जब तक जनता धर्म के नाम पर भड़केगी तब तक नेता वोट लेते रहेंगे।

ये लोग पांव नहीं ज़ेहन से अपाहिज हैं, उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है…

-इक़बाल हिंदुस्तानीriots

यूपी के डीजीपी देवराज नागर यह देखकर हैरान हैं कि मुज़फ्फरनगर में जिन हिंदू मुस्लिम नेताओं ने ज़हरीले भाषण देकर दंगा कराया और पाक की वीडियो सीडी कवाल की बताकर लोगों को भड़काया उनके समुदाय के लोग आज भी उनको अपना हीरो मान रहे हैं। 50 से ज्यादा लोग मर गये सैंकड़ों ज़ख़्मी हो गये और हज़ारों आज भी राहत कैम्पों में अपना घरबार छोड़कर पड़े हैं जिनके पीछे उनके घर लूटकर जला दिये गये फिर भी अपना हमदर्द मसीहा और रहनुमा उनको ही मान रहे हैं जो इस सारे फसाद की जड़ हैं। कमाल की एकता है धर्म के नाम पर कि सारी पार्टियों के लीडर दलों की सीमायें तोड़कर एक मंच पर जमा हो गये थे। विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने खुलेआम दावा किया है कि लव जेहाद वालों को मु.नगर में गुजरात की तरह ठीक सबक सिखा दिया गया है।

वे भूल रहे हैं कि गुजरात दंगों का भूत आज तक मोदी का पीछा नहीं छोड़ रहा है। उनके कई मंत्री और अफसर कई साल से जेल में पड़े हैं। दंगों में हिंदुओं का भी काफी नुकसान हुआ था। ऐसा लगता है कि डा0 राहत इंदौरी ने सही कहा है कि ये लोग पांव नहीं जे़हन से अपाहिज हैं, उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है और जब तक इनका अपना दिमाग साफ होकर काम नहीं करेगा तब तक सरकार, पुलिस और बुध्दिजीवी कितना ही समझाना चाहें ये लड़ते रहेेंगे कटते रहेेंगे मरते रहेेंगे। एक स्टिंग आप्रेशन में आरोप लगाया गया है कि सपा सरकार के वरिष्ठ मंत्री आज़म खां ने दंगे के दौरान सरकारी मशीनरी को ठीक से काम नहीं करने दिया।

मुज़फफरनगर दंगे मंे खां की भूमिका की जांच आयोग और विधानसभा की संयुक्त समिति करेगी, अगर वे कसूरवार पाये जाते हैं तो बेशक उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही होनी चाहिये लेकिन एक चैनल के स्टिंग आप्रेशन में अगर एक पत्रकार पूर्वाग्रह से खुद एक दारोगा के मंुह में ज़बान डालने की नीयत से आज़म खां का नाम लेता है तो बिना उनके मोबाइल की कॉल डिटेल निकाले यह उनके खिलाफ कार्यवाही का पर्याप्त आधार नहीं बनता है। खुद सीएम अखिलेश ने माना है कि अधिकारी उनकी सरकार की बात सुनने का तैयार नहीं हैं। मुलायम सिंह का दावा है कि कुछ अधिकारी सरकार को बदनाम करने के लिये यह सब कुछ कर रहे हैं। खां

के आरोपों से घिरने पर कुछ लोग पूछते हैं कि सपा सरकार में केबिनेट मिनिस्टर आज़म खां इतने तुनक मिज़ाज क्यों हैं कि आयेदिन किसी ना किसी बात पर नाराज़ होते रहते हैं और सपा में ही हैं, इस्तीफा भी नहीं देते।

कोई माने या ना माने आज़म सपा का मुस्लिम चेहरा बन चुके हैं। 2009 में लोकसभा चुनाव में जब वे सपा से ख़फ़ा हो गये थे तो सपा का नाराज़ मुस्लिम वोट कांग्रेस के साथ चला गया था जिससे सपा और कांग्रेस लगभग बराबर सीटों पर आ गये थे। इस बार आज़म खां की नाराज़गी मुज़फ्फरनगर दंगों में पुलिस प्रशासन की काहिली और पक्षपात के साथ गिने चुने मुस्लिम आईपीएस को किनारे करने पर थी। 20 जुलाई को 18 आईपीएस के तबादलों में बाराबंकी के एसपी वसीम अहमद और शामली के एसपी अब्दुल हमीद को भाजपा नेताओं के दबाव में अखिलेश द्वारा बिना आज़म खां से सलाह लिये पीएसी में भेज देने पर थी।

