दूषित तथा बलहीन कर देता है जिससे कुंडली में भयंकर पितृ दोष का निर्माण हो जाता है जिसके कारण कुंडली धारक के जीवन में सूर्य के प्रतिनिधित्व में आने वाले सामान्य तथा विशेष, सभी क्षेत्रों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इस लिए किसी भी व्यक्ति की कुंडली का अध्ययन करते समय कुंडली में सूर्य की स्थिति, बल तथा कुंडली के दूसरे शुभ तथा अशुभ ग्रहों के सूर्य पर प्रभाव को ध्यानपूर्वक देखना अति आवश्यक है।

 

ज्योतिष में चन्द्रमा का महत्त्व —–

भारतीय वैदिक ज्योतिष में चन्द्रमा को बहुत महत्त्व दिया जाता है तथा व्यक्ति के जीवन से लेकर विवाह और फिर मृत्यु तक बहुत से क्षेत्रों के बारे में जानने के लिए कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक माना जाता है। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में स्थित हों, उसी नक्षत्र को उस व्यक्ति का जन्म नक्षत्र माना जाता है जिसके साथ उसके जीवन के कई महत्त्वपूर्ण तथ्य जुड़े होते हैं जैसे कि व्यक्ति का नाम भी उसके जन्म नक्षत्र के अक्षर के अनुसार ही रखा जाता है।

भारतीय ज्योतिष पर आधारित दैनिक, साप्ताहिक तथा मासिक भविष्य फल भी व्यक्ति की जन्म के समय की चन्द्र राशि के आधार पर ही बताए जाते हैं। किसी व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होते हैं, वह राशि उस व्यक्ति की चन्द्र राशि कहलाती है। भारतीय ज्योतिष में विवाह संबंधित वर-वधू के आपस में तालमेल को परखने के लिए प्रयोग की जाने वाली कुंडली मिलान की प्रणाली में आम तौर पर गुण मिलान को ही सबसे अधिक महत्त्व दिया जाता है जो कि पूर्णतया वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा की स्थिति के आधारित होता है। वैदिक ज्योतिष के एक मत के अनुसार विवाह दो मनों का पारस्परिक मेल होता है तथा चन्द्रमा प्रत्येक व्यक्ति के मन का सीधा कारक होने के कारण इस मेल को देखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय ज्योतिष में प्रचलित गंड मूल दोष भी चन्द्रमा की कुंडली में स्थिति से ही देखा जाता है तथा वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रभाव डालने वालीं विंशोत्तरी दशाएं भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार ही देखीं जातीं हैं। इस प्रकार चन्द्रमा का भारतीय ज्योतिष के अनेक क्षेत्रों में बहुत महत्त्व है तथा कुंडली में इस ग्रह की स्थिति को भली-भांति समझना आवश्यक है।

चन्द्रमा एक शीत और नम ग्रह हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए इन्हें स्त्री ग्रह माना जाता है। चन्द्रमा प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में मुख्य रूप से माता तथा मन के कारक माने जाते हैं और क्योंकि माता तथा मन दोनों ही किसी भी व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्त्व रखते हैं, इसलिए कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति कुंडली धारक के लिए अति महत्त्वपूर्ण होती है। माता तथा मन के अतिरिक्त चन्द्रमा रानियों, जन-संपर्क के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों, परा-शक्तियों के माध्यम से लोगों का उपचार करने वाले व्यक्तियों, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों, होटल व्यवसाय तथा इससे जुड़े व्यक्तियों तथा सुविधा और ऐशवर्य से जुडे ऐसे दूसरे क्षेत्रों तथा व्यक्तियों, सागरों तथा संसार में उपस्थित पानी की छोटी-बड़ी सभी इकाईयों तथा इनके साथ जुड़े व्यवसायों और उन व्यवसायों को करने वाले लोगों के भी कारक होते हैं।

