आस्ट्रेलिया के बल्लेबाज फिल ह्यूज़ की शेफील्ड शील्ड के एक मैच के दौरान बाउंसर लगने से मौत हो गई। फिल ह्यूज़ के निधन से आस्ट्रेलिया क्रिकेट समेत पूरे क्रिकेट में मातम छा गया। और एक नई बहस को जन्म दे दिया कि क्या आधुनिक क्रिकेट सुरक्षित है।
फिल ह्यूज़ को आस्ट्रेलिया और भारत के बीच होने वाले पहले टेस्ट मैच में कप्तान माइकल क्लार्क की जगह शामिल किया जाना था । मगर, नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था। फिल ह्यूज़ के बारे में कहा जाता था कि वह अभ्यास के लिए मैदान पर तो जाते ही थे साथ ही शीशे के सामने अभ्यास करना पसंद करते थे। उनका कहना था कि इससे उनके स्ट्रोक का सही पता चलता है। ह्यूज़ ने केवल अपनी प्रतिभा के बल पर 18 वर्ष की उम्र में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कदम रख दिया था।
ह्यूज के परिजनों के मुताबिक 12 वर्ष की उम्र तक ह्यूज के साथ उनकी उम्र के खिलाडि़यों ने उन्हें चुनौती देना तक छोड़ दिया था, इसलिए वह अपने से बड़ी उम्र के बच्चों के साथ खेलते थे।
खेल के मैदान पर आक्रामकता और असल जिंदगी में बेहद सादगी भरे ह्यूज को ऑस्ट्रेलियाई लोग हमेशा एक शानदार व्यक्ति के रूप में याद रखेंगे। ह्यूज ने बेहद कम सुविधाओं और कम मौकों के बावजूद राष्ट्रीय टीम तक का सफर बनाया। हालांकि ह्यूज़ को शुरु से ही शार्ट पिच गेंदों को खेलने में तकलीफ होती थी. जिसके कारण उन्हें आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था। इसी कारण से वो कभी राष्ट्रीय टीम में स्थायी जगह नहीं बना पाए। फिल ह्यूज़ में अपार प्रतिभा थी इस बात में कोई शक नहीं था। इसलिए यही कारण था कि मैथ्यू हेडन के सन्यास लेने के बाद सलामी बल्लेबाज के लिए फिल ह्यूज़ आस्ट्रेलियाई चयनकर्ताओं की पहली पंसद बन कर उभरे थे. लेकिन फार्म में उतार-चढ़ाव के कारण वो टीम से अंदर बाहर होते रहे।
फिल ह्यूज़ का शुरुआती टेस्ट करियर काफी प्रभावशाली रहा। उन्होंने अपने दूसरे ही टेस्ट मैच की दोनों पारियों में दक्षिण अफ्रीका की बेहतरीन गेंदबाजी आक्रमण के सामने शतक जमाया और इस स्तर पर यह उपलब्धि पाने वाले वह सबसे युवा खिलाड़ी भी बने थे. सिर्फ यही नहीं फिल ह्यूज ने साल 2013 में एशेज में इंग्लैंड के खिलाफ एस्टन एगर के साथ अंतिम विकेट की साझेदारी का नया विश्व रिकार्ड भी कायम किया। इस तरह से देखा जाए तो फिल ह्यूज़ अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर पाए।
ऐसा नहीं कि फिल ह्यूज़ की मौत क्रिकेट के मैदान पर होने पहली मौत थी। दरअसल, मैदान पर ये सिलसिला तो 1870 में शुरु हो गया था जब इंग्लिश लीग क्रिकेट के एक मैच में युवा तेज गेंदबाज जॉन प्लैट्स की तूफानी गेंद का शिकार जॉर्ज समर्स नाम का बल्लेबाज हुआ था। यह क्रिकेट इतिहास के लिए एक भयावह लम्हें की तरह था। जॉन प्लेट्स ने जैसे ही अपनी गेंद डाली, वह काफी उछाल के साथ लॉर्ड्स की पिच पर उठी और सीधे समर्स के सिर पर लग गई। चोटिल समर्स को मैदान से घर ले जाया गया, जहां चार दिनों के बाद उनकी मौत हो गई थी। इस घटना का ज़िक्र करना यहां इसलिए भी जरुरी था कि इसे इत्तेफाक ही कहा जाएगा कि फिलिप ह्यूज की उम्र और समर्स के उम्र में महज 1 दिन का फासला था। समर्स की जिस दिन मौत हुई थी उस दिन उनकी उम्र 25 साल 363 दिन थी और 2 दिन बाद उनका बर्थडे था। वहीं, ह्यूज की उम्र भी 25 साल 362 थी और 3 दिन बाद उनका जन्मदिन था। हालांकि जार्ज समर्स ने कोई भी अतंराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेला था.
अब सवाल ये उठता है कि आज का क्रिकेट कितना सुरक्षित है । वैसे आधुनिक क्रिकेट अब बदल गया है। पहले बल्लेबाज हेलमेट नहीं पहनते थे इसलिए उनकी रक्षात्मक शैली काफी मजबूत थी लेकिन हेलमेट पहनने के बाद बल्लेबाज अब ज्यादा जोखिम लेने लगे है. यहां इस बात का जिक्र करना जरुरी है कि फिल ह्यूज़ का हेलमेट नया नहीं था और वो हल्का फुल्का था।
इन सब बातों का कोई मतलब नहीं रह गया क्योंकि विश्व क्रिकेट ने अपना एक सच्चा हीरो खो दिया जिसकी भरपाई होने में एक लंबा वक्त लगेगा। आईसीसी के अधिकारियों को इस घटना से कड़ा सबक लेते हुए सख्त कदम उठाने होंगे ताकि भविष्य में ऐसा कोई हादसे ना हो