‘लव-जेहाद ‘ भाग – एक

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खरखौदा थाना -जिला मेरठ [उत्तरप्रदेश] के एक गाँव की वह लड़की – जिसके साथ विगत अगस्त में दुष्कर्म और गैंग रेप की वारदात हुई थी -अब वो स्वयं ही इस वारदात से इंकार कर रही है। उस तथाकथित पीड़िता ने अब अपने ही माता-पिता और परिवार वालों को जेल भिजवाने का पूरा इंतजाम कर दिया है।हिंदुत्व वादियों का दवाव ठुकराकर वह अपने प्रेमी कलीम के साथ – ‘लव-जेहाद ‘ पर जाने को तैयार हो गई है।

अभी तक तो ‘लव-जेहाद’ के प्रसंग में दो ही नजरिये दरपेश हुए हैं। एक नजरिया उनका है जो कि अपने आपको हिन्दुत्ववादी या राष्ट्रवादी कहते हैं। उनका मानना है की अलपसंख्यक- मुस्लिम समाज के युवा एक विचारधारा के तहत हिन्दू समाज की लड़कियों या ओरतों को बरगला कर प्यार के जाल में फंसा कर उनका धर्म परिवर्तन किया करते हैं। उनके मतानुसार यह इस्लामिक वर्ल्ड का वैश्विक एजेंडा है। इसीलिये ‘लव-जेहाद’ के विरोध के बहाने ये हिन्दुत्ववादी – तमाम हिन्दुओं को संगठित कर हरेक चुनाव में साम्प्रदायिक आधार पर – बहुसंख्यक वोटों का भाजपा के पक्ष में ध्रवीकरण करने के लिए मशहूर हैं। दूसरा नजरिया उनका है जो अपने आप को न केवल प्रगतिशील -धर्मनिरपेक्ष बल्कि बुद्धिजीवी या साम्यवादी भी समझते हैं। इनका मत है कि प्यार -मोहब्बत पर कोई पहरेदारी नहीं की जा सकती। यह स्त्री -पुरुष अर्थात ‘दो सितारों का जमी पर मिलन’ जैसा ही है। ये श्रेष्ठ मानव – समतावादी विज्ञानवादी प्रगतिशील – धर्मनिरपेक्ष प्राणी कहलाते हैं। ये निरंतर उन तत्वों से संघर्ष करते रहते हैं ,जो राजनीति में धरम -मजहब का घालमेल करते हुए पाये जाते हैं। किन्तु जब यही काम अल्पसंख्यक वर्ग के द्वारा होता है तो बगलें झाँकने लगते हैं। पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिला अंतर्गत – खगरागढ़ के मकान में हुए बम विस्फोट और उस घटना स्थल पर- जिसमे -वहां बम बनाते हुए मारे गए और घायल तृणमूल के नेता पाये गए -यदि वे हिन्दू होते तो सोचो क्या गजब हो गया होता ? चूँकि वे अल्पसंख्यक वर्ग के थे. इसलिए अपनी धर्मनिरपेक्षता के वशीभूत किसी ने भी उनकी कोई आलोचना नहीं की। यही वजह है कि एक बेहतरीन विचारधारा होने के वावजूद बंगाल में वामपंथ को गहरा आघात पहुंचा है और एक फ़ूहड़ -पाखंडी महिला के भृष्टाचार को नजरअंदाज कर वहां की जनता उसे ही बार-बार चुनाव जिता रही है। खैर यह मामला यही छोड़ मैं पुनः ‘लव -जेहाद’ पर आता हूँ।

खरखौदा गैंग रेप काण्ड के विमर्श में – सरसरी तौर पर उपरोक्त दोनों ही धड़े अपने-अपने स्थान पर सही लगते हैं। लेकिन ‘लव-जेहाद’ के असर से खरखौदा गाँव की लड़की ने जब अपने माँ -बाप को ही आरोपी बना दिया तो उपरोक्त दोनों धड़े भी कठघरे में खड़े हो चुके हैं। उस लड़की ने जो नया स्टेण्ड लिया है उससे हिन्दुत्ववादी संगठन और भाजपा नेता तो ‘बैक फुट ‘ पर आ ही गए हैं। किन्तु उस लकड़ी के द्वारा – अपराधियों को बचाने और माँ -बाप को उलझाने से सिद्ध होता है कि ‘लव-जेहाद ‘ न केवल एक हकीकत है बल्कि अब वह एक लाइलाज नासूर भी बन चुका है। . निश्चय ही ‘ यह लव-जेहाद’ नामक विमर्श सभी भारतीयों के लिए गम्भीर चिंता का विषय है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि’लव-जेहाद’ नामक इस विषय को प्रतिबद्धता से परे होकर -निष्पक्ष और सापेक्ष सत्य के अनुरूप विश्लेषित किये जाने की सख्त आवश्यकता है।
[ क्रमश ; शेष अगली कड़ी में ! ]

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