-सुरेश हिन्दुस्थानी-
क्या आप पार्टी के संस्थापक कहे जाने वाले अरविन्द केजरीवाल वामपंथ की विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रहे हैं? जिस प्रकार से वामधारा के कथित बुद्धिजीवी आम आदमी पार्टी का दामन थाम रहे हैं, उससे तो ऐसा ही लगता है। वर्तमान में जितने भी लेखक आप के बारे में अच्छा लिख रहे हैं, वे सभी वामपंथी विचार के हैं। इन तमाम बातों से ही यही प्रतिपादित होता है कि केजरीवाल वामपंथी विचार को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। अगर यह बात सही है तो देश के लिए घातक है, क्योंकि वामपंथी धारा का प्रवाह विदेशी शक्तियों द्वारा होता है। भारत में तो केवल पोलित ब्यूरो ही काम संभालते हैं। देश की मुख्य धारा से नकारात्मक भाव रखने वाले वामपंथी विचार यह कभी नहीं चाहता कि भारत अपने दम पर आगे बढ़े, प्रतिभा संपन्न भारत देश की आर्थिक रूप से कमजोर जनता ऐसे लोगों की लोक लुभावन नीतियों के जंजाल में फंसकर इन्हें अपना कर्णधार मानने की भूलकर बैठती है। वामपंथ के समाजवाद को केजरीवाल पूरी तरह से लागू करने का अभियान चला रहे हैं।
केजरीवाल टीम के बैराग्य का खुलासा तो सरकार बनते ही होने लगा है। आप की सरकार खबरों में बने रहने के लिए नाटक करती दिखती है, जिससे लगने लगा है कि वह आज की राजनीति करना चाह रही है, आज की राजनीति का मतलब है खबरों में बने रहना। आप की सरकार आगामी दिनों में लोकपाल विधेयक लाएगी, जो भ्रष्टाचार को कितना खत्म करेगा, वह देर-सवेर उजागर हो जायेगा। जहां सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार की निरंकुशता वहां लोकपाल से कुछ भी बदलने वाला नहीं है। जिस प्रकार से समाजसेवी अण्णा हजारे के कंधों पर सवार होकर केजरीवाल ने अपने आपको इस काबिल बनाया, आज केजरीवाल उन्हीं बूढ़ी आंखों के सपने को तार तार करने पर उतारू होते जा रहे हैं। दिल्ली की जनता को दिखाए सपनों पर धुंधलका छाने लगा है। अब सवाल इस बात का है कि ऐसे सपने केजरीवाल ने दिखाए ही क्यों, जिन्हें लागू करने के लिए वर्षों की मेहनत की दरकार है।
केजरीवाल का काला सच !
दरअसल अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ और कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति और चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारत अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रमन मेग्सेसे’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति तक बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रमन मेगसेसे’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। उन्हीं ‘रमन मेगसेसे’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रमन मेगसेसे’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल को वही ‘रमन मेगसेसे’ पुरस्कार मिल चुका है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है।
‘फोर्ड फाउंडेशन’ के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ‘कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया। यही नहीं, ‘कबीर’ को ‘डच दूतावास से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिला है। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है। अंग्रेजी अखबार ‘पॉयनियर में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ ‘हिवोस’ के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है। इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। ‘हिवोस’ को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।
डच एनजीओ ‘हिवोस’ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है, जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं। इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने ‘पनोस’ नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय ‘पनोस’ के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। पनोस में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी ‘पनोस’ के जरिए फोर्ड फाउंडेशन की फंडिंग काम कर रही है।
कांग्रेस की मजबूरी है
