मजदूर बनने को मजबूर हैं आदिवासी छात्र

कुमार सिंह टोप्पो 

धान का कटोरा नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ को आदिवासी बहुल राज्यों की श्रेणी में रखा जाता है। समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा इनके उत्थान के लिए कई योजनाएं चलाई जाती रही हैं। आदिवासी छात्रों के लिए 2004 में विशेष शासकीय छात्रावास बनाए गए हैं। ताकि उन्हें शिक्षा के स्वस्थ वातावरण उपलब्ध हो सके। इस योजना के अंतर्गत छात्रों को रहने, खाने तथा शिक्षा की मुफत व्यवस्था होती है। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार इन आदिवासी छात्रों के उत्थान के प्रति विषेश गंभीर नहीं है। योजनाएं बनाने के बावजूद राज्य के शासकीय छात्रावासों का बुरा हाल है। ये छात्रावास न रहकर यातना घर बन गए हैं। मजबूरी में विद्यार्थियों को वैसे कार्य भी करने पड़ रहे हैं, जो मजदूरी की श्रेणी में आते हैं। यही कारण है कि बच्चे अब यहां रहने से कतराने लगे हैं। क्षेत्र के लगभग सभी छात्रावासों का यही हाल है।

कुछ वर्ष पूर्व तक छात्रावासों में रहने के लिए विद्यार्थियों की आकांक्षएं होती थी, लेकिन आज स्थिति उलट गई है। छात्रावासों में विद्यार्थी अपने भविष्‍य को संवारने तथा अच्छी शिक्षा के साथ साथ अनुशासन ग्रहण करते हैं परन्तु दुखद बात यह है कि वही विद्यार्थी छात्रावास में झाडू लगाने, बर्तन धोने जैसे अनेक काम करते हैं। हालांकि इन कार्यों को करने के लिए छात्रावासों में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी कार्यरत हैं लेकिन इसके बावजूद यहां बच्चों से काम करवाए जाते हैं। उन्हें डराया और धमकाया जाता है। इसकी वजह से उनकी पढ़ाई में रूचि कम होती जाती हैं। परिणामस्वरूप इसका सीधा प्रभाव उनके परीक्षाफल पर पड़ता है।

कई छात्रावासों में बच्चों के स्वास्थ्य, खेलकूद तथा खान पान की ओर विषेश प्रयास नहीं किए जाते हैं। कभी-कभी छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थियों को स्वंय ही खाना बनाना पड़ता है। यहां स्थिति ऐसी है कि बच्चे ही थाली धोते हैं और झाडू व टाटपट्टी लगाने और उठाने का काम छात्र ही करते हैं। दूसरी तरफ कांकेर के पखांजूर स्थित छात्रावास भी समसयाओं से मुक्त नही हैं। इनको अपने छात्रावास से लगभग 200 मीटर दूरी तय कर खाना खाने के लिए भागदौड़ करना पड़ता है। तब कहीं इन बच्चों का पेट भरता है। कुल मिलाकर इन बच्चों को 400 मीटर का सफर तय करना पड़ता है। ऐसा लगता है रहवासी खाना खाने नहीं बल्कि भीख मांगने जाते हों। इस कारण कुछ छात्र मानसिक रूप से परेशान होकर छात्रावास छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। वे विद्यार्थी जिनको संपूर्ण सुविधा नहीं मिलती है उनकी रूचि पढ़ाई से खत्म होने लगती है। ऐसे विद्यार्थियों का जहां एक तरफ मनोबल गिरता है वहीं उनकी बौध्दिक क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लेकिन छात्रावास में भी कुछ बुराईयां छिपे हुए हैं। आज छात्रावासों की स्थिति बदहाल है। ये समस्याएं, बुराईयों को शासन प्रशासन नजर अंदाज कर रही हैं। ये चार दीवारों में राज बनी रहती है। ऐसे वातावरण में हमारे देश के शहरी ग्रामीण अनेक क्षेत्र में देखने को मिल ही जाता हैं। पूरी दुनिया शिक्षा को अनिवार्य मानती है तथा उसे आगे बढ़ाने की योजनाएं बनाती है। परन्तु यहां बच्चों को इस प्रकार के कार्य कराना निश्चित ही अनेक अधिकार के खिलाफ है। क्योंकि वे वहां पढ़ने के लिए निवासरत है न कि बर्तन धोने और झाडू लगाने जैसे कार्यों को करने के लिए। (चरखा फीचर्स) 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here