महान क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ बख्शी

27 दिसंबर विशेष:-

मृत्युंजय दीक्षित

भारत के महान क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ बख्शी का जन्म 27 दिसम्बर 1900 को वाराणसी के बंगाली परिवार में हुआ  था। शचीन्द्रनाथ बचपन से ही प्रतिभाशाली एवं कुशाग्र बुद्धि के थे। उनके मन में राष्ट्रीय आंदोलनों का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। इंअर की परीक्षा देने के बाद ही वे क्रांतिकारी आंदांलन में कूद पड़े।

1922 में वाराणसी में अनुशीलन समिति की शाखा खुली तो ये उससे जुड़ गये और उसके माध्यम से नये क्रांतिकारियों की भर्ती और प्रशिक्षण केंद्रों का प्रबंध करने लगे।जिसके कारण अनुशीलन समिति का विस्तार होने लगा जिसके कारण गुप्तचर विभाग के कान खड़े हो गये। ब्रिटिश पुलिस इसके पीछे लग गयी। इसलिये उन्होनें बनारस छोड़कर लखनऊ को ही अपनी गतिविधियांे का केंद्र बना लिया।

1924 में हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का गठन हुआ और लखनऊ में संस्था का कार्य खड़ा करने का निर्णय लिया। बनारस और लखनऊ में इनके संगठन कौशल को देखकर इन्हें झंासी मेें भी कार्यविस्तार की जिम्मेदारी दी गयी। 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी मं रेल रोककर ब्रिटिश खजाना लूटा गया। इस अभियान के समय बख्शी जी अशफाक और राजेंद्र लाहिड़ी द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में बैठे थे।बख्शी जी के पास जिम्मेदारी थी कि जब तक काम पूरा न हो जाये गार्ड को अपने कब्जे मंे रखिये। सभी ने अपना काम ठीक से किया और काम सफल हो गया।घटना का समाचार फैलते ही आसपास के जंगलों में गहन छानबीन प्रारम्भ हो गयी। सूत्रों को जोड़ते हुए पुलिस ने चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां और बख्शी जी को छोड़कर सभी को पकड़ लिया।इन सब पर काकोरी कांड का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया।

ये तीनों क्रांतिकारी फरार हो गये। पुलिस इसके बाद भी इन्हें तलाश करती रही। बख्शी जी 1927 में भागलपुर में बंदी बना लिये गये।  बख्शी जी को आजीवन कारावास की सजा मिली।

ज्ेाल मंें भी इनकी संघर्ष क्षमता कम नहीं हुई। बंदियों के अधिकार एवं उन्हें दी जाने वाली सुविधा के लिए हुए संघर्ष में सदा आगे रहते थे। इसके लिए बरेली जेल में इन्होनें 53 दिन का ऐतिहासिक अनशन किया। इस अनशन में मनमनथ नाथ गुप्ता और राजकुमार सिन्हा भी इनके साथ थे।

स्वतंत्र भारत में बख्शी जी ने 1969 में बनारस दक्षिण से कम्युनिस्ट नेता को हराकर  विधानसभा का चुनाव जीता। 1975 में   राजनीति से संयास लिया और संस्मरण लिखने लगे। उनकी पुस्तक क्रांति के के पथ पर में अनेंक दुर्लभ घटनाओं की जानकारी है।सुल्तानपुर में रहते हुए 23 नवंबर 1984 को उनका देहान्त हुआ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here