देश संविधान की धज्जियां उड़ाते यह स्वयंभू सांस्कृतिक राष्ट्रवादी

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तनवीर जाफरी

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को यदि देश का सबसे विवादित नेता कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। हालांकि भारतीय जनता पार्टी का एक वर्ग उन्हें भाजपा की ओर से भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने की जी तोड़ कोशिश ज़रूर कर रहा है। परंतु उनके भीतर भाजपा के व भाजपा समर्थक अन्य अतिवादी संगठनों के लोग जिस विशेषता को देख रहे हैं वह निश्चित रूप से केवल यही है कि उन्होंने फरवरी- मार्च 2002 में गुजरात दंगों को बड़े ही सुनियोजित ढंग से भडक़ाया तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रयोगशाला कहे जाने वाले गुजरात में दंगों के बाद ऐसा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराया जिससे कि आज भाजपा बहुसंख्य मतों के आधार पर राज्य में सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत बनाए हुए है। अन्यथा मोदी की राजनैतिक व संगठनात्मक कार्यक्षमता व योग्यता का जहां तक प्रश्र है तो गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले वे भाजपा संगठन में रहते हुए हरियाणा के पार्टी पर्यवेक्षक थे। हरियाणा में भाजपा की स्थिति को देखकर भली भांति इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि एक सफल रणनीतिकार के रूप में उनमें पार्टी को मज़बूत करने की आखिर कितनी क्षमता है।

बहरहाल, मोदी समर्थक तथा गुजरात ही नहीं बल्कि पूरे देश में धर्म के आधार पर धु्रवीकरण कराए जाने के पक्षधर भाजपाई व इनके सहयोगी सांप्रदायिक संगठनों के लोग उसी नरेंद्र मोदी में देश का भावी प्रधानमंत्री तलाश रहे हैं जिसपर कि अमेरिका ने अपने देश में आने पर प्रतिबंध लगा रखा है। मोदी देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनपर अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा हुआ है। निश्चित रूप से यह हमारे देश विशेषकर गुजरातवासियों के लिए अपमानजनक स्थिति है। परंतु अफसोसनाक बात तो यह है कि देश में धर्म आधारित ध्रुवीकरण के पक्षधर नरेंद्र मोदी पर लगने वाले आरोपों को तो बड़े ही अजीबोगरीब तर्कों-कुतर्कों से काटने की कोशिश करते हैं जबकि इन्हीं विवादित व आलोचना का केंद्र बने मोदी में इन मोदी समर्थकों को भावी प्रधानमंत्री नज़र आता है। ज़रा सोचिए, कि दुर्भाग्यवश यदि मोदी देश के प्रधानमंत्री बन भी गए और तब भी यदि अमेरिका ने उन्हें अपने देश में प्रवेश करने की इजाज़त नहीं दी तो हमारा देश दुनिया को क्या मुंह दिखाएगा? वैसे यह वाक्य 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री व भाजपा के सर्वाच्च नेता अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह से भी उस समय निकला था जबकि फरवरी-मार्च 2002 के दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका व उनके मुख्यमंत्री रहते प्रशासनिक पक्षपात के चलते उन्हें पीड़ा पहुंची थी। वाजपेयी जी उस समय विदेश यात्रा पर जाने वाले थे। तब उन्होंने भी यही कहा था कि मैं गुजरात दंगों को लेकर दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगा

भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगी संगठन प्राय: बढ़चढ़ कर अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवादी होने का दम भरते रहते हैं। देश में राम राज्य लाने की बातें भी यह संगठन करता रहता है। परंतु इसी संगठन के लोग भारतीय संविधान की समय-समय पर धज्जियां उड़ाते भी देखे जा सकते हैं। हमारे देश का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, सेक्यूलर है तथा यहां सभी धर्मों व समुदायों के लोगों को स्वतंत्रता से रहने, अपने धार्मिक रीति-रिवाजों व परंपराओं को अंजाम देने आदि का पूरा उल्लेख है। परंतु दक्षिणपंथी संगठनों के लोग देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को, देश की धर्मनिरपेक्षता को तथा धर्मनिरपेक्षता के पैरोकारों को हर समय कोसते रहते हैं। धर्मनिरपेक्ष संविधान होने के बावजूद यह वर्ग हिंदू राष्ट्र का पैरोकार है तथा इसी राह पर चलते हुए इन लोगों ने सर्वप्रथम तो केंद्र सरकार व देश की अदालतों को गुमराह कर 6दिसंबर 1992 को सत्ता का दुरुपयोग करते हुए अयोध्या विध्वंस में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके पश्चात इसी प्रकार की गैर संवैधानिक गतिविधियों को अंजाम देते हुए गुजरात दंगों के दौरान पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया। परिणामस्वरूप जहां हज़ारों लोग लगभग एक महीने तक चली अनियंत्रित सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए वहीं लगभग 600 धर्मस्थलों को ध्वस्त कर दिया गया या उन्हें आग के हवाले कर दिया गया और जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा निचली अदालतों द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार से 2002 के सांप्रदायिक दंगों में तहस-नहस किए गए धर्मस्थलों को मुआवज़ा देने को कहा गया तो मोदी सरकार इन्हें मुआवज़ा दिए जाने से कन्नी काट गई। राज्य सरकार ने यह तर्क दिया कि उसके पास इस प्रकार के खर्च के लिए कोई फ़ंड नहीं है। परंतु गुजरात उच्च न्यायालय ने मोदी सरकार को पुन: यह निर्देश दिया कि सरकार दंगों के दौरान क्षतिग्रस्त हुए 572 धर्मस्थलों को मुआवज़ा दे।

एक नरेंद्र मोदी ही नहीं बल्कि देश में रामराज्य लाने की बात करने वाले व स्वयं को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अलमबरदार कहने वाले मोदी सरकार के दो मंत्री अमित शाह व माया कोडनानी जेल की हवा खा चुके हैं। अमित शाह पर सोहराबुद्दीन व तुलसीराम प्रजापति के फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने की साजि़श रचने व इस मुठभेड़ के मास्टर माइंड होने का आरोप था। अमित शाह नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वासपात्र सहयोगी थे। राज्य के इस पूर्व गृहमंत्री को जिस समय गुजरात हाईकोर्ट ने ज़मानत भी दी थी उस समय उसे राज्य से बाहर रहने का आदेश दिया गया था। इसी प्रकार राम राज्य की दूसरी अलमबरदार माया कोडनानी राज्य की महिला एवं शिशु विकास मंत्री थीं यह आज भी जेल में हैं। इनके पिता राष्ट्रीय स्वयं संघ के सक्रिय कार्यकर्ता व अध्यापक थे। कोडनानी भी बाल्यकाल से ही संघ की महिला शाखा राष्ट्रीय सेविका समिति से जुड़ गईं थीं। गोया सांप्रदायिक आधार पर नफरत होना इनके संस्कारों में समा चुका था। यहां तक कि बड़े होकर कोडनानी ने एमबीबीएस की शिक्षा ग्रहण की तथा डॉक्टर बनीं। और अपना निजी नर्सिंग होम चलाया। गोया लोगों की जान बचाना इनका पेशा था। परंतु बचपन से संस्कारों में मिली समुदाय विशेष से नफरत की शिक्षा ने इन्हें इस स्थिति तक पहुंचा दिया कि कोडनानी ने मंत्री पद पर रहते हुए गुजरात दंगों के दौरान नरोदा पाटिया नामक नरसंहार में 98 लोगों को जि़ंदा जलाए जाने के अमानवीय घटनाक्रम में दंगाई भीड़ को उकसाया। कोडनानी आज उसी आरोप में राज्य के विश्व हिंदू परिषद् नेता जयदीप पटेल व अन्य कई अरोपियों के साथ जेल में है। यहाँ यह भी गौरतलब है कि माया कोडनानी लालकृष्ण अडवाणी की भी खास सहयोगी हैं तथा 1960 में गठित गुजरात राज्य की पहली सिंधी समुदाय की मंत्री थीं।

