तूफ़ां में कश्तियों को किनारा नहीं मिलता,
अपनों का भी गुरबत में सहारा नहीं मिलता।
लातूर से सूरत से सबक़ सीखना होगा,
कुदरत से बार बार इशारा नहीं मिलता।
रहबर ही तंगनज़र है तो फिर लोग क्या करें,
हो जिसमें सबकी बात वो नारा नहीं मिलता।
लो जान हथेली पे तो दुनिया है तुम्हारी,
बिन जिद्दो जहद चांद क्या तारा नहीं मिलता।।
नोट-किरदार-चरित्र, मकतब-स्कूल, गुरबत-गरीबी, कुदरत-प्रकृति,
रहबर-नेता, तंगनज़र-संकीर्ण सोच, जिद्दो जहद-संघर्ष।।
सुन्दर अभिव्यक्ति