कमल कुंज सरोवर में जब,
ज्योतिपुंज रवि ने लहराया,
शीतल समीर ने जल को छूकर,
लहरों का इक जाल बिछाया।
प्रातः की नौका विहार का,
दृष्य ये अनुपम देखके हमने,
नौका को कुछ तेज़ चलाया,
दूर कमल के फूल खिले थे,
उन तक हम न पहुंच सकते थे,
दूर से देख कमलों पुष्पों को हमने,
मन विभोर को यों समझाया,
कीचड़ में जो कमल खिले हैं,
दूर से ही सुंदर दिखते हैं,
कठिन परिस्थितियों में भी हम,
कमल कमलिनी बन सकते हैं।