इसी प्रकार नरेंद्र मोदी के एक अन्य सहयोगी हरेन पांडया जोकि गुजरात दंगों के समय राज्य के गृहमंत्री थे, का भी बड़े ही रहस्यमयी ढंग से 2003 में उस समय कत्ल हो गया जबकि वे सुबह की सैर करने के बाद कार में बैठकर अपने घर वापसी करने वाले थे। हरेन पांडया के परिजनों को आज तक उनकी मौत को लेकर संदेह बरकरार है। हालांकि इस प्रकरण में कई लोगों को सज़ा भी हो चुकी है। परंतु पांडया की हत्या को लेकर संदेह की सुई न केवल नरेंद्र मोदी की ओर घूमी थी बल्कि लाल कृष्ण अडवाणी भी इस विषय पर आलोचना के केंद्र बने थे। दरअसल गोधरा कांड के बाद सत्ताईस फरवरी 2002 को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के निवास पर जो बैठक बुलाई गई थी उसके विषय में हरेन पांडया व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को ‘सबकुछ’ पता था। इस मीटिंग के ‘गुप्त एजेंडे’ पर संजीव भट्ट व पांडया ने परस्पर चर्चा भी की थी। कहा जाता है हरेन पांडया नरेंद्र मोदी के उस एकतरफा रुख से सहमत नहीं थे जोकि नरेंद्र मोदी ने गोधरा हादसे के बाद गुजरात दंगों को लेकर अपनाया। पांडया की इस असहमति के बाद संजीव भट्ट ने पांडया को सचेत रहने व उनपर संभावित खतरों से भी आगाह किया था। परंतु इसके बावजूद पांडया की सुरक्षा नहीं बढ़ाई गई और आिखरकार उनकी हत्या कर दी गई। इस प्रकरण में कानून भले ही नरेंद्र मोदी को माफ कर अन्यों को सज़ा क्यों न दे दे परंतु समाज व पांडया परिवार की ओर से संदेह की सुई नरेंद्र मोदी पर जाकर टिकती है। और मोदी कभी उससे बरी नहीं हो सकेंगे।

गोधरा में जि़ंदा जलाए गए कारसेवकों की लाशों को गोधरा से अहमदाबाद मंगाकर तथा बाद में पूर्ण नियोजित तरीके से उन लाशों को एक-एक कर जुलूस की शक्ल में उनके घरों तक पहुंचाकर जिस प्रकार नरेंद्र मोदी ने गुजरात में सांप्रदायिक दंगों की राज्यव्यापी उपजाऊ ज़मीन तैयार की तथा बाद में स्वयं नियंत्रण कक्ष में बैठकर लोगों को जि़ंदा जलाए जाने व पूरी-पूरी बस्तियां व गांव उजाड़े जाने का खेल देखते रहे वह स्थिति न तो सांस्कृति राष्ट्रवादी कहे जाने योग्य है न ही इसे रामराज्य का उदाहरण समझा जा सकता है। इस प्रकार की राजनैतिक व प्रशासनिक कार्यशैली निश्चित रूप से पूरी तरह से गैर संवैधानिक, अमानवीय व अनैतिक है। बड़ा आश्चर्य है कि ऐसे विध्वंसकारी प्रवृति के व्यक्ति को देश का एक वर्ग भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रहा है।

9 COMMENTS

  1. डाक्टर राजेश कपूर से पूर्ण सहमत.अभी भी अगर हम आपसी भेद भाव भुला दें तो बहुत कुछ हो सकता है.आवश्यकता है वैसा वातावरण तैयार करने की.प्रश्न यह उठता है की पहल कौन करे?

