मैंने तुम्हें अभी पढ़ा ही कहाँ है

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मैंने तुम्हें अभी पढ़ा ही कहाँ है
सिर्फ जिल्द देखकर सारांश तो नहीं लिखा जा सकता
अध्याय दर अध्याय,पन्ने दर पन्ने
किरदारों की कितनी ही गिरहें खुलनी अभी बाकी हैं
उपसंहार से पहले प्रस्तावना
और
प्रस्तावना से पहले अनुक्रमिका सब कुछ जानना है

मेरी नियति की रचना
सिर्फ इस बात पर निर्भर करती है
कि
मैंने किसको पढ़ा है और कितना पढ़ा है

और
हज़ार बेकार किताबें पढ़ने से कहीं बेहतर है
एक पूरी सजीव किताब पढ़ी जाए
और
हाशिए पर
कभी उँगलियों
कभी होंठों
कभी बोझिल आँखों की नींदों
तो कभी मादकता की यात्रा पर छपे साँसों के निशाँ छोड़े जाएँ

तुम
मात्र किताब ही नहीं मेरी पूरी पुस्तकालय हो
जहाँ मैं ख्वाहिशें लिखता हूँ
आशाएँ पढता हूँ
और
रोज़ अपने भीतर कुछ समेट लेता हूँ

अनंत समय के लिए
जो मेरे जीवाश्म पर भी
उसी तरह उकेड़े होंगे
जिस तरह तुम्हारे हर्फ़
अभी मेरे जिस्म पर उगे हुए हैं

सलिल सरोज

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सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी लोक सभा सचिवालय संसद भवन शिक्षा: सैनिक स्कूल तिलैया,कोडरमा,झारखण्ड से 10वी और 12वी उतीर्ण। जी डी कॉलेज,बेगूसराय,बिहार से इग्नू से अंग्रेजी में स्नातक एवं केंद्र टॉपर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली से रूसी भाषा में स्नातक और तुर्की भाषा में एक साल का कोर्स और तुर्की जाने का छात्रवृति अर्जित। जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी,नई दिल्ली इग्नोउ से समाजशास्त्र में परास्नातक एवं नेट की परीक्षा पास। व्यवसाय:कार्यालय महानिदेशक लेखापरीक्षा,वैज्ञानिक विभाग,नई दिल्ली में सीनियर ऑडिटर के पद पर 2014 से कार्यरत।

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