महाराणा प्रताप और दानवीर भामाशाह

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-विनोद बंसल-
maharana

मेवाड़ के राजा उदय सिंह के घर जन्मे उनके ज्येष्ठ पुत्र महाराणा प्रताप को बचपन से ही अच्छे संस्कार, अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान और धर्म की रक्षा की प्रेरणा अपने माता-पिता से मिली। उन दिनों दिल्ली में सम्राट अकबर का राज्य था जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था। मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने हेतु महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा, स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा किन्तु, अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा। 1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ, जो पूरे विश्व के लिए आज भी एक मिसाल है। अभूतपूर्व वीरता और मेवाड़ी साहस के चलते मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिये और सैकड़ों अकबर के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया।

देश और धर्म की रक्षा के लिए प्रण-पण से अपने आपको आहूत कर देने वाले महान पुरूषों में मेवाड़ सपूत महाराणा प्रताप का नाम सदा अग्रणी रहा है। जब मुगलों के आतंक व अत्याचार के चलते लोग हताश हो रहे थे ऐसे समय वीर बालक महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की भूमि को मुगलों के चंगुल से छुड़ाने हेतु न सिर्फ वीरतापूर्वक संघर्ष किया बल्कि समस्त देशवासियों के लिए एक अनन्य प्रेरणा का संचार किया।

बालक प्रताप जितने वीर थे, उतने ही पितृभक्त भी थे। पिता राणा उदयसिंह अपने कनिष्ठ पुत्र जगमल को बहुत प्यार करते थे। इसी कारण वे उसे राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करना चाहते थे। रामायण के प्राण धन भगवान श्रीराम के राज्य त्याग व वनवास के आदर्श के सदा पुजारी रहे महाराणा प्रताप ने पिता के इस निर्णय का तनिक भी विरोध नहीं किया। उनके मन में बाल्यावस्था से ही सदा यही बात खटकती थी कि भरत भूमि विदेशियों की दास्तां की बेड़ियों में सिसक रही है। स्वदेश मुक्ति की योजना में वे सदा चिंतनशील रहते थे। कभी-कभी बालक प्रताप महाराणा कुंभ के विजय स्तम्भ की परिक्रमा कर मेवाड़ की धूलि मस्तक पर लगा, कहा करते थे कि, “मैने वीर छत्राणी का दुग्धपान किया है। मेरे रक्त में राणा सांगा का ओज प्रवाहित है। चित्तौड़ के विजय स्तम्भ! मैं तुमसे स्वतंत्रता और मातृभूमि भक्ति की शपथ लेकर कहता हूं कि तुम सदा उन्नत और सिसौदिया गौरव के विजय प्रतीक बने रहोगे। शत्रु तुम्हें अपने स्पर्श से मेरे रहते अपवित्र नहीं कर सकते।”

जंगल-जंगल भटकते हुए तृणमूल व घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया। तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए। ऐसे पराक्रमी भारत मां के वीर सपूत महाराणा प्रताप को उनके 474वें जन्मदिन पर राष्ट्र का शत्-शत् नमन।

2 COMMENTS

  1. I wish we have such inspiring articles more and more .
    We are proud of Maharana Pratap.
    This is what I remember since childhood and popular saying in Rajasthan villages what my grand mother told me.

    MAI AISA POOT JAN, JEHA RAANPRATAP;

    AKBAR SOOTYO AUNDH KE JAAN SIHIRANE SAANP.

    Meaning that Akbar was always fearful of Maharana Pratap and suffered from lack of sleep and lying curled up in bed because as if a sword was hanging over his head from Maharana Pratap.

    • एक कविता पढ़ी थी अरे घास री रोटी ही …….कन्हया लाल सेठी जी की लिखी हुई ! पढ़कर जब समझ में आया की कविता झूठ पर आधारित है महाराणा की शादी सन 15 57 में हुई सन 59 में अमरसिह का जन्म ,हल्दीघाटीयुद्ध 1576 में !फिर कविता का अमरसिह “”नन्हो सो अमरयो” केसे बताया ?फिर लिखा की प्रताप ने अकबर को चिठी लिखी जिसका अकबर नामें तक में जिक्र नहीं केवल अंग्रेज लेखक टा ड ने हमारे गोरव को खंडित करने को लिखा

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