  2. तनवीर जी आपने प्रो. मधुसूदन जी के प्रश्नों और विमलेश जी आदि की एक भी बात का तर्कसंगत तो क्या, कैसा भी उत्तर नहीं दिया. अर्थात आपके पास इन तर्कों का उत्तर नहीं है.? यानी आपने लेख में जो कहा वह सही नहीं है ? …….. बड़े महत्व की एक जानकारी का स्मरण मैं अपने हिन्दू और मुस्लिम बंधुओं को दिला देना चाहता हूँ. ……….जब-जब हिन्दू और मुस्लिम आपस में टकराते हैं या एक दूसरे के विरुद्ध कटु भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो कुछ ताकतें हैं जो बहुत प्रसन्न होती है. ये वे ताकतें हैं जिन्हों ने अमेरिका के ट्विन टावर को गिराने का प्रबंध किया, गो ह्त्या का आरोप मुस्लिमों के सर मढ़ा (१८५७ के बाद ), हिन्दू- मुस्लिमों में द्वेष भड़काने के अनगिनत प्रयास किये. इन्हें न पहचाना तो सारी मुस्लिम कौम को बलि का बकरा बना कर ये मरवा डालेंगे और हिन्दुओं को कमज़ोर बना कर स्वयं समाप्त कर देंगे, आज भी कर रहे है. ये जो भी हैं, उनकी पहचान का काम पाठक स्वयं करने का प्रयास करें…. मेरे पास अपनी बाक्त सिद्ध करने के सैंकड़ों प्रमाण हैं जिन्हें ज़रूरत होने पर प्रस्तुत किया जा सकेगा. अतः जाफरी जी मेरी प्रार्थना है की हिंदू और मुस्लिम इन गुप्त शत्रुओं को पहचानें और आपस में विद्वेष को बढ़ावा देने से बचें.

  3. सिंह साहब आप से एक बिनती कर सकता हूँ?
    या तो कार्य कारण वाद (अरस्तु का या अन्य कोई) और न्याय शास्त्र (नीति शास्त्र) का साध्य और साधन का सन्दर्भ देख लें| तो आपका और मेरा समय बचेगा, और कुछ तात्विक चर्चा कर पाएंगे| इससे समय व्यर्थ नहीं होगा|

  4. डाक्टर मधुसुदन जी ,पता नहीं डॉ. बिजु मॅथ्यु आपके गणित वाले प्रश्न को सुनकर क्यों कन्नी काट गए? जद्यपि मैं नर संहार को गणितीय अनुपात में नहीं देखता तथापि यह सत्य है कि गुजरात का नर संहार गणितीय अनुपात से भी अधिक था.मुझे जैसा याद है डब्बे में आग से साठ कर सेवक मरे थे,पर प्रतिक्रिया स्वरूप मरने वाले मुसलमानों की संख्या हजार से ऊपर थी. मेरे विचार से तो यह सम्पूर्ण मृत्यु संख्या (हिन्दू+मुस्लिम)हैवानों द्वारा की गयी इंसानों की हत्या थी और इसको जायज ठहराना उस इंसानियत से हटना है जिसकी शिक्षा हमारा हिन्दू दर्शन देता है.और जो हमारी संस्कृति और सभ्यता का आधार है.

  5. मुसलमानोँ ने हिन्दुओँ को मारा वो ठीक पर हिन्दुओँ ने बदला लिया वो गलत?इन मुल्लोँ ने 47से अब तक लाखोँ हिन्दुओँ को मार दिया वो सही पर साढ़े आठ सौ? मुसलमान मर गये वो गलत?तीस हजार मंदिरो को तोड़ने वाले आज पाचसो साढ़े पाच सौ मस्जिदोँ को हिसाब माँग रहे हैँ?मोदी का तो क्या बिगाड़ेगे अगर गुजरात के ढ़ाईलाख हिन्दु मुसलमानोँ जो मोदी के साथ फास्ट मेँ बैठे बीस लाख जो प्रभात फेरी मेँ निकले की नाद सुनते तो ये बकवास ना लिखते।

  6. तनवीर भाई: आपसे ऐसी अपेक्षा नहीं थी। { द्वेष नहीं फैलाना चाहता, निम्न पढें}
    एक डॉ. बिजु मॅथ्यु–एक युनिवर्सिटी, में मोदी विरोधी भाषण देने आए थे।
    और आप जैसी ही बाते बोले।
    (१) उनसे पूछा कि, एक सरल गणित प्रश्न पूछूं ?
    बोले पूछिए।
    (२) तो मैं ने कहा। गुजरात में हिन्दु-मुसलमानों की संख्या का अनुपात ९०% H: १०% M है; H=हिन्दु और M=मुस्लिम मानिए।
    (३) और, मानिए कि, हिन्दु और मुसलमान समान रूपसे क्रोधित हुए, तो हिन्दू की हिंसा की क्षमता मुसलमान की हिंसा क्षमता से ९ गुना ही होंगी।
    प्रश्न: तो. ऐसा फिर क्यों नही हुआ? आंकडे सच बोल देंगे।

