वृहद घोटाले करके उसे छिपाने में पूरी तरह नाकाम संप्रग सरकार की फजीहत

धाराराम यादव

संसद का शीतकालीन सत्र, संप्रग सरकार द्वारा किये गये वृहद घोटालों को छिपाने में नाकाम रहने की भेंट चढ़ रहा है। सम्प्रति तीन बड़े घोटाले एक सप्ताह सें संसद का कामकाज पूरी तरह रोके हुए हैं। इनमें राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में किया गया घोटाल, 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला एवं महाराष्ट्र की आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला प्रमुख हैं। प्रारभ्भ में मीडिया एवं विपक्ष द्वारा इन घोटालों की उंगली उठाने पर केन्द्र सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। उसके कर्ता-धर्ता घोटालों में सरकार और पार्टी की संलिप्तता से साफ इंकार करते रहे। यहां तक कि 2 नवम्बर, 2010 को दिल्ली में आयोजित कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार पर एक शब्द बोलना उचित नहीं समझा। इसके विपरीत महाघोटालों से जनता का ध्यान हटाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आतंकी घटनाओं में लिप्त होने का आरोप मढ़कर विपक्ष की एकता तोड़ने का असफल प्रयास किया गया। कांग्रेस आला कमान को आशा थी कि संघ पर आतंकवादी घटनाओं से जुड़े होने का आरोप मढ़कर एवं कथित पंथनिरपेक्षता का कार्ड फेंककर वे विपक्षी दल अकेला पड़ जाएगा। कांग्रेस नेतृत्व अपने इस मकसद में कामयाब नहीं हो सका।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा का तीन दिवसीय भारत दौरा समाप्त होने पर शुरु हुआ संसद सत्र विगत् एक सप्ताह से भ्रष्टाचार और घोटालों की भेंट चढ़ गया है। आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को अपने पद से हाथ धोना पड़ा। कारगिल युध्द के शहीदों की विधवाओं के लिए आरक्षित फ्लैटों की बन्दर वांट की गयी। स्वयं मुख्यमंत्री अपने ससुराली जनों को कई फ्लैट दिलाने में सफल रहे। राष्ट्रमण्डल खेलों की तैयारी में खर्च हुए करीब 71,000 करोड़ रुपयों में से काफी धन घोटालों की भेंट चढ़ गया। इसके लिए सुरेश कलमाड़ी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी ।इन बड़े घोटालों के लिए जिम्मेवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चाव्हाण, राष्ट्रमण्डल खेल आयोजन घोटाले के लिए आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कमलमाड़ी एवं 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले के लिए संचारमंत्री ए. राजा को अपनी-अपनी कुर्सियों से हाथ धोना पड़ा। अब इन घोटालों से संबंधित अधिकारियों की बारी है।

अंततः 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए जिम्मेदार दूर संचार मंत्री ए. राजा. को उनके ‘बास’ करुणानिधि के निर्देश पर मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र देना पड़ा। इस प्रकार तीनों महाघोटालों के लिए जिम्मेवार राजनेताओं को विवश होकर अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। विपक्ष अब भी संतुष्ट नहीं हुआ। सम्पूर्ण विपक्ष सभी घोटालों की जांच जेपीसी(संयुक्त संसदीय समिति) से कराने पर अड़ा हुआ है। सरकार इस जांच से क्यों घबरा रही है? वह यह तर्क दे रही है कि राजग सरकार के कार्यकाल (1948 से 2004 तक) में भी हुए घोटालों में संसदीय समिति से जांच नहीं करवाई गयी। यह किसी कुतर्क मान भी लिया जाय, तो यह प्रश्न अनुत्तरित ही रह जायगा कि क्या राजग सरकार द्वारा की गयी किसी गलती को नजीर मानकर 125 साल पुरानी कांग्रेस भी वही गलतियां दोहरायेगी? यह अजीब कुतर्क है कि राजग सरकार द्वारा किये गये किसी घोटाले की जांच हेतु जेपीसी नियुक्त न किये जाने के कारण संप्रग सरकार को भी महाघोटालों की जांच हेतु संयुक्त संसदीय समिति नियुक्त न किये जाने का अधिकार मिल गया है। विगत् 6 वर्षों से सत्ता आसीन संप्रग द्वारा खोजकर राजग सरकार के उन घोटालों की जांच सक्षम एजेंसियों से करवाने में कौन अड़चन डाल सकता है?

