अभिनंदन करो नए राजा का

1
144

अभिनंदन करो नए राजा का

हे मेरे जंगलवासियो ! आपको यह जानकर खुशी होगी कि असली दांत टूट जाने के बाद चार- चार बार नकली दांत लगवा आपके हिस्से का मर्यादाओं के बीच रह खा -खाकर आनंद करने वाला आज सहर्ष घोषणा करता है कि मैं, आपका राजा, बेहोशी के हालात में अपने खाने -कमाने के सारे अधिकार तमाम प्रजा सहित अपनी बेटे को सौंप रहा हूं। कल ज्यों ही सूरज उगेगा, यह तुम्हारा राजा होगा।

मन तो कहता है कि मरने के बाद भी तुम्हारा राजा रहूं पर इससे जंगल का लोकतंत्र गड़बड़ाने का खतरा है। गीदडों को कहने का मौका मिल जाएगा कि जिंदे जी तो मैंने गद्दी छोड़ी ही नहीं पर मरने के बाद भी जंगल के राजा के सिहांसन से चिपका रहा।

लोकतंत्र की गद्दी पर बैठा कौन राजा चाहेगा कि वह अपने खाने – हड़काने के अधिकार किसी और को सौंप कर राजनीति से सन्यास ले ले जबकि आज के दौर में सन्यासी भी अपना चिमटा, कंमडल गंगा किनारे छोड़ देश सेवा के अखाड़े में बैठकें निकाल पेशेवर राजनीतिज्ञों को धूल चटाने की फिराक में हैं। पर मैं नहीं चाहता कि जंगल पर एक और खतरा मंडराए। पहले ही चारों ओर से फैलते पढ़ते लिखते शहरों ने हम लोकतंत्र के पहरूओं पर कई खतरे खड़े कर दिए हैं।

तो हे मेरी प्रजा! कल से यह प्रजा पालक तुम्हारा शेर होगा। यह इस जंगल का नेतृत्व करेगा। आगे से यही जंगल में दंगे करवाएगा और यही जंगल में शांति पुरस्कार बंटवाएगा। मैं महसूस कर रहा हूं कि मेरे से अब जंगल में धर्म, जात के नाम पर दंगे करवाने का कार्य सफलता पूर्ण ढंग से नहीं हो पा रहा। जब जवान था तो जंगल में बात- बे- बात दंगा -फसाद- हड़ताल वैगरह करवा जंगल की तन से बहुत सेवा की। इसकी रगों में भी मेरा खून है। डीएनए जांच की जरूरत नहीं। आने वाले वक्त में यह ये सब सिद्ध कर देगा। इसे मन से प्यार देना। अब यही भविष्य में तुम्हें बहलाएगा- फुसलाएगा। तुम्हारी हर दुखती रग पर नमक छिड़क यही उस पर मरहम लगाएगा।

तो यही इस जंगल का इकलौता वारिस होगा। ये हमारा आखिरी फैसला है। अपने पराए इसे परिवारवाद कहते हैं, तो कहते रहें। उन्हें कहने को कुछ न कुछ तो चाहिए ही। वही अब जनता की गरीबी मिटाने के नाम पर अहिंसा का पुजारी होने के चलते अहिंसात्मक तरीके से, कानून के दायरे में रह कर, संविधान की मर्यादाओं का पूरी निश्ठा और लग्न से पालन करते हुए जंगल से हर रोज एक- एक खरगोश खाएगा। और उसके लिए रोज एक खरगोश हमारी पार्टी का प्रमुख लाएगा। वे मेरे इस बयान से बिदकते रहें तो बिदकते रहें। अपने पद पर अपने बेटे को बिठाना लोकतंत्र का हिस्सा है। मेरे पद पर मेरे परिवार के सदस्य को छोड़ कोई दूसरा बैठ जाए ये कहां का लोकतंत्र है? इतिहास गवाह है तंत्र कोई भी रहा हो, संतान का बाप की गद्दी पर पहला हक रहा है, और आगे भी रहेगा। । मैंने अपने बेटे को अपने पद पर बैठाने के लिए क्या- क्या नहीं किया? कौन नहीं करता? किसका किसका गला नहीं काटा? कौन नहीं काटता?

इस जंगल की राजनीति यही कहती है कि प्रधान का बेटा प्रधान बने। सीएम का बेटा ही सीएम बने। पीएम का बेटा पीएम बने। लुहार का बेटा लुहार रहे, कुम्हार का बेटा कुम्हार रहे। असल में जब अपने अपने पैतृक काम करते रहेंगे तो देश में बेरोजगारी नहीं बढ़ेगी। देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। और हमें चाहिए भी क्या!

अशोक गौतम,king

1 COMMENT

  1. जंगल में मंगल के बदले कहीं दंगल ना हो जाए? गौतम जी आपके विडंबनों में यह एक बढिया आलेख। वाह वाह वाह।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here