    तो मुझे बादमें मिलिए, कह कर, दूसरे को उत्तर देने लगे।
    डॉ. बिजु मॅथ्यु असंबद्ध भाषण कर के पीछले द्वार से ही निकल भागे।
    आपके लिए प्रश्न:
    तनवीर जी आप बुद्धिमान है, अब बताइए कि ऐसा क्यों नहीं हुआ?
    दूसरा प्रश्न: कश्मीर में इससे उलटा अनुपात है। वहां तो लगभग सारे हिन्दुओं को भगा दिया गया।
    तो ऐसा क्यों हुआ?
    ईमानदारी से उत्तर दीजिए।
    सारे मुसलमानों का भला भी हिन्दु राष्ट्र में ही होगा। लिखके रखिए।

  7. तनवीर जाफरी ….आखिर जिस पार्टी को तुम सांप्रदायिक कह रहे हो उसी पार्टी के बाचपेयी जी ने मोदी जी की खिलाफत की जबकि आज तक किसी कोर्ट ने उन्हें दोषी नहीं माना और दूसरी तरफ अपनी और अपनी कौम की हकीकत देख लो जिसने अभी तक न तो साबरमती में कारसेवकों को जलाने को अफसोसजनक माना और ना ही कश्मीर से पंडितों के कत्ले आम को..अगर साबरमती की घटना के बाद मुस्लिम तलवारों में धार लगाने की जगह हिन्दुवों के घावों पर मरहम लगाते तो हिन्दुवों को प्रतिक्रिया करने का मौका ही न मिलता वैसे भी हिन्दू स्वाभाव से भावुक होता है, पृथ्वीराज और गोरी से लेकर आज तक बहुत से उदहारण हैं… .धर्म निरपेक्षता की बात करने वालों को ये भी देखना चाहिए की क्या एक भी मुस्लिम बहुल देश धर्म निरपेक्ष है…भारत भी धर्म निरपेक्ष तभी तक है जब तक हिन्दू बहुसंख्यक है वर्ना फिर शर्म निरपेक्ष होने में देर नहीं लगेगी. मोदी जी जैसे शेर को अमरीका का समर्थन नहीं चाहिए….अमरीका के समर्थन के लिए पाकिस्तानी व्याकुल रहते है हिन्दुस्तानी नहीं ये वही अमरीका है जिसने कभी ओसामा बिन लादेन और सद्दाम हुसैन को भी समर्थन दिया था….

  8. जाफरी साहव आपमें और देश के घटिया मुसलमानों मैं कोई फर्क नहीं है.मोदी पर अमेरिका ने प्रतिबन्ध लगा दिया कोई बात नहीं कल हटा लेगा. आप क्यों दुबले हुए जाते है.आपको गुजरात का दंगा दिखाई देता है जबकि वह दंगा था ही नहीं वह जनता की प्रतिक्रिया थी गोधरा की बजह से, आपको कश्मीर नहीं दिखाई पड़ता जहा के लाखो पंडित विस्थापित है आप मोदी को पानी पी पी कर कोसिये उसका कुछ नहीं होने बाला हां आपको एक सलाह है थोड़ी अपनी मानसिकता सुधारिए देश बहुत तरक्की करेगा. और आपको यह चैता क्यों है की अमेरिका ने पर्त्बंध लगा दिया मोदी पर .यहाँ केवल एक मोदी पर प्रतिबन्ध है आपकी पूरी कोम को अमेरिका हिकारत भरी नज़रो से देखता है .मेरा प्रधान मंत्री डाक्टर हनीफ की गिरफ़्तारी पर रात भर सो नहीं पता, सोनिया जी जेहाडियो की फोटो पर रोने लगती है लेकिन शहीद मोहन चन्द्र शर्मा के लिए सलमान खुर्शीद, दिग्विजय. और मनमोहन जी एक शब्द नहीं कहते. तब जनता को खुद अपनी प्रतिक्रिया करनी पड़ती है जिसे आप जैसे लोग दंगा कहते है.लेकिन यह दंगा नहीं है .लोगो का आक्रोस है जो कही न कही निकलता है

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