आओ मनाऐं नया साल-विक्रमी संवत 2069

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 विनोद बंसल

पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण व अंग्रेजियत के बढते प्रभाव के बावजूद भी आज चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो या जन्म की, नामकरण की बात हो या शादी की, गृह प्रवेश की हो या व्यापार प्रारम्भ करने की, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं। और तो और, देश के बडे से बडे राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुध्द रूप से विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है। भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देश प्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे हुए हैं। यह वह दिन है जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ होता है। आइये इस दिन की महानता के प्रसंगों को देखते हैं :-

 

ऐतिहासिक महत्व:

1) सृष्टि रचना का पहला दिन : आज से एक अरब 97 करोड़, 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना इसी दिन की थी।

2) प्रभु राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या आने के बाद राज्याभिषेक के लिये चुना।

3) नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।

4) गुरू अंगददेव जी का प्रकटोत्सव : सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्मदिवस।

5) आर्य समाज स्थापना दिवस : समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।

6) संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिध्द समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रकट हुए।

7) डा0 हैडगेबार जन्म दिवस : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध के संस्थापक डा0 केशव राव बलीराम हैडगेबार का जन्मदिवस।

8) शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस : विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।

9) युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : 5111 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ।

 

प्राकृतिक महत्व: पतझड की समाप्ति के बाद वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। शरद ऋतु के प्रस्थान व ग्रीष्म के आगमन से पूर्व वसंत अपने चरम पर होता है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।

आघ्यात्मिक महत्व :

हमारे ऋषि-मुनियों ने इस दिन के आध्यात्मिक महत्व के कारण ही वर्ष प्रतिपदा से ही नौ दिन तक शुध्द-सात्विक जीवन जीकर शक्ति की आराधना तथा निर्धन व दीन दुखियों की सेवा हेतु हमें प्रेरित किया। प्रात: काल यज्ञ, दिन में विविध प्रकार के भंडारे कर भूखों को भोजन तथा सायं-रात्रि शक्ति की उपासना का विधान है। असंख्य भक्तजन तो पूरे नौ दिन तक बिना कोई अन्न ग्रहण कर वर्षभर के लिए एक असीम शक्ति का संचय करते हैं। अष्टमी या नवमीं के दिन मां दुर्गा के रूप नौ कन्याओं व एक लांगुरा (किशोर) का पूजन कर आदर पूर्वक भोजन करा दक्षिणा दी जाती है।

वैज्ञानिक महत्व :

विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं। इसमें खगोलीय पिण्डों की गति को आधार बनाया गया है। हमारे मनीषियों ने पूरे भचक्र अर्थात 360 डिग्री को 12 बराबर भागों में बांटा जिसे राशि कहा गया। प्रत्येक राशि तीस डिग्री की होती है जिनमें पहली का नाम मेष है। एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं। पूरे भचक्र को 27 नक्षत्रों में बांटा गया। एक नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनिट का होता है तथा प्रत्येक नक्षत्र को पुन: 4 चरणों में बांटा गया है जिसका एक चरण 3 डिग्री 20 मिनिट का होता है। जन्म के समय जो राशि पूर्व दिशा में होती है उसे लग्न कहा जाता है। इसी वैज्ञानिक और गणितीय आधार पर विश्व की प्राचीनतम कालगणना की स्थापना हुई।

एक जनवरी से प्रारम्भ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका सम्बन्ध ईसाई जगत् व ईसा मसीह से है। इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया। भारत में ईस्वी सम्वत् का प्रचलन अग्रेंजी शासकों ने 1752 में किया। अधिकांश राष्ट्रो के ईसाई होने और अग्रेंजों के विश्वव्यापी प्रभुत्व के कारण ही इसे विश्व के अनेक देशों ने अपनाया। 1752 से पहले ईस्वी सन् 25 मार्च से शुरू होता था किन्तु 18वीं सदी से इसकी शुरूआत एक जनवरी से होने लगी। ईस्वी कलेण्डर के महीनों के नाम में प्रथम छ: माह यानि जनवरी से जून रोमन देवताओं (जोनस, मार्स व मया इत्यादि) के नाम पर हैं। जुलाई और अगस्त रोम के सम्राट जूलियस सीजर तथा उनके पौत्र आगस्टस के नाम पर तथा सितम्बर से दिसम्बर तक रोमन संवत् के मासों के आधार पर रखे गये। जुलाई और अगस्त, क्योंकि सम्राटों के नाम पर थे इसलिए, दोनों ही इकत्तीस दिनों के माने गये आखिर क्या आधार है इस काल गणना का? यह तो ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित होनी चाहिए।

ग्रेगेरियन कलेण्डर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3581 वर्ष, रोम की 2758 वर्ष यहूदी 5769 वर्ष, मिश्र की 28672 वर्ष, पारसी 189976 वर्ष तथा चीन की 96002306 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़, 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष है। हमारे प्रचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गयी है।

जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किन्तु विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिध्दांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है। नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमश: 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके ?

कैसे मनाऐं नया साल:

नव वर्ष की पूर्व संध्या पर दीप दान करें। घरों में सायंकाल 7 बजे घंटा घडियाल व शंख बजा कर मंगल ध्वनि करके इसका जोरदार स्वागत करें। भवनों व व्यावसायिक स्थलों पर भगवा पताका फहराऐं तथा द्वारों पर विक्रमी संवत 2069 की शुभ कामना सूचक वाक्य लिखें। होर्डिंग, बैनरों, बधाई पत्रों, ई-मेल व एस एम एस के द्वारा नव वर्ष की बधाई व शुभ कामनाऐं प्रेषित करें। नव वर्ष की प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर मंगलाचरण कर सूर्य देव को प्रणाम करें, प्रभात फेरियां निकालें, हवन करें तथा एक पवित्र संकल्प लें। भारत में अनेक स्थानों पर इस दिन से नौ दिन का श्री राम महोत्सव भी मनाते हैं जिसका समापन श्री राम नवमी के दिन होता है।

तो, आइये! विदेशी को फैंक स्वदेशी अपनाऐं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनायें तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।

4 COMMENTS

  1. बहुत उत्तम लेख है सुरभित शीतल मंद मलय हो नव वर्ष शुभ मंगलमय हो

  2. अति शोभनं, अति उत्तम. सही, सार्थक व सामयिक. ईसा संवत किसी प्रकार से भी सृष्टि के काल चक्र के अनुरूप नहीं है. पहले तो इसमें केवल १० मास ही होते थे और जनवरी , फ़रवरी बाद में जोड़ कर किसी प्रकार सामंजस्य बिठाया गया. अस्तु विद्वान लेखक के इस सामयिक व सारगर्भित लेख हेतु बधाई.

  3. बहुत अच्छी जानकारी दी है श्री बंसल जी ने. वाकई आज के समय में यह संवत लोगो को याद है तो यह भी बड़ा सुखद विषय है. यह बात अलग है की अधिकांश लोग सिर्फ और सिर्फ विक्रम संवत का नाम जानते है क्योंकि हर पूजा पाठ में विक्रम संवत वर्ष का नाम लिया जाता है. धन्यवाद.

  4. विश्व के एक सर्वाधिक वैज्ञानिक, सनातन नववर्ष की आपको अग्रिम में शुभकामनाएं.
    दुर्भाग्य से भारत में भी लोग ३१ दिसंबर की रात के अँधेरे और नशे से धुत्त होकर नए साल का स्वागत करने को आतुर रहते हैं. इनको नवप्रभात में नई ऊर्जा और सूरज के उजाले में नव वर्ष स्वागत की यह रीत कहाँ सुहाएगी??

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