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जिंदगी - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
डॉ. शंकर सुवन सिंह सुबह होती है रात होती है|हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है|किताब के हर पन्ने पे,वही अध्याय होता है|हर अध्याय में,वही दैनिक दिनचर्या होती है|सुबह होती है,रात होती है|हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है|वक़्त न जाने किस मोड़ पे,किताब की जगह कॉपी दे…