मेजर ध्यानचंद का हॉकी खेल और राष्ट्रीय खेल दिवस

natinal-sports-dayडा. राधेश्याम द्विवेदी
राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त को हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनकी जयंती के दिन मनाया जाता है। दुनिया भर में ‘हॉकी के जादूगर’ के नाम से प्रसिद्ध भारत के महान व कालजयी हॉकी खिलाड़ी ‘मेजर ध्यानचंद सिंह’ जिन्होंने भारत को ओलंपिक खेलोंमें स्वर्ण पदक दिलवाया, उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त को हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।इसी दिन उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति खेलों में विशेष योगदान देने के लिए राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों से सम्मानित करते हैं, जिसमें राजीव गांधी खेलरत्न, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कारों के अलावा तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार प्रमुख हैं। इस अवसर पर खिलाड़ियों के साथ-साथ उनकी प्रतिभा निखारने वाले कोचों को भी सम्मानित किया जाता है। इसके अतिरिक्त् लगभग सभी भारतीय स्कूल और शिक्षण संस्थान ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के दिन अपना सालाना खेल समारोह आयोजित करते हैं। पंजाब और चंडीगढ़ में यह दिन बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
मेजर ध्यानचंद खेल भावना, देशप्रेम का बेहतरीन उदाहरण:- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त को दिग्गज हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वह खेल भावना और देशभक्ति का बेहतरीन उदाहरण हैं। मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 23वें संस्करण में कहा,“कल (सोमवार) 29 अगस्त को भारत के दिग्गज हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद का जन्मदिन है, जिसे राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। मैं उन्हें श्रद्धांजलि देता हूं और चाहता हूं कि आप सब उनके योगदान को याद रखें।”प्रधानमंत्री ने कहा, “मेजर ध्यानचंद खेल भावना और देशभक्ति का बेहतरीन उदाहरण हैं। उन्होंने भारत को तीन ओलम्पिक खेलों (1928, 1932 और 1936,) में हॉकी में स्वर्ण पदक दिलाया था।”
ध्यानचंद का जीवन:- मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त सन् 1905 ई. को इलाहाबाद में हुआ था। ध्यानचंद के जीवन से जुड़ी अहम बातें जानते हैं : 21 वर्ष की उम्र में उन्हें न्यूजीलैंड जानेवाली भारतीय टीम में चुन लिया गया। इस दौरे में भारतीय सेना की टीम ने 21 में से 18 मैच जीते। 23 वर्ष की उम्र में ध्यानचंद 1928 के एम्सटरडम ओलंपिक में पहली बार हिस्सा ले रही भारतीय हॉकी टीम के सदस्य थे। यहां चार मैचों में भारतीय टीम ने 23 गोल किए। उन्होंने हॉकी के इतिहास में सबसे ज्यादा गोल किए। 1932 में लॉस एंजिल्स ओलंपिक में भारत ने अमेरिका को 24-1 के रिकॉर्ड अंतर से हराया। इस मैच में ध्यानचंद और उनके बड़े भाई रूप सिंह ने आठ-आठ गोल ठोंके थे । 1936 के बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे। 15 अगस्त, 1936 को हुए फाइनल में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया।1928, 1932 और 1936 के तीनों मुकाबलों में भारतीय टीम का नेतृत्व हॉकी के जादूगर नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद ने किया। 1932 के ओलपिंक में हुए 37 मैचों में भारत द्वारा किए गए 330 गोल में ध्यानचंद ने अकेले 133 गोल किए थे।
