शराबबंदी से बदलता महिलाओं का जीवन

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जगीना जांगड़े

बिहार की ही तर्ज पर कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य में शराबबंदी लागु करने का निश्चय किया गया। इसका असर छत्तीसगढ़ के कई गांवो में दिखने लगा है। जिला जांजगीर चांपा का कोसिर गांव इन्ही गांव में से एक है। जहां कुछ समय पहले तक कई परिवार शराब बंदी के कारण समस्याओं से जूझ रहे थे, अब वो अच्छा जीवन जी रहे हैं। परंतु महिलाओं को अफसोस है कि ये शराबबंदी पहले हो जाती तो कई परिवार बिखरने से बच जाते।

इस संबध में 19 साल की रजनी खुटे कहती हैं “हम चार भाई बहन है। पहले पिताजी दिन भर शराब के नशे में धुत रहते थें। मां-बाबा में इतना झगड़ा होता था कि घर में रहने का दिल नही करता था। शराबबंदी के कुछ दिनो बाद पिताजी काम की तलाश में छोटे भाई को अपने साथ लेकर पुणे गए। अभी वहीं कोई काम कर रहे हैं। अब घर पर सब ठिक चल रहा है”।

24 वर्षीय रीना अपनी स्थिति के बारे बताती है “बहुत छोटी थी तब शादी हो गई थी। जब मायके में थी तो पिताजी और भाई शराब पीते थे। थोड़ी बड़ी हुई तो घर वालों ने ससुराल भेज दिया। पहले पति दिन रात शराब की लत में डुबे रहते थे। शादी हुई देखते देखते 3 बच्चे हो गए लेकिन पति को किसी बात का होश नही रहता था। ससुर कोरबा में कोयले के खाद्दान में काम करते थें, उन्ही पर घर की सारी जिम्मेदारी थी। लेकिन शराब बंदी के बाद मेरे पति का दिमाग ठिक हुआ। बच्चों पर ध्यान देने लगें। काम की तलाश की तो पास के ही सरकारी स्कूल में दोनो पति पत्नि को मध्याहन भोजन बनाने का काम मिल गया। सब बच्चे भी स्कूल जाने लगे हैं। घर का माहौल अब पहले से बहुत अच्छा है। मेरे बच्चें अपने पिता से बहुत खुश है इसलिए मैं भी खुश हुँ। अगर शराब यहां बिकती ही नही तो शुरु से अपने पति के साथ खुश रह पाती”।

26 साल की अविवाहीत सरीता खुटे के अनुसार“शराब के कारण मेरी मौसी के परिवार में बहुत कष्ट हुआ है। बड़ी मौसी का बेटा बहुत शराब पिता था। मौसा जी ने दो शादी की थी। मां को मारता पिटता था। मौसा जी के देहांत के कुछ दिनो बाद मां ने सोचा बेटे की शादी करवा देते हैं शायद सुधर जाएं। लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। पत्नि को भी पिटने लगा। घर भी मौसा जी के देहांत के बाद दोनो पत्नियों ने चलाया। खेती बाड़ी की। और विधवा पेंशन के पैसो से घर चलाया। तब जाकर घर में चुल्हा जलता था। उसकी पत्नि 12वीं तक पढ़ी है। मौसी के बेटे को शराब पीने की लत ऐसी लगी थी की शराब के पैसों के लिए मौसा के देहांत के बाद खेत भी बेच दिए। फिर जब शराबबंदी हुई तो शराब की लत के कारण छुप-छुपा कर किसी तरह शराब का इंतजाम करता और शराब पीता ही रहा। आज भी घर सास के विधवा पेंशन से चलता हैं। एक सास की तो मृत्यु भी हो गई। बहु और सास दोनो मिलकर घर चलाती हैं। खेती बाड़ी बची नही तो बहु दूसरे के खेतो में रोज की मजदूरी करती है और सास के विधवा पेंशन को मिलाकर घर चल पाता है। शराबबंदी तो हो गई लेकिन पति अब भी शराब की तलाश में इधर उधर भटक रहा है। शराब जैसी चीज कहीं मिलनी ही नही चाहिए ताकि किसी को इसकी आदत न हो”।