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सम्बन्ध में पूर्व दूर संचार मंत्री ए. राजा के विरुध्द अभियोग चलाने की अनुमति देने के लिए जनता पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व कानून मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए मा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 16 नवम्बर, 2010 को प्रधानमंत्री कार्यालय पर यह टिप्पणी की गयी कि डॉ. स्वामी द्वारा 29 नवम्बर, 2008 को दायर याचिका पर 16 माह बाद मार्च, 2010 में अपना जवाब दिया गया, तो क्या अभियोजन की अनुमति देने वाला विभाग किसी शिकायत पर इतने दिनों तक निष्क्रिय बैठा रह सकता है? मा. सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी पूरी केन्द्र सरकार के कामकाज पर एवं भ्रष्टाचार की जांच-पड़ताल में लापरवाही पर अत्यंत की प्रतिक्रिया है। मा. सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी से पूरी सरकार की छीछा लेदर हुयी है।

राष्ट्रमण्डल खेलों में हुए भ्रष्टाचार के सिलसिले में गिरफ्तार किये गये टी एस दरबारी एवं संजय महेन्द्र ने सीबीआई के समक्ष खुलासा किया है कि तमाम फैसलों के लिए खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष कलमाड़ी की सहमति ली गयी थी। इसके स्पष्ट निहितार्थ यही है कि बाकायदा आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी द्वारा भ्रष्टाचार को ऑंखे बन्द करके समर्थन एवं संरक्षण दिया जा रहा था।

उधर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा खुलासा किया गया है कि टूजी स्पेक्ट्रम के आवंटन में तत्कालीन संचार एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ए. राजा ने प्रधानमंत्री, विधि एवं न्याय मंत्रालय एवं वित्त मंत्री की सलाह नहीं मानी एवं कुछ कम्पनियों को लाभ पहुंचाने के निहित उध्देष्य से मनमाने ढंग से काम किया। यदि 3- जी स्पेक्ट्रम की तर्ज पर ही 2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की गयी होती, तो सरकार को 1,76,645 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता। कैग की संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार संचार मंत्री द्वारा आवंटन में पारदर्शिता का सर्वथा अभाव था। यहां तक कि आवेदन करने की अंतिम तिथि में भी मनमाने तरीके से परिवर्तन किया गया। दूरसंचार आयोग में इस विषय में कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। कैग रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि जिन 122 आवेदकों को लाइसेंस दिये गये, उनमें से 85 इसके योग्य थे ही नहीं। कैग द्वारा दूर संचार मंत्रालय के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाये गये हैं। पूर्व संचार मंत्री ए. राजा घोटाले के आरोपों से बच नहीं सकते। राजस्व के अनुमानित क्षति के लिए वही जिम्मेवार माने जायेंगे।

राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन पर व्यय किये गये लगभग 77,000 करोड़ रुपयों में किये गये घपले की जांच हेतु प्रधानमंत्री द्वारा पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक बी.के.शुंगलू की अध्यक्षता में एक समिति गठित करके आगामी तीन महीनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। शुंगलू समिति की जांच शुरु होने से पहिले ही केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी), केन्द्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय एवं नियंत्रक महालेखा परीक्षक घपलों की जांच के लिए सक्रिय हो गये हैं। सीबीआई द्वारा अपने एक संयुक्त निदेशक के नेतृत्व में एक प्रकोष्ठ गठित कर दिया गया है जो करीब दो दर्जन शिकायतों की जांच में जुट गया है। आयकर विभाग ने भी आयकर चोरी के मामलों की जांच हेतु कई कम्पनियों के दिल्ली, लुधियाना और चंडीगढ़ में तीस से ज्यादा परिसरों पर छापे मारे। दिल्ली विकास प्राधिकरण जिसके द्वारा यमुना किनारे खेलगांव निर्मित करने की जिम्मेवारी ‘एम्मार’ समूह को सौंपी गयी थी, द्वारा काम की खराब गुणवत्ता एवं विलम्ब के लिए 83.70 करोड़ रुपये मांग गये है एवं 183 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी जब्त करने का निर्णय किया है। यह सब ‘सांप निकल जाने पर लकीर पीटने’ के समतुल्य है। जब घोटालों की अफवाहों पर मीडिया द्वारा बार-बार सचेत किया जा रहा था, तो केन्द्र सरकार लगातार निष्क्रिय बनी रही। अब मा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस निष्क्रियता पर पीएमओ का शपथ पत्र मांगा गया है।

दूसरी ओर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने खेल आयोजन से जुड़े दो दर्जन महकमों का लेखा परीक्षण शुरु कर दिया है। जाँच में पाया गया है कि आयोजन समिति द्वारा नियमों की अनदेखी करते हुए कई ऐसी कम्पनियों को काम दिया गया जिससे धन की बरबादी हुयी। प्रारंभ में राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन पर कुल खर्च का अनुमान मात्र 1,899 करोड़ रुपये आंका गया था जो बढ़ते-बढ़ते 77,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने मांग की है कि केन्द्र सरकार एवं खेल आयोजन समिति खेल के आयोजन में हुए खर्चो का विवरण खेल मंत्रालय की बेवसाइट पर डाल दें ताकि देश को वस्तु स्थिति की जानकारी हो सके।

मजे की बात यह है कि खेलों के समापन के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी आपस में भिड़ गये और वे एक दूसरे पर कटाक्ष कर रहे हैं। आयोजन से जुड़ी अधिकांश एजेंसियों के काम समय पर पूर्ण न होने के कारण उसकी लागत में इजाफा होता रहा। यह निष्कर्ष निकालना अनुचित नहीं होगा कि राष्ट्रमण्डल खेलों की तैयारी से जुड़े विभागों द्वारा जान-बूझकर हर काम में देरी की गयी ताकि बाद में जल्दबाजी की प्राथमिकताओं को देखते हुए ठेके देने की नियमावली में ढील प्राप्त की जा सके।

जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम के पास पैदल चलने वालों के लिए पांच करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया फुट ओवर ब्रिज अचानक ढह गया। यह राष्ट्रमण्डल खेलों की परियोजनाओं पर अधिक लागत, खराब प्रबंधन, निर्माण में विलम्ब एवं घटिया निर्माण का प्रतीक साबित हुआ। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फुट ओवर ब्रिज को ‘ताश के पत्तो की तरह ढह जाने वाला’ बताया एवं खेलों में ‘बेतहासा भ्रष्टाचार के लिए केन्द्र और दिल्ली सरकार को फटकार लगायी। कुछ मामलों में बिना काम पूरा हुए भुगतान किये जाने का तथ्य प्रकाश में आया। फुट ओवर ब्रिज का निर्माण दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग द्वारा किया गया था। ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ की तर्ज पर केन्द्र में सत्तारुढ़ संप्रग सरकार के कार्यकाल में 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला (1,76,000 करोड़ रुपये), राष्ट्रमण्डल खेल आयोजन में घोटाला, आदर्श हाउसिंग सोसायटी में फ्लैट आवंटन घोटाला तथा लगभग 12-13 विभागों की विलम्ब वाली परियोजनाओं पर देश को 1,16,724 करोड़ रुपये का चूना लग चुका है। पाक-साफ प्रधानमंत्री के नेतृत्व में यह भ्रष्टतम सरकार है। एक प्रकार से भ्रष्टाचार को केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित किया जा रहा है।

* लेखक समाजसेवी, पूर्व बिक्रीकर अधिकारी रह चुके हैं।

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