1948 में 43 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतरराट्रीय हॉकी को अलविदा कहा था । हिटलर ने स्वयं ध्यानचंद को जर्मन सेना में शामिल कर एक बड़ा पद देने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहना पसंद किया था । वियना के एक स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है, जिसमें उनको चार हाथों में चार स्टिक पकड़े हुए दिखाया गया है। 1956 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था । उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। विश्व हॉकी जगत के शिखर पर जादूगर की तरह छाए रहने वाले मेजर ध्यानचंद का 3 दिसम्बर, 1979 को देहांत हो गया। झांसी में उनका अंतिम संस्कार किसी घाट पर न होकर उस मैदान पर किया गया, जहां वो हॉकी खेला करते थे।अपनी आत्मकथा ‘गोल’ में उन्होंने लिखा था, आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूं।
हॉकी खेल:- हॉकी एक ऐसा खेल है जिसमें दो टीमें लकड़ी या कठोर धातु या फाईबर से बनी विशेष लाठी (स्टिक) की सहायता से रबर या कठोर प्लास्टिक की गेंद को अपनी विरोधी टीम के नेट या गोल में डालने की कोशिश करती हैं। हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। हॉकी का प्रारम्भ वर्ष 2010 से 4,000 वर्ष पूर्व ईरान में हुआ था। इसके बाद बहुत से देशों में इसका आगमन हुआ पर उचित स्थान न मिल सका। अन्त में इसे भारत में विशेष सम्मान मिला और यह राष्ट्रीय खेल बना गया। भारत में इसका आरम्भ 100 वर्षों से पहले हुआ था। 11 खिलाड़ियों के दो विरोधी दलों के बीच मैदान में खेले जाने वाले इस खेल में प्रत्येक खिलाड़ी मारक बिंदु पर मुड़ी हुई एक छड़ी (स्टिक) का इस्तेमाल एक छोटी व कठोर गेंद को विरोधी दल के गोल में मारने के लिए करता है। बर्फ़ में खेले जाने वाले इसी तरह के एक खेल आईस हॉकी से भिन्नता दर्शाने के लिए इसे मैदानी हॉकी कहते हैं। चारदीवारी में खेली जाने वाली हॉकी, जिसमें एक दल में छह खिलाड़ी होते हैं और छह खिलाड़ी परिवर्तन के लिए रखे जाते हैं।
हॉकी खेल का विस्तार:- हॉकी के विस्तार का श्रेय, विशेषकर भारत और सुदूर पूर्व में, ब्रिटेन की सेना को है। अनेक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के आह्वान के फलस्वरूप 1971 में विश्व कप की शुरुआत हुई। हॉकी की अन्य मुख्य अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हैं- ओलम्पिक, एशियन कप, एशियाई खेल, यूरोपियन कप और पैन-अमेरिकी खेल। दुनिया में हॉकी निम्न प्रकार से खेली जाती है। 1.फील्ड हॉकी 2.बर्फ हॉकी 3.रोलर हॉकी 4. स्लेज हॉकी और 5. गली हॉकी
हॉकी खेल का इतिहास:- हॉकी खेल का उद्गम सदा से ही विवाद का विषय रहा है। एक मत के अनुसार ईसा से दो हजार वर्ष पूर्व हॉकी का खेल फारस में खेला जाता था। यह खेल आधुनिक हॉकी से भिन्न था। कुछ समय बाद यह खेल कुछ परिवर्तित होकर यूनान (वर्तमान ग्रीस) पहुंचा जहां यह इतना प्रचलित हुआ कि यह यूनान की ओलंपिक प्रतियोगिता में खेला जाने लगा। धीरे-धीरे रोमवासियों में भी इस खेल के प्रति रुझान बढ़ा और रोम भी यूनान के ओलंपिक में इसे खेलने लगा। हॉकी की शुरुआत आरंभिक सभ्यताओं के युग से मानी जाती है। हॉकी खेलने के अरबी, यहूदी, फ़ारसी और रोमन तरीक़े रहे और दक्षिण अमेरिका के एज़टेक इंडियनों द्वारा छड़ी से खेले जाने वाले एक खेल के प्रमाण भी मिलते हैं।