मधेश अपडेट : वृषेश चन्‍द्र लाल

नोट : भौगोलिक रूप से नेपाल को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया हैः हिमालय, पहाड़ और मधेश।  वैसे तो पूरा नेपाल ही एक दशक से अशांत है। सो, मधेश  भी उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है।  (सं.)

संक्षिप्त में प्रस्तुत हैं मधेश को लेकर कुछ सूचनायें — 

(1) संघीयता और मधेश से सम्बन्धित मूल मुद्दायें अभी सब से संकटपूर्ण अवस्था में है । मधेश विरोधियों के लिए अभी का समय कुछ ज्यादा ही अनुकूल दिखाई दे रही है । काँग्रेस, एमाले और माओवादी के मधेश विरोधी नेता अक्ल से पैदल कुछ लोगों के सहयोग से प्रायोजित कोच, मिथिला, भोजपुरा, अखण्ड चितवन, अखण्ड सुदुर पश्चिम आन्दोलन को आग और हवा दे रहे है । मिथिला क्षेत्र में आन्दोलन चलाकर और निहत्थे लोगों के बीच विस्फोट करा कर सिधेसाधे मैथिलीभाषियों को बलि का बकरा बनाया गया है । लोगों को बाद में इस षड्यन्त्र का अनुभूत हुआ है और भविष्य में और जानकारी भी सामने आएगी ही ।

(2) चितवन, नवलपरासी और कंचनपुर के थारु भाईयों ने षड्यन्त्र को जान लिया है और वे पहाडी प्रदशों में उनकी बस्तीयों को मिलाने का प्रस्ताव अस्वीकृत करते हुए विद्रोह पर उतर आए हैं । उनका दमन किया जा रहा है । प्रहरी और पहाडी मिलकर उनपर लाठी और गोली बरसा रहे हैं । समाचार है दर्जनों घायल हैं । आज कंचनपुर में थारुओं पर गोली चली ।

(3) काँग्रेस, एमाले और माओवादी मधेशमें ५ प्रदेश बनाना चाहते हैं । झापा, मोरंग, सुन्सरी –कोच प्रदेश(जहाँ खुद कोच ही अल्पसंख्यक होंगे ।) , सप्तरी से सर्लाही तक –मिथिला, रौतहट से पर्सा तक–भोजपुरा, नवलपरासी से बर्दिया तक – अवध, कैलाली और कंचनपुर को पश्चिमी पहाडी प्रदेशमे. और चितवन को पहाडी नारायणी प्रदेश में रखना चाहते हैं । मधेशियों को तोड कर कमजोर और जहाँ तक सम्भव हो अल्पसंख्यक बनाना चाहते हैं ताकि खस शासन का वर्चस्व बरकरार रहे । माओवादी ने भी चितवन को अलग रखने का प्रस्ताव किया है ।

(4) काँग्रेस और एमाले कहते हैं — संविधान चाहे बने या न बने , वे इसके अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे । राज्य पुनःसंरचना से प्रस्तावित २ मधेश (थारुवान और पूर्वी मधेश) भी उन्हे स्वीकार्य नहीं । संयुक्त लोकतान्त्रिक मोर्चा स्वायत्त मधेश प्रदेश और मधेशीयों का एक भी बस्ती पहाडी प्रदेश में न हो इसके लिए अड़ी है ।

(5) सम्भवतः अब निर्णय मतदान से होगा । मतदान में पहाड़ के जनजाति और मधेशी एक साथ हो सकते हैं । काँग्रेस, एमाले और माओवादी से आबद्ध जनजातियों को भी अनुभूत हो गया है कि वे भी मधेशियों के तरह ठगे जा रहे हैं । काँग्रेस, एमाले और माओवादी पहाड के प्रदेशों का सीमांकन इस तरह से कर रहे हैं जिससे उनके ही नाम पर बनाये गए राज्यों में खुद जनजाति ही अल्पसंख्यक हो जायें । वे कुछ संशोधनों के साथ राज्य पुनःसंरचना आयोग के प्रस्ताव से सहमत हैं जिसने इन बातों पर गम्भीरता से ध्यान दिया हैं ।

सम्भावनायें —

(क) सहमति के नौटंकी में काँग्रेस और एमाले के रुख से लगता है वे संविधान न बने इसके लिए संकल्पित हैं । अतः संविधान जारी होने का सम्भावना क्षीण लगता है ।

(ख) अपूर्ण संविधान जारी कर संविधानसभा की अवधि बढाई जा सकती है । षड्यन्त्र चालू है । सभामुख नेम्वांग का अन्तर्वार्ता आज का कान्तिपुर में देखें ।

(ग) काँग्रेस, एमाले और माओवादी के खस युवा नेताओं ने High Level Commission for Federal Affairs गठन कर अपूर्ण संविधान जारी करने का प्रस्ताव भी इसी षड्यन्त्र का एक हिस्सा है ।

(घ) मतदान के दौरान खस नेता मधेश के विपक्ष में एकजुट हो सकते हैं ।

(ड‍़) सर्वोच्च का निर्णय विधायिका का अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप है कहते हुए सभा का अवधि बढाने का निर्णय भी हो सकता है ।

(च) पशुपतिनाथ अगर ज्यादा मेहरबान होंगे तो अन्तिम क्षण में कुछ सहमति भी हो सकती है ।

(लेखक नेपाल के जाने माने राजनेता हैं और विशेष रूप से मधेश के उत्‍थान के लिए सक्रिय रहते हैं। उपरोक्‍त बिंदु उनके फेसबुक प्रोफाइल से यहां साभार प्रकाशित है)

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