आइए जिंदगी को सवारें

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-ललित गर्ग-
जिंदगी को हर कोई अनूठा रचना चाहता है एवं तरक्की के शिखर देना चाहता है। इसी भांति जिन्दगी के मायने भी सबके लिये भिन्न-भिन्न है। किसी के लिए जिन्दगी कर्म है, तो किसी के लिए रास्ता। ऐसे भी कई मिल जाएंगे, जिन्होंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। जिंदगी को कुछ लोग प्रकृति तो कुछ भगवान भी मानते हैं। एक तरफ गहरा सत्य है जिंदगी, तो दूसरी तरफ रहस्यों से भरपूर भी। पता ही नहीं होता कि अगले क्षण क्या होने वाला है।
प्रतिष्ठित ई-कॉमर्स पोर्टल अलीबाबा के संस्थापक जैक मा कहते हैं, ‘मेरे लिए जिंदगी का मलतब है उम्मीद। मेरी आधी जिंदगी नाकामयाबी से लड़ने में गुजरी है। वो दिन भी था, जब केएफसी में मुझे सेल्स मैन की नौकरी के लायक नहीं समझा गया था। मैंने उस समय खुद से सवाल किया था कि मैं अपनी जिंदगी का क्या करना चाहता हूं? जवाब आया, हार कर तो बिल्कुल नहीं बैठना चाहता। जिंदगी हर दिन मुझे एक नया पाठ पढ़ाती है। मैं तो बस सीखता चलता हूं।’
इस तरह अनूठा रचने एवं तरक्की करने वाले लोगों की विशेषता होती है कि उनमें हर परिस्थिति और चुनौती को झेलने की क्षमता होती है। सबसे अधिक उन्हें अपने ही लोगों की खड़ी की गयी बाधाआंे, कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना होता है। यह एक सार्वभौम नियम है। कुछ सही हालात का इंतजार करते रह जाते हैं तो कुछ कैसे भी हालात में अपने मन का सुकून बनाए रखने में कामयाब रहते हैं। कुछ लोग कठिनाइयों के काँटों से घबराकर मार्ग बदलते रहते हैं। पर वे अपने जीवन में कभी भी शांति और सफलता के दर्शन नहीं कर सकते।
जिन्दगी में किसी प्रकार की कठिनाई और समस्या नहीं हो, इस प्रकार के जीवन की कल्पना एक दिवास्वप्न है, जो कभी भी सफल और सार्थक नहीं हो सकता। हर किसी को अपना दुख बड़ा और दूसरे का मामूली लगता है। हम दूसरों के सुख तो देख पाते हैं, उनके संघर्ष नहीं। हम दुख को पकड़े रहते हैं और दुख हमें। हमारी भीतरी आवाजें हमें लाचार ही बनाए रखती हैं। इसलिये चित्रकार विंसेंट वैन गॉग ने कहा हैं कि ‘अगर आपकी भीतरी आवाज कहती है कि आप पेंटिंग नहीं कर सकते, तो किसी भी सूरत में आप पेंट करें, आप पाएंगे कि वो आवाजें खुद ब खुद चुप हो रही हैं।’ जिनकी मनोवृत्ति सुविधावादी हो जाती है उनके लिए छोटी-सी प्रतिकूलता को सहना कठिन हो जाता है, नया रचना असंभव हो जाता है।
विश्व में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने नाना प्रकार के अवरोधों और संघर्षों का सामना किया है। जिस प्रकार अग्नि में तपने से सोने की आभा में नया निखार आता है, उसी प्रकार संघर्षों की आग में उनका आभामंडल और अधिक तेजस्वी और प्रभावशाली हो जाता है। आज हर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास चाहता है। इसके लिए सहना और तपना जरूरी है। अंग्रेजी भाषा का प्रसिद्ध वाक्य है-‘फस्र्ट डिजर्व, देन डिजायर’ पहले योग्य बनो, बाद में सफलता की कामना करो। जीवन में बहुत कुछ बेहतरीन होना बाकी है। कई खूबसूरत लम्हे रास्ते में हमारी प्रतीक्षा में हैं। हमारी कई उम्मीदों को अभी उड़ान भरनी है। कई अजूबों से मुलाकात होनी है। कई सुख बाहें फैलाए खड़े हैं। पर समस्या यह है कि हम सूधबूध खोकर जिए जा रहे हैं। दुनिया हमारी ओर मुंह किए खड़ी है और हम कहीं और ही उदास-निराश बने खड़े हैं। अपने भरोसे को मजबूत बनाएं, दुनिया में बहुत कुछ आपके लिए है।
अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक जैक कैनफील्ड ने कहा है कि सबके जीवन का एक अनूठा उद्देश्य होता है। और उस उद्देश्य को ढूंढ़ना तथा उसका अनुसरण करना ही अपने लिए एक खुशहाल, पूर्ण, सार्थक और संतोषप्रद जीवन के निर्माण की कुंजी है।’ हालांकि कभी-कभी किन्हीं कारणों से, अनजाने ही हम जीवन के उद्देश्य से दूर हो जाते हैं, भटक जाते हैं। हर व्यक्ति के मन में ऊँचाई पर पहुँचने का आकर्षण है, पर गहराई के बिना ऊँचाई भी वरदान नहीं होकर अभिशाप सिद्ध होती है। धैर्य-संपन्न मनुष्य अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में संतुलन करता हुआ लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकता है और वही शंकर की तरह विषपान कर समाज को अमृतपान कराता है। जीवन यानि संघर्ष, यानि ताकत, यानि मनोबल। मनोबल से ही व्यक्ति स्वयं को बनाए रख सकता है वरना करोड़ों की भीड़ में अलग पहचान नहीं बन सकती। सभी अपनी-अपनी पहचान के लिए दौड़ रहे हैं, चिल्ला रहे हैं। कोई पैसे से, कोई अपनी सुंदरता से, कोई विद्वता से, कोई व्यवहार से अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए प्रयास करते हैं। पर हम कितना भ्रम पालते हैं। पहचान चरित्र के बिना नहीं बनती। बाकी सब अस्थायी है। चरित्र यानी हमारा आन्तरिक व्यक्तित्व- एक पवित्र आभामण्डल, स्थिर एवं शांत चित्त। शांत और स्थिर दिमाग बेहतर काम करता है। हर समय की बेचैनी किसी काम नहीं आती। ना हम वो कर पाते हैं, जो करना चाहते हैं और ना ही वो, जो दूसरे अपेक्षा कर रहे होते हैं। समस्याएं कैसी भी हों, हमारा संतुलित एवं व्यवस्थित ना होना समस्याओं को बढ़ा देता है। लेखक एकहार्ट टोल कहते हैं, ‘हमारी भीतरी दुनिया जितनी सुलझी हुई होती है, बाहरी दुनिया उतनी व्यवस्थित होती चली जाती है।’
यह सही है कि शक्ति और सौंदर्य का समुचित योग ही हमारा व्यक्तित्व है। पर शक्ति और सौंदर्य आंतरिक भी होते हैं, बाह्य भी होते हैं। धर्म का काम है आंतरिक व्यक्तित्व का विकास। इसके लिए मस्तिष्क और हृदय को सुंदर बनाना अपेक्षित है। यह सद्विचार और सदाचार के विकास से ही संभव है। इसके लिए आध्यात्मिक चेतना का विकास आवश्यक है। आध्यात्मिक व्यक्ति की आस्थाएं, मान्यताएं, आकांक्षाएं तथा अभिरुचियां धीरे-धीरे परिष्कृत होने लगती हैं। उत्कृष्ट चिंतन और आदर्श कर्तृत्व ही परिष्कृत जीवन पद्धति है। इससे भीतर में संतोष और बाहर सम्मानपूर्ण वातावरण का सृजन होता है। इसी से प्यार की शुरुआत होती है। जहां भी जाएं, प्यार को ले जाना न भूलें। सबसे पहली शुरुआत अपने घर से करें। अपने बच्चों, पत्नी या पति और फिर पड़ोसियों को प्यार दें। संत मदर टेरेसा कहती हैं, ‘जो भी आपके पास आए, वह पहले से कुछ बेहतर और खुश होकर लौटे। ईश्वर की करुणा आपके रूप में झलकनी चाहिए। आपका चेहरा, आंखें, मुस्कान और बातचीत सबमें करुणा होनी चाहिए।’ जिस प्रकार अहं का पेट बड़ा होता है, उसे रोज़ कुछ न कुछ चाहिए। उसी प्रकार चरित्र को रोज़ संरक्षण चाहिए और यह सब दृढ़ मनोबल से ही प्राप्त किया जा सकता है।
कुछ लोग सुंदर जगह की तलाश में रहते हैं तो कुछ जहां होते हैं, उस जगह को सुंदर बना देते हैं। कुछ सही हालात का इंतजार करते रह जाते हैं तो कुछ कैसे भी हालात में अपने मन का सुकून बनाए रखने में कामयाब रहते हैं। मोटिवेशनल स्पीकर लिओ बॉबटा कहते हैं, ‘जिंदगी में शांति हालात को ठीक करने से नहीं मिलती, बल्कि यह जान लेने से मिलती है कि आप भीतर से क्या हैं?
बहुत आसान है यह कह देना कि खुश रहना तो हम पर निर्भर करता है। यह एक चुनाव है। पर कई दफा इतने तनाव, अभाव, बीमारियां और चुनौतियां घेरे रखते हैं कि खुश रह पाना कठिन हो जाता है। ब्लॉगर लोरी डेशने कहती हैं, ’‘खुशी के लिए एक नहीं, कई चुनाव करने पड़ते हैं। चुनाव ये कि, हम खुद को हर हाल में स्वीकार करें, कि अपनी जिम्मेदारियां उठाएं और सबसे जरूरी कि कठिन घड़ियों में भी हिम्मत बनाए रखें। 

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