आरंभिक खेलों हर्लिंग और शिंटी जैसे खेलों के रूप में भी हॉकी को पहचाना गया है। मध्य काल में छड़ी से खेला जाने वाला एक फ़्रांसीसी खेल हॉकी प्रचलित था और अंग्रेज़ी शब्द की उत्पत्ति शायद इसी से हुई है।19वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में भारत में इस खेल के विस्तार का श्रेय मुख्य रूप से ब्रिटिश सेना को जाता है और एक स्वाभाविक परिणाम के रूप में यह खेल छावनी नगरों व उसके आसपास तथा युद्धप्रिय समझे जाने वाले लोगों और सैनिकों के बीच फला-फूला हैं। सैनिक छावनियों वाले सभी नगर, जैसे लाहौर, जालंधर, लखनऊ, झांसी, जबलपुर भारतीय हॉकी के गढ़ थे। मगर इस खेल को विभाजन-पूर्व भारत की कृषि प्रधान भूमि के मेहनती और बलिष्ठ पंजाबियों ने स्वाभाविक रूप से सीखा। अंग्रेज़ी विद्यालयों में हॉकी खेलना 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में शुरू हुआ और दक्षिण-पूर्वी लंदन के ब्लैकहीथ में पुरुषों के पहले हॉकी क्लब का विवरण 1861 की एक विवरण-पुस्तिका में मिलता है। पुरुषों की मैदानी हॉकी को 1908 और 1920 में ओलम्पिक खेलों में खेला गया और 1928 से इसे स्थायी तौर पर ओलम्पिक में शामिल कर लिया गया। आधुनिक युग में पहली बार ओलंपिक में हॉकी 29 अक्टूबर, 1908 में लंदन में खेली गई। इसमें छह टीमें थीं। 1924 में ओलपिंक में अंतर्राष्ट्रीय कारणों से यह खेल शामिल नहीं हो सका। ओलंपिक से हॉकी के बाहर हो जाने के बाद जनवरी, 1884 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन) की स्थापना हुई। हॉकी का खेल एशिया में भारत में सबसे पहले खेला गया। पहले दो एशियाई खेलों में भारत को खेलने का अवसर नहीं मिल सका, किन्तु तीसरे एशियाई खेलों में भारत को पहली बार ये अवसर हाथ लगा। हॉकी में भारत का प्रदर्शन काफ़ी अच्छा रहा है। भारत ने हॉकी में अब तक ओलंपिक में आठ स्वर्ण, एक और दो कांस्य पदक जीते हैं। स्वतंत्र भारत ने इसे अपना राष्ट्रीय खेल भी घोषित किया है। इसके बाद भारत ने हॉकी में अगला स्वर्ण पदक 1964 और अंतिम स्वर्ण पदक 1980 में जीता। 1928 में एम्सटर्डम में हुए ओलंपिक में भारत ने नीदरलैंड को 3-0 से हराकर पहला स्वर्ण पदक जीता था। 1936 के खेलों में जर्मनी को 8-1 से मात देकर विश्व में अपनी खेल क्षमता सिद्ध की। 1928, 1932 और 1936 के तीनों मुकाबलों में भारतीय टीम का नेतृत्व हॉकी के जादूगर नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद ने किया। 1932 के ओलपिंक में हुए 37 मैचों में भारत द्वारा किए गए 330 गोल में ध्यानचंद ने अकेले 133 गोल किए थे।
महिला हॉकी:- विक्टोरियाई युग में खेलों में महिलाओं पर प्रतिबंध होने के बावजूद महिलाओं में हॉकी की लोकप्रियता बहुत बढ़ी। यद्यपि 1895 से ही महिला टीमें नियमित रूप से मैत्री प्रतियोगिताओं में भाग लेती रही थीं, लेकिन गंभीर अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की शुरुआत 1970 के दशक तक नहीं हुई थी। 1974 में हॉकी का पहला महिला विश्व कप आयोजित किया गया और 1980 में महिला हॉकी ओलम्पिक में शामिल की गई। 1927 में अंतर्राष्ट्रीय नियामक संस्था, इंटरनेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ विमॅन्स हॉकी एसोसिएशन का निर्माण हुआ था।1901 में अमेरिका में कांसटेंस एम.के. एप्पेलबी द्वारा इस खेल की शुरुआत हुई और मैदानी हॉकी धीरे-धीरे यहाँ की महिलाओं में लोकप्रिय मैदानी टीम खेल बन गई व विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा क्लबों में खेली जाने लगी।
