माँ तुम्हें पुकारती, माँ तुम्हें पुकारती ।।

एक आह्वान एवं भावांजलि – वीर सेनानियों को ।

देश के सपूतों ! मातृभू के रक्षकों !
शूरवीर सैनिकों ! क्रान्तिवीर बन्धुओं !
साहसी सेनानियों !
माँ तुम्हें पुकारती , माँ तुम्हें पुकारती ।।
*
आज सब आतंकियों को,
आक्रमणकारियों को,
और देशद्रोहियों को ,
भेज दो यमलोक को ।
माँ तुम्हें पुकारती, माँ तुम्हें पुकारती ।।
*
आओ, तिलक भाल पर कर दूँ ,
प्रहरी बन सीमा पर जाओ ,
शत्रु पराजित करके तुम फिर
विजयी होकर वापस आओ ।
माँ तुम्हें असीसती , माँ तुम्हें पुकारती ।।
*
चिरजीवी तुम रहो सदा ही,
. सफल रहो तुम वर्चस्वी ,
अभिनन्दन हम करें तुम्हारा,
गौरवान्वित तुम रहो यशस्वी ।
माँ ये स्वप्न देखती , माँ तुम्हें पुकारती ।।
*
प्राण निछावर किये देशहित,
वे सेनानी अमर हो गए ,
जीवन उनका सफल हो गया,
भारतवासी कृतग्य हो गए ।
माँ गर्वित सी देखती, माँ तुम्हें पुकारती ।।
*
माँ तुम्हें पुकारती , माँ तुम्हें पुकारती ।।
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शकुन्तला बहादुर
कैलिफ़ोर्निया

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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

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