किसी व्यक्ति की कुंडली से उसके चरित्र को देखते समय चन्द्रमा की स्थिति अति महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि चन्द्रमा सीधे तौर से प्रत्येक व्यक्ति के मन तथा भावनाओं को नियंत्रित करते हैं। चन्द्रमा वृष राशि में स्थित होकर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा इस राशि में स्थित चन्द्रमा को उच्च का चन्द्रमा कहा जाता है। वृष के अतिरिक्त चन्द्रमा कर्क राशि में स्थित होने से भी बलवान हो जाते हैं जो कि चन्द्रमा की अपनी राशि है। चन्द्रमा के कुंडली में बलशाली होने पर तथा भली प्रकार से स्थित होने पर कुंडली धारक स्वभाव से मृदु, संवेदनशील, भावुक तथा अपने आस-पास के लोगों से स्नेह रखने वाला होता है। ऐसे लोगों को आम तौर पर अपने जीवन में सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते तथा इन्हें बिना प्रयासों के ही सुख-सुविधाएं ठीक उसी प्रकार प्राप्त होती रहतीं हैं जिस प्रकार किसी राजा की रानी को केवल अपने रानी होने के आधार पर ही संसार के समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हो जाते हैं।

क्योंकि चन्द्रमा मन और भावनाओं पर नियत्रण रखते हैं, इसलिए चन्द्रमा के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक आम तौर पर भावुक होने के कारण आसानी से ही आहत भी हो जाते हैं। स्वभाव से ऐसे लोग चंचल तथा संवेदनशील होते हैं तथा अपने प्रियजनों का बहुत ध्यान रखते हैं और उनसे भी ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं तथा इस अपेक्षा के पूर्ण न होने की हालत में शीघ्र ही आहत हो जाते हैं। किन्तु अपने प्रियजनों के द्वारा आहत होने के बाद भी ऐसे लोग शीघ्र ही सबकुछ भुला कर फिर से अपने सामान्य व्यवहार में लग जाते हैं। चन्द्रमा के प्रबल प्रभाव वाले जातक कलात्मक क्षेत्रों में विशेष रूचि रखते हैं तथा इन क्षेत्रों में सफलता भी प्राप्त करते हैं। किसी कुंडली में चन्द्रमा का विशेष शुभ प्रभाव जातक को ज्योतिषि, आध्यात्मिक रूप से विकसित व्यक्ति तथा परा शक्तियों का ज्ञाता भी बना सकता है।

चन्द्रमा मनुष्य के शरीर में कफ प्रवृति तथा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा शरीर के अंदर द्रव्यों की मात्रा, बल तथा बहाव को नियंत्रित करते हैं। चन्द्रमा के प्रबल प्रभाव वाले जातक सामान्य से अधिक वजनी हो सकते हैं जिसका कारण मुख्य तौर पर चन्द्रमा का जल तत्व पर नियंत्रण होना ही होता है जिसके कारण ऐसे जातकों में सामान्य से अधिक निद्रा लेने की प्रवृति बन जाती है तथा कुछेक जातकों को काम कम करने की आदत होने से या अवसर ही कम मिलने के कारण भी उनके शरीर में चर्बी की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे जातकों को आम तौर पर कफ तथा शरीर के द्रव्यों से संबंधित रोग या मानसिक परेशानियों से सम्बन्धित रोग ही लगते हैं।

कुंडली में चन्द्रमा के बलहीन होने पर अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर दूषित होने पर जातक की मानसिक शांति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा उसे मिलने वाली सुख-सुविधाओं में भी कमी आ जाती है। चन्द्रमा वृश्चिक राशि में स्थित होकर बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त कुंडली में अपनी स्थिति विशेष और अशुभ ग्रहों के प्रभाव के कारण भी चन्द्रमा बलहीन हो जाते हैं। किसी कुंडली में अशुभ राहु तथा केतु का प्रबल प्रभाव चन्द्रमा को बुरी तरह से दूषित कर सकता है तथा कुंडली धारक को मानसिक रोगों से पीडि़त भी कर सकता है। चन्द्रमा पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव जातक को अनिद्रा तथा बेचैनी जैसी समस्याओं से भी पीडि़त कर सकता है जिसके कारण जातक को नींद आने में बहुत कठिनाई होती है। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा की बलहीनता अथवा चन्द्रमा पर अशुभ ग्रहों के प्रभाव के कारण विभिन्न प्रकार के जातकों को उनकी जन्म कुंडली में चन्द्रमा के अधिकार में आने वाले क्षेत्रों से संबंधित समस्याएं आ सकती हैं।

 