खेल के नियम:- लंदन स्थित एक क्लब टेडिंगटन ने कई मुख्य परिवर्तनों की शुरुआत की, जिसमें हाथों का प्रयोग या छड़ी को कंधों से ऊपर उठाने पर प्रतिबंध, रबर की घनाकार गेंद के स्थान पर गोलाकार स्वरूप के प्रयोग शामिल थे। सबसे महत्त्वपूर्ण था मारक चक्र को अपनाना, जिसे 1886 में लंदन में स्थापित तत्कालीन हॉकी एसोसिएशन ने अपने नियमों में शामिल किया था। दल के सामान्य संयोजन में पांच खिलाड़ी फ़ॉरवर्ड, तीन हाफ़बैक, दो फुलबैक और एक गोलकीपर होते हैं। एक खेल में 35 मिनट के दो भाग होते हैं, जिनमें 5 से 10 मिनट का अंतराल होता है। केवल चोट लगने की दशा में खेल रोका जाता है। गोलकीपर मोटे मगर हल्के पैड पहनता है और उसे 30 गज़ के घेरे (डी) में गेंद को पैर से मारने अथवा उसे पैरों या शरीर की मदद से रोकने की इजाज़त होती है। अन्य सभी खिलाड़ी गेंद को केवल स्टिक से ही रोक सकते हैं। मैदान के केंद्र से पास-बैक द्वारा, जिसमें एक खिलाड़ी अपनी टीम के अन्य खिलाड़ीयों की ओर गेंद फेंकता है, गेंद पुनः उस तक पहुँचाई जाती है खेल प्रारंभ होता है। किसी को चोट लगने पर या तकनीकी कारण से खेल रुकने पर, दोनों दलों द्वारा क्रमशः एक-एक पेनल्टी करने पर या खिलाड़ीयों के कपड़ों में गेंद के उलझने पर खेल को फिर से शुरू करने के लिए फ़ेस-ऑफ़ या बुली का प्रयोग किया जाता है। फ़ेस-ऑफ़ में दोनों टीमों के एक-एक खिलाड़ी आमने-सामने खड़े होते है और गेंद उनके बीच मैदान पर होती है। एक के बाद एक ज़मीन पर आघात करने के बाद दोनों खिलाड़ी एक-दूसरे की स्टिक को आपस में तीन बार टकराते हैं, प्रत्येक खिलाड़ी गेंद को मारने का प्रयास करता है और इस प्रकार खेल फिर से शुरू हो जाता है। गेंद के मैदान से बाहर जाने की दशा में खेल को फिर से शुरू करने के विभिन्न तरीक़े हैं।
ग़लतियाँ:-हॉकी में कई तरह की ग़लतियाँ (फ़ाउल) होती हैं। किसी खिलाड़ी को मैदान में गेंद से आगे रहकर और विरोधी दल के दो खिलाड़ीयों से कम खिलाड़ीयों के आगे रहकर लाभ उठाने से रोकने के लिए बनाए गए ऑफ़ साइड नियम को 1996 के ओलम्पिक खेलों के बाद समाप्त कर दिया गया। गेंद से खेलते वक़्त हॉकी को कंधों से ऊपर उठाना नियमों के विरुद्ध है। गेंद को हॉकी से रोकना उसी तरह की ग़लती है, जैसी गेंद को शरीर या पैरों से रोकना। अंडरकटिंग के साथ ही विरोधी की हॉकी में अपनी हॉकी फंसाकर (हुकिंग) गेंद को तेज़ी से ऊपर उछालते हुए खेल को ख़तरनाक बनाना भी ग़लत है। अंत में अवरोधन का नियम है: एक खिलाड़ी को अपनी स्टिक या शरीर के किसी भी भाग को अपने विरोधी और गेंद के बीच लाकर अवरोध खड़ा करने अथवा विरोधी व गंद के बीच दौड़कर बाधा डालने की अनुमति नहीं है। अधिकतर ग़लतियों की सज़ा विरोधी दल को, जिस स्थान पर नियम तोड़ा गया, वहाँ से एक फ़्री हिट के रूप में दी जाती है। खेल के प्रत्येक भाग के लिए एक निर्णायक (रेफ़री) होता है।
गेंद:- हॉकी में इस्तेमाल होने वली यह गेंद मूलतः क्रिकेट की गेंद थी[3], लेकिन प्लास्टिक की गेंद भी अनुमोदित है। इसकी परिधि लगभग 30 सेमी होती है।