50 साल की नीरजा जांगड़े ने बताया “मैं बहुत छोटी थी शादी हो गई। यही कोई 7-8 साल की रही होंगी। जब होश संभाला तो पति को देखा अच्छा काम धंधा कर लेते थें। लेकिन धीरे धीरे शराब की लत ऐसी लगी कि काम तो दूर की बात इकलौते बेटे की जब गर्मी के कारण तबीयत खराब हुई तो उसकी तरफ कोई ध्यान नही था। पति कुछ पढ़े लिखे थें इसलिए उन्हे दवाई लाने को बोला लेकिन शराब के नशे में वो तो ऐसे डुबे थें कि पुरानी दवा लाएं जिसे खाकर मेरा बेटा मर गया। बाद में गांव के एक पढ़े लिखे व्यक्ति ने बताया कि दवा का समय निकल चुका था। इसलिए वो मर गया। शराब ने कुछ दिनों बाद पति को भी निगल लिया। उनकी उम्र लगभग 30 साल की रही होगी कि लंबी बिमारी के बाद चल बसें। पति के जीवन मे किसी तरह चार पैसे जोड़कर बेटी की शादी की थी। आज दामाद घर चलाने में मदद करते हैं। वो सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। और जो विधवा पेंशन मिलता है उससे घर चलता है। अब मुझ बुढ़ी का खर्च ही क्या है। हां खुशी इस बात की है कि दामाद शराब नही पिते तो बेटी सुखी है। शराब ने पति और बेटे दोनो को निगल लिया इसलिए शराब से नफरत हो गई है। पिछले साल मैने गांव की कुछ औरतों को साथ लेकर शराब दुकान बंद करवाने की कोशिश भी की। अब सरकार की तरफ से ही यह पहल हुई है इसलिए बहुत खुश हुँ। भगवान से बस यही दुआ है जो मेरे साथ हुआ अब किसी के साथ न हो। लेकिन ये पहले बंद हो जाता तो गांव के कई घर बर्बाद होने से बच जातें।

16 साल की काजल अंचल कहती हैं “चाचा शराब पीते थें। शराब पीकर एक दिन बाइक पर चाची और बच्चे को लेकर कहीं जा रहे थे कि गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया और चाचा का पैर टुट गया। उस दिन चाचा को अहसास हुआ शराब पीने से क्या नुकसान है। पहले पत्थर तोड़ने का काम करते थें। पैर टुट गया तो चाची ने हिम्मत कर रोजगार गांरटी योजना के अंतर्गत काम करना शुरु किया। उसके इलावा भी गोबर का कंदा बनाकर दूसरे घरों में बेचती हैं। किसी का घर बनने वाला हो तो उसमे काम करती हैं। इस तरह के काम करके घर चल जाता है। चाचा का इलाज लंबे समय से चल रहा था। पैर अब इतना ठीक है कि चल फिर लेते हैं। और घर के छोटे मोटे कामों में चाची का हाथ बंटा देते हैं। अब शराब नही पीते”।

35 साल की चित्ररेखा खुटे कहती हैं “मेरे 3 बेटे और दो बेटी हैं। शराब के कारण बच्चे बचपन से ही काम करते हैं और घर चलता है। पति ने तो शराब के नशे में खेत बेच दिया। बच्चे पढ़ना चाहते थें लेकिन पढ़ नही पाए। पढ़ते तो काम कौन करता ? घर कैसे चलता ? अब बेटे कुछ बड़े हो गए हैं तो दूसरे राज्य में जाकर काम करते हैं। शराबबंदी होने के बाद पति का शराब छुटा और वो भी काम करने लगें। आर्थिक स्थिति ठिक हो गई और घर भी बना लिया है। दोनो बेटियों की शादी के लिए कुछ पैसे भी जमा कर लिए हैं। हां बस अफसोस है कि मेरे बच्चे पढ़ नही पाएं। अगर पढ़ लिख लेते तो शायद स्थिति और भी अच्छी होती। इसलिए शराब को छत्तीसगढ़ से ही नही बल्कि पूरे देश से हटा देना चाहिए ताकि हर परिवार सुखी रह सके”।

महिलाओं की आपबीती से साफ झलक रहा है कि शराबबंदी से पहले गांव में किस तरह के हालात थे। इसमें कोई शक नही कि सरकार का शराबबंदी का फैसला प्रशंसा योग्य है लेकिन स्थिति बता रही है कि शराबबंदी की ओर अगर समय रहते ध्यान दिया जाता तो कई परिवार बर्बाद होने से बच जाते। हांलाकि शराब के कारण सिर्फ कोसिर गांव की महिलाएं और बच्चों ने ही समस्याओं का सामना नही किया है बल्कि विकास के इस नए युग में आज भी देश की एक बड़ी आबादी शराब के दंश को झेलने के लिए मजबूर है। कई परिवार तबाह हो चुके और कुछ होने के कगार पर है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि विभिन्न कार्यक्रमों में शराब के विरुद्ध भाषण देने से ज्यादा देश से शराब को हटाने का प्रयास करे। शराब के कारण देश की आय में बड़ी वृद्धि दर्ज की जाती है लेकिन देशवासियों को इससे बचाने के लिए हमें आय का दूसरा विकल्प ढूंढ कर युवा देश को बचाने के लिए ठोस कदम उठाना ही होगा। (चरखा फीचर्स)

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