ज्योतिष में मंगल का महत्त्व—–

भारतीय वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह को मुख्य तौर पर ताकत और मर्दानगी का कारक माना जाता है। मंगल प्रत्येक व्यक्ति में शारीरिक ताकत तथा मानसिक शक्ति एवम मजबूती का प्रतिनिधित्व करते हैं। मानसिक शक्ति का अभिप्राय यहां पर निर्णय लेने की क्षमता और उस निर्णय पर टिके रहने की क्षमता से है। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक आम तौर पर तथ्यों के आधार पर उचित निर्णय लेने में तथा उस निर्णय को व्यवहारिक रूप देने में भली प्रकार से सक्षम होते हैं। ऐसे जातक सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के आगे घुटने नहीं टेकते तथा इनके उपर दबाव डालकर अपनी बात मनवा लेना बहुत कठिन होता है और इन्हें दबाव की अपेक्षा तर्क देकर समझा लेना ही उचित होता है।

मंगल आम तौर पर ऐसे क्षेत्रों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें साहस, शारीरिक बल, मानसिक क्षमता आदि की आवश्यकता पड़ती है जैसे कि पुलिस की नौकरी, सेना की नौकरी, अर्ध-सैनिक बलों की नौकरी, अग्नि-शमन सेवाएं, खेलों में शारीरिक बल तथा क्षमता की परख करने वाले खेल जैसे कि कुश्ती, दंगल, टैनिस, फुटबाल, मुक्केबाजी तथा ऐसे ही अन्य कई खेल जो बहुत सी शारीरिक उर्जा तथा क्षमता की मांग करते हैं। इसके अतिरिक्त मंगल ऐसे क्षेत्रों तथा व्यक्तियों के भी कारक होते हैं जिनमें हथियारों अथवा औजारों का प्रयोग होता है जैसे हथियारों के बल पर प्रभाव जमाने वाले गिरोह, शल्य चिकित्सा करने वाले चिकित्सक तथा दंत चिकित्सक जो चिकित्सा के लिए धातु से बने औजारों का प्रयोग करते हैं, मशीनों को ठीक करने वाले मैकेनिक जो औजारों का प्रयोग करते हैं तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्र एवम इनमे काम करने वाले लोग। इसके अतिरिक्त मंगल भाइयों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से छोटे भाइयों के। मंगल पुरूषों की कुंडली में दोस्तों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से उन दोस्तों के जो जातक के बहुत अच्छे मित्र हों तथा जिन्हें भाइयों के समान ही समझा जा सके।

मंगल एक शुष्क तथा आग्नेय ग्रह हैं तथा मानव के शरीर में मंगल अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा इसके अतिरिक्त मंगल मनुष्य के शरीर में कुछ सीमा तक जल तत्व का प्रतिनिधित्व भी करते हैं क्योंकि मंगल रक्त के सीधे कारक माने जाते हैं। ज्योतिष की गणनाओं के लिए मंगल को पुरूष ग्रह माना जाता है। मंगल मकर राशि में स्थित होने पर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा मकर में स्थित मंगल को उच्च का मंगल भी कहा जाता है। मकर के अतिरिक्त मंगल को मेष तथा वृश्चिक राशियों में स्थित होने से भी अतिरिक्त बल मिलता है जोकि मंगल की अपनी राशियां हैं।

मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक शारीरिक रूप से बलवान तथा साहसी होते हैं। ऐसे जातक स्वभाव से जुझारू होते हैं तथा विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत से काम लेते हैं तथा सफलता प्राप्त करने के लिए बार-बार प्रयत्न करते रहते हैं और अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं तथा मुश्किलों के कारण आसानी से विचलित नहीं होते। मंगल का कुंडली में विशेष प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को तर्क के आधार पर बहस करने की विशेष क्षमता प्रदान करता है जिसके कारण जातक एक अच्छा वकील अथवा बहुत अच्छा वक्ता भी बन सकता है। मंगल के प्रभाव में वक्ता बनने वाले लोगों के वक्तव्य आम तौर पर क्रांतिकारी ही होते हैं तथा ऐसे लोग अपने वक्तव्यों के माध्यम से ही जन-समुदाय तथा समाज को एक नई दिशा देने में सक्षम होते हैं। युद्ध-काल के समय अपनी वीरता के बल पर समस्त जगत को प्रभावित करने वाले जातक मुख्य तौर पर मंगल के प्रबल प्रभाव में ही पाए जाते हैं।