हॉकी स्टिक:- हॉकी स्टिक लगभग एक मीटर लंबी और 340 से 790 ग्राम होती है। स्टिक का चपटा छोर ही गेंद को मारने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
मैदान:- यह खेल चौकोर मैदान पर 11 खिलाड़ियों वाले दो दलों के बीच खेला जात है। यह मैदान 91.4 मीटर लंबा और 55 मीटर चौड़ा होता है, इसके केंद्र में एक केंद्रीय रेखा व 22.8 मीटर की दो अन्य रेखाएँ खिंची होती हैं। गोल की चौड़ाई 3.66 मीटर व ऊँचाई 2.13 मीटर होती है।
भारत में हॉकी:- भारत में यह खेल सबसे पहले कलकत्ता में खेला गया। भारत टीम का सर्वप्रथम वहीं संगठन हुआ। 26 मई को सन 1928 में भारतीय हाकी टीम प्रथम बार ओलिम्पिक खेलों में सम्मिलित हुई और विजय प्राप्त की। 1932 में लॉस एंजेलिस ओलम्पिक में जब भारतीयों ने मेज़बान टीम को 24-1 से हराया। तब से अब तक की सर्वाधिक अंतर से जीत का कीर्तिमान भी स्थापित हो गया। 24 में से 9 गोल दी भाइयों ने किए, रूपसिंह ने 11 गोल दागे और ध्यानचंद ने शेष गोल किए। 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में इन भाइयों के नेतृत्व में भारतीय दल ने पुनः स्वर्ण ‘पदक जीता’ जब उन्होंने जर्मनी को हराया। बर्लिन ओलम्पिक में ध्यानचंद असमय बाहर हो गये और द्वितीय विश्व युद्ध ने भी इस विश्व स्पर्द्धा को बाधित कर दिया। आठ वर्ष के बाद ओलम्पिक की पुनः वापसी पर भारत की विश्व हॉकी चैंपियन की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। एक असाधारण कार्य, जो विश्व में कोई भी अब तक दुहरा नहीं पाया है। अन्य टीमों के उभरने के संकेत सर्वप्रथम मेलबोर्न में दिखाई दिए, जब भारत को पहली बार स्वर्ण पदक के लिए संधर्ष करना पड़ा। पहले की तरह, टीम ने अपनी ओर एक भी गोल नहीं होने दिया और 38 गोल दागे, मगर बलबीर सिंह के नेतृत्व में खिलाड़ीयों को सेमीफ़ाइनल में जर्मनी के ख़िलाफ़ और फ़ाइनल में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ संघर्ष करना पड़ा। सेमीफ़ाइनल में कप्तान के गोल ने निर्णय किया, जबकि वरिष्ठ रक्षक आर.एस. जेंटल के बनाए गोल ने भारत की अपराजेयता को बनाए रखा। 1956 के मेलबोर्न ओलम्पिक के फ़ाइनल में भारत और पाकिस्तान को 1960 में रोम ओलम्पिक में पाकिस्तान ने फ़ाइनल में 1-0 से स्वर्ण जीतकर भारत की बाज़ी पलट दी। भारत ने पाकिस्तान को 1964 के टोकियो ओलम्पिक में हराया। 1968 के मेक्सिको ओलम्पिक में पहली बार भारत फ़ाइनल में नहीं पहुँचा और केवल कांस्य पदक जीत पाया। मगर मेक्सिको के बाद, पाकिस्तान व भारत का आधिपत्य टूटने लगा। 1972 के म्यूनिख़ ओलम्पिक में दोनों में से कोई भी टीम स्वर्ण पदक जीतने में सफल नहीं रही और क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान तक ही पहुँच सकी। मुख्य रूप से भारत में, हॉकी के पारंपरिक केंद्रों के अलावा अन्य स्थानों पर लोगों की रुचि में तेज़ी से गिरावट आई और इस पतन को रोकने के प्रयास भी कम ही किए गए। इसके बाद भारत ने केवल एक बार 1980 के संक्षिप्त मॉस्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता। टीम का अस्थिर प्रदर्शन जारी रहा। इसके बाद 1998 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक की प्राप्ति भारतीय हॉकी का एकमात्र बढ़िया प्रदर्शन था। ऐसे बहुत कम मौक़े रहे, जब कौशल ने शारीरिक सौष्ठव को हराया, अन्यथा यह बारंबार बहुत कम अंतर से हार और गोल चूक जाने का मामला रहा है। यद्यपि भारत अब विश्व हॉकी में एक शक्ति के रूप में नहीं गिना जाता, पर हाल के वर्षों में यहाँ ऐसे कई खिलाड़ी हुए हैं, जिनके कौशल की बराबरी विश्व में कुछ ही खिलाड़ी कर पाते हैं। अजितपाल सिंह, वी. भास्करन, गोविंदा, अशोक कुमार, मुहम्मस शाहिद, जफ़र इक़बाल, परगट सिंह, मुकेश कुमार और धनराज पिल्ले जैसे खिलाड़ीयों ने अपनी आक्रामक शैली की धाक जमाई है।
