–राघवेन्द्र कुमार “राघव”-
ये जीवन का कौन सा मोड़ है,
जहाँ मार्ग में ही ठहराव है।
दिखते कुछ हैं करते कुछ हैं लोग,
यहाँ तो हर दिल में ही दुराव है ।
किस पर ऐतबार करें किसे अपना कहें,
हर अपने पराए हृदय में जहरीला भाव है ।
अपना ही अपने से ईर्ष्या रखता है,
हर जगह अहम् का टकराव है ।
अरे “राघव” तू यहाँ क्यों आया,
यहाँ दिखते रंगीन सपने महज़ भटकाव हैं ।।