कर्क राशि में स्थित होने पर मंगल बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त मंगल कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण भी कमजोर हो सकते हैं। कुंडली में मंगल की बलहीनता कुंडली धारक की शारीरिक तथा मानसिक उर्जा पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है तथा इसके अतिरिक्त जातक रक्त-विकार संबधित बिमारियों, तव्चा के रोगों, चोटों तथा अन्य ऐसे बिमारीयों से पीडित हो सकता है जिसके कारण जातक के शरीर की चीर-फाड़ हो सकती है तथा अत्याधिक मात्रा में रक्त भी बह सकता है। मंगल पर किन्हीं विशेष ग्रहों के बुरे प्रभाव के कारण जातक किसी दुर्घटना अथवा लड़ाई में अपने शरीर का कोई अंग भी गंवा सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में मंगल की बलहीनता जातक को सिरदर्द, थकान, चिड़चिड़ापन, तथा निर्णय लेने में अक्षमता जैसी समस्याओं से भी पीडि़त कर सकती है।

 

ज्योतिष में बुध का महत्त्व—-

भारतीय वैदिक ज्योतिष में बुध ग्रह को मुख्य रूप से वाणी और बुद्धि का कारक माना जाता है। इसलिए बुध के प्रबल प्रभाव वाले जातक आम तौर पर बहुत बुद्धिमान होते हैं तथा उनका अपनी वाणी पर बहुत अच्छा नियंत्रण होता है जिसके चलते वे अपनी बुद्धि तथा वाणी कौशल के बल पर मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेने में सक्षम होते हैं। ऐसे जातकों की वाणी तथा व्यवहार आम तौर पर अवसर के अनुकूल ही होता है जिसके कारण ये अपने जीवन में बहुत लाभ प्राप्त करते हैं। किसी भी व्यक्ति से अपनी बुद्धि तथा वाणी के बल पर अपना काम निकलवा लेना ऐसे लोगों की विशेषता होती है तथा किसी प्रकार की बातचीत, बहस या वाक प्रतियोगिता में इनसे जीत पाना अत्यंत कठिन होता है। आम तौर पर ऐसे लोग सामने वाले की शारीरिक मुद्रा तथा मनोस्थिति का सही आंकलन कर लेने के कारण उसके द्वारा पूछे जाने वाले संभावित प्रश्नों के बारे में पहले से ही अनुमान लगा लेते हैं तथा इसी कारण सामने वाले व्यक्ति के प्रश्न पूछते ही ये उसका उत्तर तुरंत दे देते हैं। इसलिए ऐसे लोगों से बातचीत में पार पाना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं होती तथा ऐसे जातक अपने वाणी कौशल तथा बुद्धि के बल पर आसानी से सच को झूठ तथा झूठ को सच साबित कर देने में भी सक्षम होते हैं।

अपनी इन्हीं विशेषताओं के चलते बुध आम तौर पर उन्हीं क्षेत्रों तथा उनसे जुड़े लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें सफलता प्राप्त करने के लिए चतुर वाणी, तेज गणना तथा बुद्धि कौशल की आवश्यकता दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक होती है जैसे कि वकील, पत्रकार, वित्तिय सलाहकार तथा अन्य प्रकार के सलाहकार, अनुसंधान तथा विश्लेषणात्मक क्षेत्रों से जुड़े व्यक्ति, मार्किटिंग क्षेत्र से जुड़े लोग, व्यापार जगत से जुड़े लोग, मध्यस्थता करके मुनाफा कमाने वाले लोग, अकाउंटेंट, साफ्टवेयर इंजीनियर, राजनीतिज्ञ, राजनयिक, अध्यापक, लेखक, ज्योतिषि तथा ऐसे ही अन्य व्यवसाय तथा उनसे जुड़े लोग। इस प्रकार यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज के इस व्यसायिक जगत में बुध ग्रह के प्रभाव वाले जातक ही सबसे अधिक सफल पाये जाते हैं।