भारत में हॉकी के गौरव को पुनर्जीवित करने के गंभीर प्रयास हुए हैं। भारत में तीन हॉकी अकादमियां कार्यरत हैं- नई दिल्ली में एयर इंडिया अकादमी, रांची (झारखंड) में विशेष क्षेत्र खेल अकादमी ऐर राउरकेला, (उड़ीसा) में स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (सेल) अकादमी। इन अकादमियों में प्रशिक्षार्थी हॉकी को प्रशिक्षण के अलावा औपचारिक शिक्षा भी जारी रखते हैं और मासिक वृत्ति भी पाते हैं। प्रत्येक अकादमी ने योग्य खिलाड़ी तैयार किए हैं, जिनसे आने वाले वर्षों में इस खेल में योगदान की आशा है। क्रिकेट के प्रति दीवानगी के बावजूद विद्यालयों और महाविद्यालयों में हॉकी के पुनरुत्थान से नई पीढ़ी में इस खेल के प्रति रुचि जागृत हुई है।प्रतिवर्ष राजधानी में होने वाली नेहरू कप हॉकी प्रतियोगिता जैसी प्रतिस्पर्द्धाओं में उड़ीसा, बिहार और पंजाब के विद्यालयों, जैसे सेंट इग्नेशियस विद्यालय, राउरकेला; बिरसा मुंडा विद्यालय, गुमला और लायलपुर खालसा विद्यालय, जालंधर द्वारा उच्च स्तरीय हॉकी का प्रदर्शन देखा गया है। 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने रजत पदक हासिल किया।
ओलम्पिक में भारत:- हॉकी के खेल में भारत ने हमेशा विजय पाई है। इस स्वर्ण युग के दौरान भारत ने 24 ओलम्पिक मैच खेले और सभी 24 मैचों में जीत कर 178 गोल बनाए तथा केवल 7 गोल छोड़े। भारत के पास 8 ओलम्पिक स्वर्ण पदकों का उत्कृष्ट रिकॉर्ड है। भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग 1928-56 तक था जब भारतीय हॉकी दल ने लगातार 6 ओलम्पिक स्वर्ण पदक प्राप्त किए। 1928 तक हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल बन गई थी और इसी वर्ष एमस्टर्डम ओलम्पिक में भारतीय टीम पहली बार प्रतियोगिता में शामिल हुई। भारतीय टीम ने पांच मुक़ाबलों में एक भी गोल दिए बगैर स्वर्ण पदक जीता। जयपाल सिंह की कप्तानी में टीम ने, जिसमें महान खिलाड़ी ध्यानचंद भी शामिल थे, अंतिम मुक़ाबले में हॉलैंड को आसानी से हराकर स्वर्ण पदक जीता। भारतीय हॉकी संघ के इतिहास की शुरुआत ओलम्पिक में अपनी स्वर्ण गाथा शुरू करने के लिए की गई। इस गाथा की शुरुआत एमस्टर्डम में 1928 में हुई और भारत लगातार लॉस एंजेलस में 1932 के दौरान तथा बर्लिन में 1936 के दौरान जीतता गया और इस प्रकार उसने ओलम्पिक में स्वर्ण पदकों की हैटट्रिक प्राप्त की। किशनलाला के नेतृत्व में दल ने लंदन में स्वर्ण पदक जीता। भारतीय हॉकी दल ने 1975 में विश्व कप जीतने के अलावा दो अन्य पदक (रजत और कांस्य) भी जीते। भारतीय हॉकी संघ ने 1927 में वैश्विक संबद्धता अर्जित की और अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) की सदस्यता प्राप्त की। भारत को 1964 टोकियो ओलम्पिक और 1980 मॉस्को ओलम्पिक में दो अन्य स्वर्ण पदक प्राप्त हुए। 1962 में कांस्य पदक और 1980 में स्वर्ण पदक प्राप्त किया और देश का नाम ऊँचा कर दिया।

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