प्रेम

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प्रेम इतना भी न करो किसी से,

कि दम उसका ही घुटने लगे,

फ़ासले तो हों कभी,

जो मन मिलन को मचलने लगे।

भले ही उपहार न दो,

प्रेम को बंधन भी न दो,

एक खुला आकाश दे दो,

ऊंची उड़ान भरने का,

सौभाग्य दे दो…..

लौट के आयेगा तुम्हारे पास ही,

ये तुम वरदान ले लो।

प्रेम बंधन है, न बलिदान है,

प्रेम मे विस्तार है,

प्रेम मे गहराई है,

प्रेम मे संग साथ है,

साथी का विश्वास है,

प्रेम तो बस प्रेम है,

समझ है,

ना कि उन्माद है।

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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