बुध को ज्योतिष की गणनाओं के लिए ज्योतिषियों का एक वर्ग तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानता है जबकि ज्योतिषियों का दूसरा वर्ग इन्हें स्त्री ग्रह मानता है। मनुष्य के शरीर में बुध मुख्य रूप से वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। कन्या राशि में स्थित होने से बुध सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं जो कि इनकी अपनी राशि है तथा इस राशि में स्थित होने पर बुध को उच्च का बुध भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त मिथुन राशि में स्थित होने से भी बुध को अतिरिक्त बल प्राप्त होता है तथा यह राशि भी बुध की अपनी राशि है। कुंडली में बुध का प्रबल प्रभाव होने पर कुंडली धारक सामान्यतया बहुत व्यवहार कुशल होता है तथा कठिन से कठिन अथवा उलझे से उलझे मामलों को भी कूटनीति से ही सुलझाने में विश्वास रखता है। ऐसे जातक बड़े शांत स्वभाव के होते हैं तथा प्रत्येक मामले को सुलझाने में अपनी चतुराई से ही काम लेते हैं तथा इसी कारण ऐसे जातक अपने सांसारिक जीवन में बड़े सफल होते हैं जिसके कारण कई बार इनके आस-पास के लोग इन्हें स्वार्थी तथा पैसे के पीछे भागने वाले भी कह देते हैं किन्तु ऐसे जातक अपनी धुन के बहुत पक्के होते हैं तथा लोगों की कही बातों पर विचार न करके अपने काम में ही लगे रहते हैं।

बुध मीन राशि मे स्थित होने पर बलहीन हो जाते हैं और इसी कारण मीन राशि में स्थित बुध को नीच का बुध भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त बुध किसी कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण भी बलहीन हो सकते हैं जिसके कारण जातक पेट, गले या नर्वस तंत्र से संबंधित समस्याओं अथवा बिमारियों से पीडि़त हो सकता है। इसके अतिरिक्त बुध पर किन्हीं विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को आंतों की बिमारी, दमा, त्वचा के रोग, अनिद्रा, मनोवैज्ञानिक रोग तथा ऐसी ही कई अन्य बिमारियों से पीडि़त कर सकता है।

 

ज्योतिष में गुरु/बृहस्पति का महत्व—

भारत को आध्यात्म, तीर्थ स्थानों, मदिरों, तथा साधु-संतों के देश के रूप में जाना जाता है तथा भारतवर्ष के साथ जुड़ीं इन सभी विशेषताओं के कारक ग्रह बृहस्पति हैं जिन्हें ज्योतिष की साधारण भाषा में गुरू के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को समस्त देवताओं तथा ग्रहों का गुरू माना जाता है तथा इस ग्रह को समस्त ग्रहों में सबसे पवित्र तथा पावन माना जाता है। गुरू मुख्य रूप से साधु-संतों, आध्यात्मिक गुरुओं तथा आध्यात्मिक रुप से विकसित व्यक्तियों, तीर्थ स्थानों तथा मंदिरों, पवित्र नदियों तथा पवित्र पानी के जल स्तोत्रों, धार्मिक साहित्य तथा पीपल के वृक्ष के कारक माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त गुरु ग्रह को अध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, वित्तिय संस्थानों में कार्य करने वाले व्यक्तियों, लेखकों, कलाकारों तथा अन्य कई प्रकार के क्षेत्रों तथा व्यक्तियों का कारक भी माना जाता है।

गुरू स्वभाव से नम ग्रह हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए इन्हें नर ग्रह माना जाता है। कर्क राशि में स्थित होकर गुरू सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा इस राशि में स्थित गुरू को उच्च का गुरू कहा जाता है। कर्क राशि के अतिरिक्त गुरू धनु तथा मीन राशियों में स्थित होने पर भी बलशाली हो जाते हैं जो इनकी अपनी राशियां हैं। कुंडली में गुरू के बलवान होने पर तथा बुरे ग्रहों के प्रभाव से रहित होने पर जातक का शरीर आम तौर पर सवस्थ तथा मजबूत होता है। गुरू के प्रबल प्रभाव वाले जातक आम तौर पर दयालु, दूसरों का ध्यान रखने वाले, धार्मिक तथा मानवीय मूल्यों को समझने वाले होते हैं। ऐसे जातक बहुत बुद्धिमान होते हैं तथा मुश्किल से मुश्किल विषयों को भी आसानी से समझ लेने की क्षमता रखते हैं। ऐसे जातक अच्छे तथा सृजनात्मक कार्य करने वाले होते हैं तथा इस कारण समाज में इनका एक विशेष आदर होता है।

