महाशिवरात्रि का महापर्व

shiv( स्पैशल 10 मार्च महाशिवरात्रि विशेष)

परमजीत कौर कलेर

 

भारत उत्सव और त्यौहारों की धरती है…साल का ऐसा कोई भी महीना नहीं जाता जिसमें कोई मेला या त्यौहार न आता हो….इनमें से कुछ त्यौहारों का संबंध हमारी धार्मिक आस्था से भी जुड़ा होता है…फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को आता है…धार्मिक महापर्व महाशिवरात्रि…जिसे देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है….

चारो ओर श्रद्धा और भक्ति में डूबा जन सैलाब…हर कोई भक्ति के रंग में रंगा नज़र आता है…शिव के रंग में…शिव की भक्ति के रंग में …भगवान शिव की महिमा अपरम्पार है …वो हैं देवों के देव महादेव , त्रिलोकीनाथ, तीनो लोकों में उनका गुँगान होता है…त्रिनेत्री…विकारदर्शी…दुखहर्ता, पालनकर्ता जी हां आज है भगवान भोलेनाथ का महापर्व यानी कि महाशिवरात्रि ….देशभर में इस पर्व को बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है…इसे अपने देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बड़ी शिद्दत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है…ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवों के देव और सभी देवों के अराध्य परमपिता परमेश्वर यानि शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ था…इस दिन अपने अराध्य की अराधना करने के लिए श्रद्धालु सुबह से ही मंदिरों की ओर रुख कर लेते हैं…और लम्बी लम्बी कतारों में लग कर अपने अराध्य की पूजा करते नज़र आते हैं …हर श्रद्धालु की बस एक ही तमन्ना होती है वो है अपने अराध्य की नज़दीक से पूजा करने की…लोगों को लम्बी कतारों की कोई परवाह नहीं होती…दरअसल सवाल हमारी आस्था और श्रद्धा से जुड़ा है…पूरे भारत में भगवान भोलेनाथ के लाखों मंदिर हैं कोई भी ऐसा मंदिर नहीं होगा जिसमें शिवलिंग की प्रतिमा न हो…देवाधिदेव भोलेनाथ निराकार है…जिनका शरीर से कोई संबंध नहीं…शिव ही हैं ब्रहमा…गीता में भगवान शिव के बारे में कहा गया है कि शिव का कोई रंग रूप और आकार नहीं है…उनके दिव्य जन्म को न तो देवता और न ही महाऋषि जानते हैं…इससे स्पष्ट है कि भगवान शरीरधारी नहीं हो सकते …परमपिता परमात्मा शिव ज्योर्तिलिंग स्वरूप हैं…भगवान भोलेनाथ कल्याणकारी हैं…कहा जाता है भगवान विष्णु की नाभि से कमल निकला और उस पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए…ब्रह्मा जी और विष्णु में अक्सर इस बात को लेकर विवाद रहा है कि दोनों में कौन श्रेष्ठ हैं….दोनों देवताओं के विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिवशंभू …तब उनके सामने ये जानने की कोशिश की…मगर वो इसमें सफल न हो सके …तब उस ज्योर्तिलिंग ने अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं शिव हूं और मैंने ही आप दोनों को उत्पन्न किया है…तब दोनों देवताओं ने भगवान शिव के महत्व को जाना और शिव लिंग की पूजा की जाने लगी…शिवलिंग का आकार दीपक की लौ की तरह लम्बा है…इसलिए इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है..शिव के बारह ज्योतिर्लिंग देश के अलग अलग जगह पर हैं जिनसे जुड़ी हैं शिव की कोई न कोई कथा…सोमनाथ, महाकालेश्वर, केदारनाथ, वैद्यनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, विश्वेश्वर, मल्लिकार्जुन जी, घुश्मेश्वर , रामेश्वर, भीमाशंकर, ओंकारेश्वर और नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है…इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजा अर्चना करने से जन्म- जन्मांतर के पापों का नाश हो जाता है….और सभी भगवान शिव की कृपा पाते हैं ..

