लॉकडाउन बन रहा है घरेलू हिंसा का कारण

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शालू अग्रवाल

कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी से निपटने के लिए सरकार द्वारा लॉकडाउन का फैसला एक तरफ जहां कारगर साबित हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर इसके नकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 के कारण किये गए लॉक डाउन के बाद दुनिया भर में घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है। ब्रिटेन के एक प्रमुख समाचारपत्र श्द गार्जियनश् में प्रकाशित खबर के अनुसार कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत के बाद से ब्रिटेन में घरेलू हिंसा से संबंधित मिलने वाले केसों में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि दर्ज की गई है। अखबार ने घरेलू हिंसा पीड़ितों की मदद करने वाले यूके के 25 से अधिक संगठनों की रिपोर्ट के आधार पर यह खबर प्रकाशित किया है।

घरेलू हिंसा के इस दाग से भारत भी अछूता नहीं है। आउटलुक पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, “राष्ट्रीय महिला आयोग में लॉकडाउन के दौरान लिंग आधारित हिंसा में दोगुने से अधिक की वृद्धि दर्ज कराई गई है। मार्च के पहले सप्ताह में जहां घरेलू हिंसा के 116 केस दर्ज कराये गए वहीं अंतिम सप्ताह (25 मार्च-अप्रैल 01) के दौरान यह संख्या बढ़कर 257 हो गई। आयोग की अध्यक्षा रेखा शर्मा के अनुसार घरेलू हिंसा के मामले सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब में दर्ज किये गए हैं। ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं द्वारा बताए गए हैं, जो विभिन्न प्लेटफार्मों के माध्यम से आयोग तक पहुंच सकी है। यदि भारत के ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में होने वाली घरेलू हिंसा की रिपोर्ट दर्ज कराई जाएँ तो यह आंकड़ा और भी भयावह हो सकता है।

लॉकडाउन से पहले, इस साल जनवरी में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (,ulhvkjch) द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2018 में महिलाओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दर्ज किये गए कुल अपराधों में घरेलू हिंसा सबसे अधिक थी। दर्ज कराये गए मामलों में 31.9 प्रतिशत श्पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरताश् के तहत दर्ज किए गए थे। इसी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल 2018 में उत्तर प्रदेश महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्य रहा। जहां महिला हिंसा के 59,445 मामले दर्ज कराये गए। इन अपराधों में 2,444 केस दहेज हत्या के रूप में जबकि 284 मामले महिलाओं को आत्महत्या के लिए मजबूर करने के रूप में दर्ज कराये गए थे।

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार पश्चिमी उत्तरप्रदेश का रिकॉर्ड इस संबंध में सबसे खराब रहा है।  वर्ष 2016 से 2018 के बीच पश्चिमी उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद और मेरठ जिलों में पतियों द्वारा पत्नियों की हत्या के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। 13 मार्च, 2018 को मेरठ के बहसूमा थाना इलाके के अनुज ने अपनी पत्नी ममता का कत्ल कर दिया। तो वहीं कंकरखेड़ा के प्रवीण पाल ने 27 मार्च, 2018 को अपनी पत्नी विमलेश की हत्या कर दी थी। 2 अप्रैल, 2018 को ज्योति को उसके पति अमित ने मार दिया था। जावेद ने 8 सितंबर को अपनी पत्नी रिजवाना की हत्या कर दी थी। जनवरी 2019 में रोहटा में मनीता की हत्या उसके पति अजय ने की थी। इन क्रूर हत्याओं के पीछे एक तरफ जहां दहेज की मांग थी, वहीं अवैध संबंध भी एक बड़े कारक के रूप में सामने आया है। ऐसे में लॉक डाउन के दौरान स्थिति के और भी खराब होने की आशंका को बल मिलता है।

इस संबंध में मनोवैज्ञानिक डॉ काशिका जैन का कहना है कि “घरेलू हिंसा पति पत्नी के बीच मामूली कहासुनी से शुरू होती है, जो जल्द ही एक बड़े वैचारिक मतभेदों में बदल जाती हैं। यह मतभेद अक्सर विवाहित जोड़े के बीच सामंजस्य को नष्ट कर देता है। विशेष रूप से पुरुष अपनी महिला साथी के प्रति असहिष्णु होते हैं। वह जल्द धैर्य खो देते हैं और दंडित करने के उद्देश्य से अपनी पत्नी की बेरहमी से हत्या तक कर देते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अतुल शर्मा के अनुसार, पश्चिमी यूपी में अपराध का दृश्य बेहद भयावह है। “महिलाओं के खिलाफ अपराध दर को नियंत्रित करने के लिए पुलिस और प्रशासन दोनों को गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है।ष् उन्होंने कहा कि एक महिला का उसके पति और उनके रिश्तेदारों द्वारा हत्या न केवल पूरी तरह से अपमानजनक और अस्वीकार्य है बल्कि सभ्य समाज पर एक बदनुमा दाग भी है। विज्ञान के इस युग में भी केवल वैचारिक मतभेदों के कारण पत्नी की हत्या संपूर्ण समाज के लिए चिंता की बात है।

वास्तव में इस लॉकडाउन ने पुरुषों को और अधिक उग्र बना दिया है। एक तरफ जहां वह अपने घरों से बाहर जाने में असमर्थ हैं, वहीं वेतन कटौती और कम होती नौकरियों की आशंका ने उन्हें भविष्य के बारे में और भी चिंतित कर दिया है। परिणामस्वरूप वह अपनी निराशा और चिड़चिड़ाहट घर की महिलाओं पर निकाल रहे हैं और छोटी सी बात से शुरू हुआ मतभेद मारपीट और फिर हत्या तक पहुँच रहा है। इस संबंध में समाजसेवी आयुषी जैन का कहना है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक आक्रामक और गुस्सैल प्रवृति के होते हैं। कई बार वह अपनी झुंझलाहट और गुस्सा घर से बाहर किसी प्रकार निकाल लेते हैं। जिससे घर में शांति व्यवस्था बनी रहती है। लेकिन लॉक डाउन के इस कठिन परिस्थति में पुरुषों को भी घर में रहना पड़ रहा है। ऐसे में उनकी आक्रामक प्रवृति का सबसे अधिक शिकार पत्नी होती है। यही कारण है कि इस अवधि के दौरान महिला आयोग को घरेलू हिंसा की सबसे अधिक शिकायतें मिल रही हैं। हालांकि अब राष्ट्रीय महिला आयोग के अलावा देश के कई गैर-लाभकारी संगठनों ने स्थिति में हस्तक्षेप करते हुए ऐसे मामलों में ऑनलाइन परामर्श प्रदान करना शुरू कर दिया है। इन्होने पीड़िता के जीवन को खतरे में डाले बिना घरेलू हिंसा के मामलों में हस्तक्षेप करने के तरीकों पर लोगों को शिक्षित करने के लिए सोशल मीडिया पर दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। हालांकि जिन महिलाओं को इन प्लेटफार्मों तक पहुंचने के बारे में कोई जानकारी नहीं है, वे अभी भी असुरक्षित हैं। लॉकडाउन खत्म होने पर कोई निश्चितता नहीं होने के कारण, घरेलू हिंसा के पीड़ितों की मदद के लिए काम करने वाले संबंधित अधिकारियों और गैर सरकारी संगठनों को विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे छोटे परंतु कट्टर पितृसत्तात्मक क्षेत्रों में मजबूत पहल करने की आवश्यकता है।

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