गुरू के प्रबल प्रभाव वाले जातकों की वित्तिय स्थिति मजबूत होती है तथा आम तौर पर इन्हें अपने जीवन काल में किसी गंभीर वित्तिय संकट का सामना नहीं करना पड़ता। ऐसे जातक सामान्यतया विनोदी स्वभाव के होते हैं तथा जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में इनका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है। ऐसे जातक अपने जीवन में आने वाले कठिन समयों में भी अधिक विचलित नहीं होते तथा अपने सकारात्मक रुख के कारण इन कठिन समयों में से भी अपेक्षाकृत आसानी से निकल जाते हैं। ऐसे जातक आशावादी होते हैं तथा निराशा का आम तौर पर इनके जीवन में लंबी अवधि के लिए प्रवेश नहीं होता जिसके कारण ऐसे जातक अपने जीवन के प्रत्येक पल का पूर्ण आनंद उठाने में सक्षम होते हैं। ऐसे जातकों के अपने आस-पास के लोगों के साथ मधुर संबंध होते हैं तथा आवश्यकता के समय वे अपने प्रियजनों की हर संभव प्रकार से सहायता करते हैं। इनके आभा मंडल से एक विशेष तेज निकलता है जो इनके आस-पास के लोगों को इनके साथ संबंध बनाने के लिए तथा इनकी संगत में रहने के लिए प्रेरित करता है। आध्यात्मिक पथ पर भी ऐसे जातक अपेक्षाकृत शीघ्रता से ही परिणाम प्राप्त कर लेने में सक्षम होते हैं।

गुरू का प्रबल प्रभाव जातक को विभिन्न प्रकार के पकवानों तथा व्यंजनों का रसिया बना सकता है जिसके कारण ऐसे जातक कई बार सामान्य से अधिक खाने वाले होते हैं तथा अपनी इसी आदत के कारण ऐसे जातकों को शरीर पर अतिरिक्त चर्बी चढ़ जाने की शिकायत भी हो जाती है। ऐसे जातकों की धार्मिक कार्यों में तथा परोपकार के कार्यों में भी रूचि होती है तथा समाज के पिछड़े वर्गों के लिए काम करने में भी इन्हें आनंद मिलता है।

गुरू मकर राशि में स्थित होने पर बलहीन हो जाते हैं तथा मकर राशि में स्थित गुरू को नीच का गुरू भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त गुरू किसी कुंडली विशेष में अपनी स्थिति के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण भी बलहीन हो सकते हैं। गुरू के बलहीन होने की स्थिति में जातक अग्नाशय से संबंधित बिमारियों जैसे मधुमेह, पित्ताशय से संबधित बिमारियों से, श्रवण संबंधित बीमारीयों से तथा पीलिया जैसी बिमारियों से पीडि़त हो सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में गुरू के बलहीन होने से जातक को शरीर की चर्बी को नियंत्रित करने में भी मुश्किल हो सकती है जिसके कारण वह बहुत मोटा या बहुत पतला हो सकता है। किसी कुंडली में गुरू पर अशुभ राहु का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को आध्यात्मिकता तथा धार्मिक कार्यों से पूर्ण रूप से विमुख कर सकता है अथवा ऐसा जातक धर्म तथा आध्यात्मिकता के नाम पर लोगों को ठगने वाला कपटी भी हो सकता है। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार के अशुभ ग्रहों का किसी कुंडली में गुरू पर प्रबल प्रभाव कुंडली धारक के लिए विभिन्न प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकता है।

 