भगवान शिव , शंकर जिन्हें लोग प्यार में आकर न जाने कितने नामों से याद करते हैं…कभी वो भोले बन जाते है तो कभी शंभू…भगवान शिव की उपासना करने से पापो का तो अंत होता ही है वहीं जीवन में मुक्ति भी मिलती है… कहते हैं भगवान शिव की अराधना से सभी दुख ,तकलीफें, कष्ट दूर हो जाते हैं…भोले शंकर इतने दयालु हैं कि वो किसी को भी दुखी नहीं देख सकते और वो बिन मांगे ही सब की मुरादें पूरी करते हैं…वो हमेशा ही कृपालु, दयालु रहे हैं उन्हें जरा सा याद करने की देर भर है…ऐसी मान्यता है कि भोलेनाथ की महिमा अपरंपार है वो मौत की शैय्या में पड़े लोगों को भी जीवन दान दे सकते हैं…उनके भी दुख हर लेते हैं…उनके गुणों का तो बखान भी नहीं किया जा सकता है…भोलेनाथ हैं साक्षात् भगवान…भगवान शिव की पूजा युगों-युगों से हो रही है…प्राचीनकाल से भगवान शिव की पूजा, अर्चना, अराधना होती आ रही है…और भगवान के प्रति लोगों की आस्था आज भी उसी तरह बरकरार है…जिस तरह पहले हुआ करती थी …महाशिवरात्रि के महापर्व के शुभ अवसर की तो बात ही निराली होती है….और उसका अपना भी कमाल का होता है…शिवरात्रि पर मंदिरों को कई दिन पहले ही सजने का काम शुरू हो जाता है…मंदिरों की सजावट तो देखते ही बनती है…देवों के देव भोलेशंकर का महापर्व है तो हर कोई इस में होना चाहता है शामिल…महाशिवरात्रि वाले दिन सुबह से ही श्रद्धालु लम्बी लम्बी कतारों में लग कर भोलेनाथ के पावन दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार करते नज़र आते हैं…इस दिन स्नान करके सबसे पहले लोग मंदिरों का रूख करते हैं और अपने अराध्य की पूजा करते हैं…शिवलिंग पर आंक के पत्ते, बेलपत्र और धतूरे के साथ दूध चढ़ाया जाता है…इस दिन रखा जाता है व्रत…. ये व्रत होता है बिना अन्न और जल का…और इस व्रत को रात के बारह बजे के बाद ही खोला जाता है…पूरे भारतवर्ष में महाशिवरात्रि के इस पावन पर्व को मनाया जाता है और भगवान शिव की पूजा अर्चना करके मनवाछित फल की कामना करते हैं भक्त…और भोलनाथ लोगों की मनोकामना पूरी भी करते हैं….

शिवरात्रि जिसका इंतजार सारा आलम बड़ी बेसब्री से करता है…मौसम में बदलाव की आहट महाशिवरात्रि से ही शुरू हो जाती है…और इस महापर्व की प्रतीक्षा सिर्फ मानव ही नहीं बल्कि दानव भी करते हैं…इस महापर्व के आने से नई स्फूर्ति और नई आशा का संचार होता है…हमारे धर्मग्रंथों में और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आरही किव्यदंतियों में भी महाशिवरात्रि के महापर्व की महिमा का वर्णन है…इसके पीछे कई दंत कथाएं हैं …कुछ लोग मानते हैं कि इस दिन भगवान शिव का विवाह हुआ था…और कुछ लोगों का मानना है कि इस दिन भगवान शिव ने अवतार लिया था…इसलिए शिवरात्रि मनाई जाती है…अब सवाल ये भी उठता है कि बाकी देवताओं के साथ नौवीं या जयंती शब्द लगाया जाता है…मगर देवाधिदेव भगवान भोलेनाथ की महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है…शिव जिसका शाब्दिक अर्थ है कल्याणकारी…जबकि रात्रि का अर्थ है अज्ञानता रूपी अंधकार…आज के भौतिकवादी युग में सभी मनुष्य अध्यात्मिक कमी के कारण काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, ईर्ष्या जैसी बुराइयों की गिरफ्त में फंसा है….इन बुराईयों के वशीभूत होकर हम दुखी होते हैं…भगवान शिव शंकर ही ऐसे भगवान हैं जो हमें अध्यात्मिक ज्ञान से अवगत कराते हैं…और हमें इन बुराईयों से निजाद दिलवाते हैं…शिवरात्रि की रात को भगवान की शादी की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है…महादेव शिव शंकर बिन मांगे ही अपने भक्तों की मुराद पूरी करते हैं…एक आदमी और स्त्री जब विवाह बंधन में बंधते हैं…और संस्कारी बच्चों को जन्म देते हैं तो वो अनजाने में ही भगवान शिव की भक्ति करते हैं…भगवान शिव जागृत और प्रत्यक्ष रूप में इस जोड़े को आशीर्वाद देते नज़र आते हैं…देवों में देव महादेव के लिए ये बात मायने नहीं रखती कि मेरा भक्त हिन्दु है या किसी और धर्म पंथ का मानने वाला….वो तो सभी के हैं भगवान…इसलिए हर कोई उनकी अनजाने में ही भक्ति कर रहा होता है ।

