महिला,नारी या अबला ?

1
1158

डॉ. मधुसूदन

(एक) प्रवेश:
बहुतों को, विशेषकर कुछ सुसंस्कृत सुशिक्षित महिलाओं को भी, अबला शब्द को लेकर प्रश्न सताता है;
कि, हमें अबला क्यों कहा जाता है?

इसका उत्तर सही संदर्भ में, समझने के लिए, कम से कम *अबला* शब्द के साथ *महिला* शब्द को भी जानना होगा। सद्भाग्य से निरुक्त के आधारपर (Authentic) अधिकृत उत्तर का प्रयास किया जा सकता है। संस्कृत के शब्द धातुबीज से उत्पन्न होते हैं। इस लिए उनका मौलिक अर्थ होता है, जो, खो नहीं सकता।

और साथ साथ सारे शब्दों में और उस कारण भाषा में भी एक प्रकार का अनुशासन बना रहता है। इसी कारण शब्दार्थवाले शब्द कोश संस्कृत में पहले थे नहीं। निघण्टु या शब्दों indian ladyका ही बिना अर्थ संग्रह हुआ करता था। विद्वान जानकार धातु, उपसर्ग और प्रत्ययों के आधार पर अर्थ लगा लेते थे। लेखक भी ऐसा ही प्रयास कर रहा है।

(दो) संस्कृत का गुणवाचक, अर्थवाचक शब्द:
पहले, जानिए, कि, संस्कृत के शब्द गुणवाचक, अर्थवाचक या अर्थवाही होते हैं।
इस लिए संस्कृत के अनेक शब्द मौलिक अर्थ साथ लेकर चलते हैं।
अन्य भाषाओं में शब्द अधिकतर उधार ही, लिए होते है। ऐसी भाषाएँ प्रमुखतः *बहता नीर* कही जा सकती हैं। ऐसे शब्दों का अनेक भाषाओं से होकर प्रवास करते हुए विशिष्ट भाषा में कब और कैसे आया; इसका इतिहास ढूँढना पडता है। इस शब्द प्रवास के इतिहास को Etymology एटिमॉलॉजी कहा जाता है। अंग्रेज़ी ने १२० तक भाषाओं से उधार लेकर समृद्धि पायी है। पर इस कारण अंग्रेज़ी भाषा खिचडी भी बनी हुयी है। आज तक तीन बार अंग्रेज़ी बदली है। इसी कारण उसकी वर्तनी और शब्द उच्चारण के कोई निर्दोष नियम भी नहीं होते।

पर, संस्कृत में शब्दों की व्युत्पत्ति होती है। इस बिन्दू पर भाषावैज्ञानिकों ने बिना विशेष सोचे ही, Etymology का अर्थ व्युत्पत्ति कर दिया है। एटिमॉलॉजी शब्द का इतिहास होता है। कैसे शब्द विविध भाषाओं में, प्रवास करता हुआ किसी भाषा में आया, इस का इतिहास एटिमॉलॉजी कहा जाता है।

व्युत्पत्ति में शब्द का मूल होता है, कोई धातु जिसे आप शब्द बीज कह सकते हैं। निरुक्त में व्युत्पत्ति के आधार पर अर्थ लगाने की विधि बताई गयी है।यह संस्कृत की विशेषता है।
(तीन)महिला शब्द की (व्युत्पत्ति)

==>अब महिला, शब्द की व्युत्पत्ति खोजते हैं।
महिला शब्द के साथ मह (महते और महयति-ते ) धातु-मूल जुडा हुआ है। जिसका अर्थ जुडता है महानता, मह्त्ता या आदरणीया से। महिला और अबला का अर्थ समान नहीं है। महिला का संबंध महानता से हैं। जिन महिलाओं ने सिद्धियाँ पाई हैं; जो विदुषियाँ हैं; जिन्होंने जीवन में कुछ करके दिखाया है; उन्हें आप अबला नहीं कह सकते।संस्कृत भाषा अर्थवाची होने के कारण, किसी को भ्रम पालने की आवश्यकता नहीं है।

M. R. Kale की संस्कृत व्याकरण की पुस्तक के धातु कोश में ==> मह् (१ प. और १० उ.) To honour, to delight, अर्थात आदर करना,आनन्दित करना, बढावा देना <=== ऐसे अर्थ दिए गए हैं।

(चार) अबला शब्द की व्युत्पत्ति:

===> अबला उन के लिए उचित है, जो दुर्बल हैं, वृद्धाएँ, हैं, पीडित है, जिन्हें सहायता दी जानी चाहिए,क्यों कि वें अबलाएँ हैं, बलहीन हैं। इस शब्द का मूल बल है, जिसके आगे अ लगने पर नकारात्मक अर्थ निकलता है। जैसे अनीति, अधर्म, अन्याय, अहिंसा, अमर्त्य, और अमर ऐसे उदाहरणों के अनुसार इस शब्द से भी, नकारात्मक अर्थ व्यक्त होता है।

(पाँच) नारी शब्द की व्युत्पत्ति

===>और नारी वह है, जो पुरुष को प्रेरणा देकर आगे बढने प्रोत्साहन देती है। नृ यह १ और ९ गण का परस्मैपदी धातु हैं। परस्मैपद में पर है। परायों, दूसरों के लिए प्रयुक्त। यहाँ पुरूष को प्रेरणा देनेवाली स्त्री नारी कही जाएगी। नारी किसी स्वार्थी स्त्री के लिए प्रयुक्त नहीं होता। उसे आगे बढने में सहायता देने वाली इस अर्थ में ही मैं लेता हूँ। *नारी तूं नारायणी* भी आप ने सुना होगा। और,
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते।
रमन्ते तत्र देवताः॥
भी आप ने सुना होगा ही।
===>दीर्घ प्रवास पर रहूँगा।

Previous articleपुरानी दोस्ती,नए आयाम
Next articleकई सबक दे गया साल 2015
डॉ. मधुसूदन
मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।

1 COMMENT

  1. आ. मधुसूदन भाई,
    लोकप्रचलित भ्रम के निवारणार्थ आपने ” महिला, अबला और नारी ” शब्दों की व्युत्पत्ति संस्कृत व्याकरण के आधार पर उपसर्ग और धातु का उल्लेख करते हुए अत्यन्त प्रामाणिकता से सिद्ध की है । किसी शब्द को यदि कोई ग़लत अर्थों में ले तो ये शब्द का दोष नहीं है , समझने वाले का ही दोष है । दु:खद बात ये है कि सुशिक्षित जन भी जब उसी अर्थ को बार बार दोहराते हैं तो वही समाज में व्याप्त हो जाता है । आपका आलेख सदा की भाँति वैदुष्यपूर्ण है । अनेकानेक साधुवाद !!
    शकुन्तला बहादुर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here