ज्योतिष में शुक्र का महत्त्व—-

भारतीय वैदिक ज्योतिष में शुक्र को मुख्य रूप से पति या पत्नी अथवा प्रेमी या प्रेमिका का कारक माना जाता है। कुंडली धारक के दिल से अर्थात प्रेम संबंधों से जुड़ा कोई भी मामला देखने के लिए कुंडली में इस ग्रह की स्थिति देखना अति आवश्यक हो जाता है। कुंडली धारक के जीवन में पति या पत्नी का सुख देखने के लिए भी कुंडली में शुक्र की स्थिति अवश्य देखनी चाहिए। शुक्र को सुंदरता की देवी भी कहा जाता है और इसी कारण से सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े अधिकतर क्षेत्रों के कारक शुक्र ही होते हैं, जैसे कि फैशन जगत तथा इससे जुड़े लोग, सिनेमा जगत तथा इससे जुड़े लोग, रंगमंच तथा इससे जुड़े लोग, चित्रकारी तथा चित्रकार, नृत्य कला तथा नर्तक-नर्तकियां, इत्र तथा इससे संबंधित व्यवसाय, डिजाइनर कपड़ों का व्यवसाय, होटल व्यवसाय तथा अन्य ऐसे व्यवसाय जो सुख-सुविधा तथा ऐश्वर्य से जुड़े हैं।

शुक्र एक नम ग्रह हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए इन्हें स्त्री ग्रह माना जाता है। शुक्र मीन राशि में स्थित होकर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं जो बृहस्पति के स्वामित्व में आने वाली एक जल राशि है। मीन राशि में स्थित शुक्र को उच्च का शुक्र भी कहा जाता है। मीन राशि के अतिरिक्त शुक्र वृष तथा तुला राशि में स्थित होकर भी बलशाली हो जाते हैं जो कि इनकी अपनी राशियां हैं। कुंडली में शुक्र का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक बना देता है तथा उसकी इस सुंदरता और आकर्षण से सम्मोहित होकर लोग उसकी ओर खिंचे चले आते हैं तथा विशेष रूप से विपरीत लिंग के लोग। शुक्र के प्रबल प्रभाव वाले जातक शेष सभी ग्रहों के जातकों की अपेक्षा अधिक सुंदर होते हैं। शुक्र के प्रबल प्रभाव वालीं महिलाएं अति आकर्षक होती हैं तथा जिस स्थान पर भी ये जाती हैं, पुरुषों की लंबी कतार इनके पीछे पड़ जाती है। शुक्र के जातक आम तौर पर फैशन जगत, सिनेमा जगत तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों में सफल होते हैं जिनमें सफलता पाने के लिए शारीरिक सुंदरता को आवश्यक माना जाता है।

शुक्र शारीरिक सुखों के भी कारक होते हैं तथा संभोग से लेकर हार्दिक प्रेम तक सब विषयों को जानने के लिए कुंडली में शुक्र की स्थिति महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। शुक्र का प्रबल प्रभाव जातक को रसिक बना देता है तथा आम तौर पर ऐसे जातक अपने प्रेम संबंधों को लेकर संवेदनशील होते हैं। शुक्र के जातक सुंदरता और एश्वर्यों का भोग करने में शेष सभी प्रकार के जातकों से आगे होते हैं। शरीर के अंगों में शुक्र जननांगों के कारक होते हैं तथा महिलाओं के शरीर में शुक्र प्रजनन प्रणाली का प्रतिनिधित्व भी करते हैं तथा महिलाओं की कुंडली में शुक्र पर किसी बुरे ग्रह का प्रबल प्रभाव उनकी प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है।

शुक्र कन्या राशि में स्थित होने पर बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर भी शुक्र बलहीन हो जाते हैं। शुक्र पर बुरे ग्रहों का प्रबल प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन अथवा प्रेम संबंधों में समस्याएं पैदा कर सकता है। महिलाओं की कुंडली में शुक्र पर बुरे ग्रहों का प्रबल प्रभाव उनकी प्रजनन प्रणाली को कमजोर कर सकता है तथा उनके ॠतुस्राव, गर्भाशय अथवा अंडाशय पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है जिसके कारण उन्हें संतान पैदा करनें में परेशानियां आ सकतीं हैं।

कुंडली में शुक्र पर अशुभ राहु का विशेष प्रभाव जातक के भीतर शारीरिक वासनाओं को आवश्यकता से अधिक बढ़ा देता है जिसके चलते जातक अपनी बहुत सी शारीरिक उर्जा तथा पैसा इन वासनाओं को पूरा करने में ही गंवा देता है जिसके कारण उसकी सेहत तथा प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है तथा कुछेक मामलों में तो जातक किसी गुप्त रोग से पीडि़त भी हो सकता है जो कुंडली के दूसरे ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करते हुए जानलेवा भी साबित हो सकता है।

 

 

 

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