भारत ही नहीं वरन् विश्व का हिन्दू अयोध्या में भगवान् राम की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर की सदियों से राह देख रहा है ! भगवान् राम तो लोभ-मोह से परे एक बार वनवास में चले गए थे – तब पिता का सम्मान रखना था उन्हें ! अब फिर से भगवान् राम की जन्मभूमि पर के मंदिर को यानी कि भगवान् राम को ही फिर से वनवास भेजा गया ! 450 वर्ष का अन्याय 4,00,000 हिन्दुओं का बलिदान, कोठारी बन्धुओं के वृद्ध माता-पिता के आंसुओं में से भी धधकती हुई राम मंदिर की आशा, जिन लोगों का राम जन्मभूमि पर इंच भर भी हक नहीं, ऐसे-ऐसे लोगों के साथ हिन्दुओं के सम्मान्य साधु-संतों को बिठा-बिठाकर किए गए समझौते के अनेकानेक प्रयास…….यह सब कुछ सरयू के जल में बह गया क्या ? तब भगवान् राम ने पिता के सम्मान के लिए वनवास भी झेला।
अब हम भी भारतीय लोकतंत्र की सर्वोच्च न्यायपालिका के सम्मान के लिए यह दुःख भी झेलेंगे कि अब फिर से भगवान् राम वनवास भेजे गए ! उनके अपने जन्मस्थान पर उनका अपना एक मंदिर हो – मंदिर भगवान् का घर माना जाता है – इसके लिए भगवान् को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर करने वालों ने यानी कि बार-बार निरर्थक अर्जियां प्रस्तुत कर देश और हिन्दुओं का अपमान करनेवालों ने तो न्यायपालिका का सम्मान नहीं किया ! लेकिन इस देश का हिन्दू आज दुःखी है ! किसी भी अन्य देश में 85 प्रतिशत से अधिक संख्या में शांति से रहने वालों पर 15 प्रतिशत द्वारा बड़े-बड़े अन्याय नहीं किए जाते – लेकिन भारत में हिन्दू भी अब भगवान् राम के साथ वनवास भेजे गए ! भगवान् राम को और करोड़ों हिन्दुओं की आशा जगी हुई थी कि इतने वर्षों के न्यायालयीन प्रयासों के बाद अब भगवान् राम को उनकी अपनी जन्मभूमि पर एक मंदिर मिलेगा ! लेकिन नहीं !
यह देरी करने में याचिकाकर्ता का क्या मतलब और क्या दुर्हेतु है, यह देश के हिन्दू नहीं समझते ऐसा भी नहीं है, लेकिन भगवान् राम तो अवश्य देख और समझ रहे होंगे कि उनको उनके मंदिर से कौन, क्यों, कब तक वंचित रख रहे हैं !
अयोध्या की परिक्रमा मार्ग में 400 मुस्लिम परिवारों को गरीब आवास योजना में अभी-अभी घर दिए गए – लेकिन अयोध्या में भगवान् राम को उनकी अपनी जन्मभूमि पर मंदिर के लिए कितनी राह देखनी होगी ? और तो और जब दूसरे दिन इसका निर्णय होनेवाला हो उस दिन फिर से भगवान् राम वनवास में ? 1 अक्टूबर को प्रयाग (जिसे कुछ लोग अल्लाहाबाद कहते हैं) के न्यायालय के एक न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो रहे हैं – इसका अर्थ यह है कि फिर से नए सिरे से ट्रायल चलेगी ? फिर अब तक इतने वर्षों से जो सुनवाइयां हुईं, जो निर्णय लिखा भी गया होगा, उसका क्या ? यह देरी करने में याचिकाकर्ता का क्या मतलब और क्या दुर्हेतु है, यह देश के हिन्दू नहीं समझते ऐसा भी नहीं है, लेकिन भगवान् राम तो अवश्य देख और समझ रहे होंगे कि उनको उनके मंदिर से कौन, क्यों, कब तक वंचित रख रहे हैं ! समझौते का बुरका पहनाकर हिन्दुओं को जलील करने की चाल आज तक बहुत चली गयी-न्यायालयों का सम्मान करनेवाले हिन्दू सब दुःख सहते रहेंगे – लेकिन कब तक भगवान् राम अपने मंदिर से वंचित रखे जायेंगे ? क्यों ? इतनी हताशा हिन्दुओं में निर्माण हो, यह किस का प्रयास चल रहा है ?