भगवान शिव सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक हैं…वह हैं ज्ञान के प्रकाशस्रोत…वो हमें सुख समृद्धि देने के लिए इस सृष्टि पर अवतरित होते हैं…इसलिए तो शिव को स्वयं भू अर्थात् स्वयं प्रकट होने वाला भी कहा जाता है…एक प्रचलित कथा है…एक शिकारी शिकार के लिए अपने घर से निकला …मगर वो जंगल में घूमता रहा पर उसे शिकार नहीं मिला…रात हो गई …उसे रात मानों डराने लगी…क्योंकि वो ये सोच सोच कर परेशान हो रहा था कि उसे जंगली जानवर जिंदा नहीं छोड़ेंगे …आखिरकार उसे तरकीब सूझी और बेल के पेड़ पर चढ़ गया…ताकि कोई भी जानवर उसको अपना निवाला ना बना सके…मगर जब वो बेल के वृक्ष पर चढ़ा तो उसके जेहन में अपने बच्चों का खयाल आया…बच्चों के बारे में सोचने लगा कि आज उसके बच्चे भूखे सोएंगे और यही सोच कर वो रोने लगा…यही नहीं बच्चों की चिंता में वो बेल के पत्तों को तोड़ता रहा…अनजाने में ही बेल के वृक्ष के ठीक नीचे एक पुराना शिव लिंग था…और शिकारी जो पत्ते तोड़ता गया वो शिव लिंग पर गिरते गए यही नहीं उसके आंसू भी शिव लिंग पर गिरे…जिससे भगवान का जलाभिषेक होता रहा…संध्या से लेकर रात्रि तक शिकारी रोता रहा और पत्ते गिरते गए…इस अभिषेक पूजन से भगवान बड़े प्रसन्न हुए और प्रकट होकर भोलेनाथ ने शिकारी से पूछा बताओं तुम्हें क्या वरदान चाहिए…इस पर शिकारी हतप्रभ रह गया कि उसने भगवान की पूजा अर्चना नहीं की … फिर भी भगवान वरदान मांगने के लिए कह रहें हैं… इस पर भगवान ने कहा कि तूने संध्या से लेकर रात तक मेरा पूजन अर्चन किया है…मैं तुम से बहुत खुश हूं…तो इस पर शिकारी ने भगवान को कहा कि आप मुझे अगर कोई वर देना चाहते हो तो मैं चाहता हूं कि मेरे भूखे बच्चो को भोजन मिल जाए…मगर शिकारी ने फिर भगवान से प्रश्न पूछता कि मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरे बच्चों को भोजन मिल गया …भगवान शिव ने कहा कि तुम्हें विश्वास दिलाने के लिए मैं तुम्हे तुम्हारे घर में ही ले चलता हूं…और भगवान शिव ने वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस दिन जलाभिषेक करते हुए बेलपत्र चढ़ाएगा उसे सब कुछ आसानी से हासिल हो जाएगा….उसे न तो कोई दुख रहेगा, न चिंता, न शोक और न ही कोई डर…त्रयोदशी तिथि सभी प्राणियों के दुखों को हर लेगी…तब से लेकर अब तक ये त्रयोदशी तिथि महाशिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हुई…

