प्रेम इतना भी न करो किसी से,
कि दम उसका ही घुटने लगे,
फ़ासले तो हों कभी,
जो मन मिलन को मचलने लगे।
भले ही उपहार न दो,
प्रेम को बंधन भी न दो,
एक खुला आकाश दे दो,
ऊंची उड़ान भरने का,
सौभाग्य दे दो…..
लौट के आयेगा तुम्हारे पास ही,
ये तुम वरदान ले लो।
प्रेम बंधन है, न बलिदान है,
प्रेम मे विस्तार है,
प्रेम मे गहराई है,
प्रेम मे संग साथ है,
साथी का विश्वास है,
प्रेम तो बस प्रेम है,
समझ है,
ना कि उन्माद है।
प्रेम मे गहराई है………………………..Nice poem God grace you more!