सेकुलर दिखने की यह फैशन भारत में कैंसर की तरह फैली है – जिनके मन में आज लड्डू फूट रहे होंगे कि वाह-वाह ! देखो हिन्दुओं के राम का मंदिर नहीं बन रहा है ना – वे यह अच्छी तरह समझ लें कि हिन्दू धर्म ने भगवान् राम की न्यायप्रियता देखी है और महाभारत के काल में शिशुपाल और भगवान् श्रीकृष्ण की कहानी भी देखी है ! जो यह सोचकर आज उत्सव मना रहे होंगे कि अब उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश सेवानिवृत्त होंगे, फिर नयी बेंच बनेगी, फिर नए सिरे से सुनवाई होगी और भगवान् राम को मंदिर कभी भी नहीं मिलेगा – ऐसे लोग यह भी समझ लें कि भारत का हिन्दू अब न्यायालयों की परम्परागत देरियों से उकता गया है, दुःखी है, आहत है ! हमारे जैसे लोग संपूर्ण देश में, समाज के हर वर्ग में प्रवास करते रहते हैं – हर वर्ग के हर उम्र के हिन्दुओं से मांग आ रही है कि अब बस ! यदि शाहबानो केस में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बावजूद भारत की संसद अलग कानून बना सकती है, तो भगवान् राम के मंदिर के लिए क्यों नहीं ? क्यों भारत की संसद भगवान् राम को भावी जन्मभूमि पर मंदिर के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर रही है ? भारत की संसद यह भी समझे कि भारत का हिन्दू 6 दशकों से स्वतन्त्र भारत में न्याय की राह देख रहा था – यह न्याय अपने लिए हिन्दू नहीं मांग रहे हैं !
भगवान् राम की अपनी जन्मभूमि पर उनका अपना मंदिर बने, जो पहले से ही था, इसके लिए हिन्दू तरस रहा था – अब हिन्दुओं को और ना तरसाओ, यही मांग भारत का हिन्दू भारत की संसद से कर रहा है ! बहुत देख ली न्यायालयीन प्रक्रियाओं की देरी, बहुत देखी ली झूठ-मूठ की याचिकाएं और बहुत देख लिए राजनीति से प्रेरित समझौते के खोखले प्रयास ! विदेशी बाबर के ढांचे को सम्मान देने वाले सेकुलर भी भारत ने बहुत देख लिए, अब बस ! बस हुआ भगवान् राम का कलियुगी वनवास ! नहीं राह देखनी है हिन्दुओं को न्यायालयीन देरी की – हिन्दू न्यायालयों का सम्मान करते हैं, करते रहेंगे लेकिन बस ! यह मसला भारत की अस्मिता का मसला है।
अब भारत की संसद भगवान् राम का मंदिर बनाने का कानून भगवान् सोमनाथ की तर्ज पर बनाए, यही एक तात्कालिक मांग है ! और सभी राजकीय पक्ष इसमें एक होकर हिन्दुओं का श्रद्धा स्थान और भारत का सम्मान ऐसे भगवान् राम के मंदिर के लिए कानून बनाए और वह भी अब बिना देरी के ! भारत के हिन्दुओं के धर्मसंयम की और परीक्षा अब ना ले कोई, यही भगवान् राम से प्रार्थना है !
प्रवीण भैया, आपने रुला दिया मुझे।
मंदिर तोडना आसन था अब बनाना मुश्किल पद रहा है .तोगड़िया जी तोड़ने की नहीं जोड़ने की राजनीती करो बेहतर होगा जिस दिन भारतीयों को आप यह विशवास दिला देंगे मंदिर अपने आप बन जाएगा
माननीय प्रविण तोगड़िया जी
क्या अब हम ये मान ले की भारत में हिन्दू बचे ही नहीं है क्योकि भारत में अनेक राजनैतिक पार्टिया है जो समयानुसार राम को अपने लिए खेलते आये है भारतीय जनता पार्टी जैसे दल ने तो भगवान राम को चुनाव जितने के लिए अपना ब्रांड एम्बेसडर बना लिया था लेकिन दुबारा राम को ही भूल गए और श्री राम जनता पार्टी को भूल गए ये तो होना ही था !मैंने आपका आलेख पढ़ा क्या अब हम विचारो की अभिवयक्ति मात्र से भगवान राम को न्याय दिला सकेगे या हमे १९९२-९३ की घटना की पुनरावृति करनी है ये हमे अभी तय करना होगा यदि हम ये नहीं कर सकते तो हमे ये अधिकार नहीं है की हम रामचरित्र मानश की पुस्तक अपने घर में रखे भगवान राम ने भी रावण को केवल एक मोका दिया था क्या हम श्री राम से भी अधिक सहन्सिल हो गए है क्या कोई हमे हमारे घर से नीकाल देगा तो हम चुपचाप चले जायेंगे यदि नहीं तो बाते कम और काम ज्यादा होना चाहिए यदि मैंने आपकी भावनाओ को चोट पहुचाया है तो माफ़ करिएगा ……………
