मैं माटी का छोटा सा दीपक हूँ,सबको देता हूँ प्रकाश

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मैं माटी का छोटा सा दीपक हूँ,सबको देता हूँ प्रकाश 
अन्धकार को दूर भगाता हूँ,ये मेरा है पक्का विश्वास 

तेल बाति मेरे परम मित्र है,ये देते है मेरा सैदव साथ
इन के बिन किसी को न दे पाता हूँ,मैं अपना प्रकाश 

दिवाली त्यौहार की रौनक हूँ मै, कुम्हार मुझे बनाते है 
गरीब मजदूर मुझे ही बेचकर,दिवाली अपनी मनाते है 

प्रभु को खुश करने के लिये,भक्त मुझे जलाते है 
मुझे दिखा कर प्रभु को, उनसे वरदान वे पाते है 

नामकरण जब होता है,मेरा ही सहारा लिया जाता है 
ज्योति,पूजा, दीप्ती,दीपिका  का नाम धरा जाता है 

शुभ कार्य जब प्रारम्भ होता,मुझे ही जलाया जाता है 
माँ सरस्वती को मेरे माध्यम द्वारा याद किया जाता है 

मेरे बिन आरती नहीं होती,मंदिर भी सूने रहते है
मै उनके हाथ में न हूँ तो पुजारी भी अधूरे रहते है 

मै कुल का दीपक हूँ,मेरे बिन परिवार अधुरा है 
मेरे बिन कुल और मात-पिता का श्राद्ध अधूरा है 

दोषी भी मैं माना जाता,लिखा है किसी किताब में 
कहा जाता है,घर को जला दिया घर के चिराग ने 

आर के रस्तोगी  

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

5 COMMENTS

  1. आर के. रस्तोगी जी द्वारा प्रस्तुत सुंदर कविता पढ़ते और मन ही मन प्रशंसा करते अंत में लिखे छंद पर आ मेरे मन में एक चुटकुला कौंध गया| तेली की दुकान के सामने से हर रोज सुबह गुजरते जाट को तेली “जाट जाट तेरे सिर पर खाट” कह छेड़ा करता था| एक दिन संध्या समय घर लौटते जाट ने दुकान पर रुक तेली से कहा, “तेली तेली तेरे सिर पर कोल्हू ||” तेली बोला, “जच्या नहीं!” “न जचे सुसरा, तू भार तले आ तो मरेगा!” कह जाट आगे बढ़ गया| मेरा मतलब है कि अंत का छंद सुंदर कविता “मैं माटी का छोटा सा दीपक हूँ, सबको देता हूँ प्रकाश” पर भारी पड़ रहा है|

    • आपने पुराणी देहाती चुटकला सुनकार मेरे छंद में चार चाँद लगा दिए है| पर आधुनिक समय में महँगाई ने बेचारे जाट की तोड़ दी है खाट | वह सो रहा है नीचे बिछा कर टाट || तेली तेल लगा रहा आजकल खूब |वही जाट को चिढा कर,ले रहा मस्ती खूब ||

  2. श्री मधुसूदन जी
    नमस्कार ,
    प्रंशसा के लिये सादर आभार |

  3. ’मै कुल का दीपक हूँ,मेरे बिन परिवार अधुरा है।
    मेरे बिन कुल और मात-पिता का श्राद्ध अधूरा है॥’
    —————-
    वाह! महाराज आप अवश्य कुल के दीपक हैं.
    सुन्दर सुगम कविता के लिए बधाई.
    रस्तोगी जी लिखते रहिए.

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