महान देवी आदिशक्ति मां पार्वती जो हैं भगवान शिव की पत्नी …जब शिव और आदिशक्ति इस धरती पर आए तब बेशक दोनों एक दूसरे के लिए बने थे …मगर शिव को पाने के लिए पार्वती जी ने कठिन तपस्या की और साथ ही नारद जी ने उन्हें एक मंत्र के रूप में शिव का नाम जपने की सलाह दी… मंत्र था ओम नम: शिवाय…कहते हैं कि भगवान अपने भक्तों की पूजा ऐसे ही व्यर्थ नहीं जाने देते वो तो हमेशा से ही दयालु रहे हैं, कृपालु और सर्व शक्तिमान ।पार्वती शिव को पाने के लिए न तो उन्होंने सूरज की तपिश की परवाह की और नाही तेज बारिश और बर्फबारी की…पार्वती की कठिन तपस्या शिव के दिल के द्वारों को खोल देती हैं और वे पार्वती जी से शादी करने के लिए राजी हो जाते हैं …त्रिलोकों के मालिक शिव जो हमेशा भूत प्रेतों और पिशाचों से घिरे रहते हैं…उनके शरीर पर चिता की भस्म लगी रहती है, गले में सर्पों की माला उनके रूप के अद्भुत सौंदर्य को दर्शाता है…जटाओं में पावन गंगा…तो माथे पर ज्वाला…बैल को वाहन के रूप में इस्तेमाल करने वाले…शिव अमंगल रूप होने पर भी अपने भक्तों पर मंगल, और साथ ही सुख संपदा प्रदान करते हैं…काल के काल, देवों के देव महादेव के व्रत का भी अपना ही महत्व है…इस व्रत को नर नारी, बाल बच्चे हर कोई रखते हैं… इस दिन हर कोई सूर्योदय के साथ स्नान और ध्यान से निवृत होकर निराहार व्रत रखता है…अब सवाल ये उठता है कि शिव लिंग पर अंक, धतूरा, बेलपत्र, चढ़ाने से भगवान प्रसन्न क्यों होते हैं….दरअसल ये वस्तुएं बुराईयों का प्रतीक हैं…परमात्मा ने हमें काम क्रोध, लोभ, इर्ष्या, द्वेष जैसी बुराईयों को अर्पण करने की प्रेरणा देते हैं…इसलिए ये चढ़ावा शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है।यही नहीं इस दिन कुछ लोग भांग भी पीते हैं …वो इसे भोले का प्रसाद समझकर पीते हैं और भोले की भक्ति में रंगे नज़र आते हैं इस दिन बहुत ही सुन्दर शिव और पार्वती की झांकियां निकाली जाती है…जिनकी शोभा तो देखते ही बनती है…

भगवान शिव ने हमेशा संयम , संतोष , साधुता ,सादगी , सच्चाई पर चलने और कर्तव्य का पालन करने के साथ साथ हमेशा प्रभू का नाम जपते रहने का पाठ पढ़ाया आज जरूरत है सभी को भगवान शिव की शिक्षाओं पर चलने की… आप सभी को महाशिवरात्रि के इस महापर्व की शुभकामनाएं…महाशिवरात्रि आप सभी के लिए मंगलमय हो…भगवान शिव, शंभू की कृपा आप पर यूं ही बरसती रहे…और आप इसी तरह शिव की भक्ति के रंग में रंगे रहें…

 

1 COMMENT

  1. श्री गणेशाय नमः
    कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजम्वा
    श्रवण नयन्जम्वा मानस वापराधम
    विहितं विहित्म्वा सर्व मेतात क्षमस्व
    जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो श्री महादेवी शाम्भवी
    श्री राम प्रियाय श्रीमन महादेवाय नमः

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