आज हिन्दुओ को खतरा मुस्लिमो से ज्यादा दोगुले हिन्दुओ से है हिन्दू होते हुए भी पता नहीं क्यों ये मुस्लिमो के लिए मुस्लिमो से ज्यादा सोचते है छत्तीसगढ़ राज्य में हमने इस बात को देखा है सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाकर २०० -३०० वर्ष पुराने मंदिरों को तोडा गया आस्था के प्रतीक मूर्तियों को नगर निगम की कचरा ले जाने वाली गाडियों में ले जाया गया जबकि मुस्लिमो के किसी भी अवेध रूप से बने मजारो को हाथ तक नहीं लगाया गया गार्डन के अन्दर रोड के ऊपर और तो और मंत्रालय के वी आई पी गेट के अन्दर बने मजार जो की सुरक्झा की दृष्टी से खतरनाक है को छुआ भी नहीं गया है
“भगवान श्रीराम को फिर से वनवास????- डॉ0 प्रवीण तोगड़िया”
(१) न्यायालयीन प्रक्रियाओं द्वारा, न्याय करने में देरी करने की आदत, न्यायालयों के पास है; यह उनके स्वभाव और खून में है – माफ़ करे, कहने को बहाने बहुत लिखे जातें हैं.
(२) क्या हिन्दू के पास कोई अस्थायी विकल्प नहीं है ?
(३) राजा राम, घर से वंचित, शरणार्थी की तरह ही तो हैं – छपर में ?
(४) क्या, विकल्प के रूप में राम का अस्थायी निवास, जो भव्य हो, नहीं बन सकता जिसका केवल मात्र : कारण – न्यायालयों के कार्य करने की विलम्ब करने की प्रक्रिया ?
(५) मैं यह कह रहा हूँ – अस्थायी विकल्प के रूप में तुरंत भव्य निर्माण प्रारंभ करें.
(६) प्रवीण तोगड़िया जी कुछ तो करवा कर दिखा दीजिये.
जय श्री राम
चित्र कूट में बस रहे ,रहिमन अवध नरेश .
जा पर विपदा परत है ,सो आवत यहि देश ..
न तद्भासयते सूर्यो न शाशंको न पाव्क्ह;
यदगात्वा न निर्वार्तानते ,तत धाम परमं ममह ;
श्रीमद भगवद गीता —
आखानियाँ झाईं पडी ,पंथ निहार -निहार .
जीवनियाँ छाला पड़ा ,राम पुकार -पुकार .
कुछ समझ से बाहर है तोगड़िया जी!
बड़े दुःख कि बात है कि-
भगवान् दर दर कि ठोकरे खा रहे हैं!
भगवन किसी के दर कि ठोकर खा सकता है क्या?
राम चन्द्र जी तो क्लेश के कारण सबकुछ छोड़ के वनों में चले गए थे
उन्हें तो किसी बी चीज़ कि ज़रुरत नहीं थी
फिर ये मंदिर वाली बात, और ज़मीन वाली बात कुछ समझ में नहीं आ रही क्या चक्कर है ?
मेरे ख्याल से हनुमान से बड़ा रामचंद्र जी का भक्त कोन हो सकता है
हनुमान ने सीना चीर के दिखा दिया कि तुम मेरे मन में बसते हो?
तो अपने अन्दर ढूँढो ना राम को अयोधिया में क्यू ढूँढ़ते हो ?
और हाँ एक जगह आपने लिखा —
“नहीं राह देखनी है हिन्दुओं को न्यायालयीन देरी की”
तो क्या आप न्यायालय से ऊपर हो क्या ?
डॉ प्रवीन तोगडिया जी हम आपके इस पवन कार्य में साथ हैं. उम्मीद करता हूँ की हिन्दू इस बार जाग जायेगा, बरेली में दंगा करने और परोक्ष समर्थन देने वाले लोगों में भेद कर सकेगा. मुट्ठी भर मुसलामानों को अपने अनुसार शाशन करने और हिन्दुओं को परेशान करने की छूट नहीं दी जा सकती. हिन्दुओं को कमर कसनी होगी. ईंट का जवाब पत्थर से देना होगा. मुसलमान शालीनता और अदब से रहें. असभ्यता बर्दाश्त नहीं की जाएगी. तलिबिनी सोच को नेस्तनाबूद करना होगा.