देश में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार और महंगाई का दंश आम जनता को खाए जा रहा है, उसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार कांग्रेस की राह में कई रोड़े हैं। वर्तमान में कांग्रेस अपनी हार को लेकर भयभीत है। कांग्रेस के नेताओं के चेहरे पर इसकी झलक भी साफ दिखाई दे रही है। कांग्रेस के नेता कुछ भी कहें, लेकिन जिस प्रकार से देश में वातावरण निर्मित हो रहा है, उससे कांग्रेस के भविष्य को लेकर संशय पैदा हुआ है। कांग्रेस हमेशा से ही ऐसी राजनीति खेलती रही है कि कैसे भी हो सत्ता प्राप्त की जाए, फिर चाहे इसके लिए मोहरे ही क्यों न खड़े करना पड़े। कांग्रेस पार्टी यह भी भलीभांति जानती है कि इस बार उसके विरोधी वोट का प्रतिशत कम हुआ है, और विरोधी वोटों में फूट कैसे डाली जाए, इसी नीति पर आज कांग्रेस पूरी तरह से केन्द्रित हो गई है। वैसे भी कांग्रेस ने हमेशा अंग्रेजों की फूट डालो और राज्य करों की नीति का अनुपालन किया है। भारत के सांस्कृतिक समाज में फूट डालकर ही कांग्रेस अभी तक राज करते आई है। यह भी तथ्य है कि जिस दिन भारत की जनता इस फूट के झांसे से बाहर आ जाएगी, उस दिन कांग्रेस में भी शायद लोकतंत्र दिखाई दे, अन्यथा भविष्य में केवल विरासत की राजनीति पर केन्द्रित होकर रह जाएगी। वास्तव में कांग्रेस में लोकतंत्र का सफाया हो चुका है, यह केवल कांग्रेस या अंग्रेजों के राज्य में ही होता था कि एक विरासती नौसिखिया देश के विद्वान नायकों को पाठ पढ़ाए। इन्हीं नीतियों के कारण ही आज देश का जनमानस कांग्रेस से विक्षुब्ध है। कांग्रेस ने शायद यही सोचकर केजरीवाल को समर्थन दिया है कि यह आगे बढ़े और भाजपा को मिलने वाले वोटों को काटकर हमारी सरकार बनाने में मदद करे। कांग्रेस जानती है कि केजरीवाल अगर देश में 20 सीट भी ले गया तो विरोधी दल की 50 सीट को प्रभावित कर देगा। यह सब भाजपा को रोकने की कांग्रेसी साजिश है। अब सवाल यह भी है कि यह साजिश की राजनीति देश में कब तक चलती रहेगी। इस प्रकार की राजनीति का पर्दाफाश होना और समाप्त होना जरूरी है। नहीं तो देश में जो विघटन का बीज कांग्रेस ने बोया है उसकी परिणति कितनी खतरनाक हो सकती है, इसका विचार हम सभी को करना चाहिए। सरकार की साजिश लगातार बढ़ती जा रही हैं। कांग्रेस पार्टी को ऐसा लगने लगा है कि राहुल गांधी के प्रभाव को सकारात्मकता प्रदान करने के लिए साजिश करना जरूरी है, नहीं तो राहुल का भविष्य बनने से पहले ही खराब हो जाएगा, जिसकी गुंजाइश लगभग तय है। आज देश का युवा वर्ग पूरी तरह से अपडेट है, उसे घटित होने वाली हर स्थिति का ज्ञान है, केजरीवाल के अपने बच्चे की कसम खाकर कांग्रेस से समर्थन नहीं लेने की बात कही थी, इस बात को केजरीवाल भले ही भूल गए होंगे, लेकिन देश के मतदाताओं को केजरीवाल की हर बात याद है।
खतरनाक हैं आशुतोष जैसे पत्रकार
आशुतोष जैसे पत्रकार, आप जैसे समाजवाद के लिए क्यों खतरनाक हो सकते हैं! आशुतोष वो बला हैं, जो बसपा पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष, कांशीराम से थप्पड़ खाने के बाद, पत्रकारिता जगत में चमके थे। आज-तक की सेवा करने के बाद आईबीएन-7 के साथ जुड़े। बतौर पत्रकार बहुत खास नहीं हैं, पर काम की जगह नाम के बल पर तवज्जो पाने वाले हिंदुस्तान में, आशुतोष को नाम का फायदा मिला। लाखों के पैकेज पर उन्हें नौकरी मिलने लगी। नामचीन बन गए। लेकिन इसी के साथ, आशुतोष उन पत्रकारों की श्रेणी में शामिल होते चले गए जो सिद्धांत से समझौता सिर्फ इसलिए करते गए कि उनकी कुर्सी बची रहे और मेहनताना लाखों रुपये महीने का आता रहे। पूंजीवाद के दौर में शोषण होता है और होता रहेगा ये आशुतोष जैसे पत्रकारों का निजी सिद्धांत है। पत्रकारिता का मतलब गुलामी और चापलूसी कर अपना कद बनाये रखना, आशुतोष जैसे पत्रकारों के प्रोफेशनल सिद्धांत का बुनियादी हिस्सा है। निजी नफा नुकसान को तवज्जो, ये आशुतोष के व्यक्तित्व का हिस्सा है, जो गाहे-बगाहे उभरकर आया है। इसी महत्वाकांक्षा के चलते आशुतोष जैसे पत्रकार सत्ता की मलाई चखने के लिए आप में शामिल हो गए। इससे यह भी साफ हो गया कि आप पार्टी का कोई सिद्धांत नहीं है।