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प्रेम भी अपरिपक्व होने लगा है.......... - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
अर्पण जैन 'अविचल' स्त्री की देह तालाब-सी है, बिल्कुल ठहरी हुई सी उसमे नदी के मानिंद वेग और चंचलता कुछ नहीं फिर भी पुरुष उस तालाब में ही प्रेम खोजता है, सत्य है क़ि खोज की भाषा भी सिमट-सी गई हैं वेग का आवरण भी कभी कुंठा के आलोक में…