बाद में मुलायम ने इस भूल को सुधारते हुए अखिलेश को आज़म के घर भेजा और वसीम को शाहजहांपुर और हामिद को हाथरस का एसपी बनाया गया लेकिन ईमानदार और दबंग आज़म खां इस ज़िद पर अड़ गये कि हामिद को शामली का ही एसपी बनाया जायेगा क्योंकि मुसलमानों के तुष्टिकरण का झूठा आरोप लगाने वाली भाजपा कौन होती है हामिद का मुसलमान होने की वजह से तबादला कराने वाली? इस मुद्दे पर आज़म खां नहीं अड़ते तो कौन मानता उनको मुसलमानों का नेता? सही या गलत सभी नेता और दल ऐसा ही कर रहे हैं। सबको पता है कि मुजफफरनगर के दंगे में सबसे अधिक भड़काने वाले भाषण भाजपा विधायकों ने दिये हैं। उनके एक विधायक पर पाकिस्तान की एक सीडी कवाल की बताकर इंटरनेट पर डालने का भी आरोप है लेकिन वे पुलिस के हाथों जेल ना जाकर खुद सरेंडर करने में सफल रहे।

दूसरी तरफ भाजपा नेत्री उमा भारती का दावा है कि आरोपी भाजपा विधायक बेकसूर हैं उनको फर्जी फंसाया जा रहा है। बहुत खूब दूसरी पार्टी के विधायक दोषी उनको पकड़ लो लेकिन ये भाजपाई खुद तय करेंगे कि ये दोषी नहीं है। जब किसी मुस्लिम को आतंकवाद के आरोप में पकड़ा जाता है तो भाजपा कहती है कि वह आतंकवादी है उसको बचाव के लिये वकील भी नही दिया जाना चाहिये और जब अपने विधायकों पर आरोप हो तो खुद एलान कर दो कि हम दोषी नहीं है। क्या बात पुलिस और कानून पर विश्वास नहीं है क्या भाजपा को?? यह काम कोई और करता तो देशद्रोही होता??? यूपी पुलिस ने राष्ट्रपति को ही गच्चा दे दिया तो आम आदमी क्या है? राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी कुछ दिन पहले यूपी के कानपुर शहर के दौरे पर आये थे।

उनकी सुरक्षा के लिये तैनात पुलिस वाले थाने में आमद दर्ज कराकर कहीं और मौज मस्ती करने को निकल गये। बाद में जब इस गड़बड़ी और पुलिस के दुस्साहस का खुलासा हुआ तो जांच शुरू हुयी। अब आप सोचिये कि अगर प्रेसीडेंट के साथ कोई अप्रिय घटना घट जाती तो क्या होता? बात इतनी ही नहीं है बल्कि सवाल यह उठ रहा है कि जब पुलिस देश के सबसे बड़े मुखिया के साथ ऐसा कर सकती है तो वह आम आदमी के साथ क्या सलूक करती होगी? लगता है जंगल राज चालू है??? पिछले दिनों उद्योगपतियों के एक सम्मेलन में यूपी के सीएम अखिलेश सिंह ने यह कहकर सबको चौंका दिया था कि प्रदेश के अधिकारी उनकी बात भी सुनने को तैयार नहीं है। इससे पहले यह शिकायत मिली थी कि अधिकारी मंत्री, सांसद और विधायकोें तक के फोन रिसीव नहीं ही नहीं करते।

वे अकसर यह बहाना बना देते हैं कि कह दो कि मीटिंग में हैं। इसके बाद सरकार ने इस बारे में बाकायदा ऑर्डर जारी किया कि जो अधिकारी अपना सीयूजी फोन बंद रखेंगे या अटैंड नहीं करेंगे और बैठक के बाद कॉलबैक नहीं करेंगे उनके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी। इससे पहले एक आदेश यह भी जारी हो चुका है कि अफसर जनप्रतिनिधियों को प्रोपर रेस्पांस अपने कार्यालय आने या सार्वजनिक स्थानों पर अवश्य दें नहीं तो उनको बख़्शा नहीं जायेगा। उधर उच्च न्यायालय बार बार अधिकारियों के कोर्ट ना आने और पारित किये गये आदेश पर अमल ना करने से उनके वारंट जारी करने पर मजबूर हो चुका है।

अब इन हालात से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि यूपी में अफसरशाही की मनमानी और भ्रष्टाचार की क्या हालत है? यह अलग बात है कि ऐसे में हरियाणा के अशोक खेमका जैसे चंद मेहनती और ईमानदार व योग्य अफसरों की नेताओं ने उल्टी बाट लगा रखी है। यूपी में दुर्गा नागपाल का मामला अभी पुराना नहीं हुआ है। ऐसा लगता है जब तक जनता जागरूक नहीं होगी तब तक नेता ऐसा ही करते रहेंगे। पब्लिक को एक ना एक दिन लीडर से यह सवाल पूछना होगा।

न इधर उधर की बात कर यह बता क़ाफिला क्यों लुटा,

मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।।

 

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

2 COMMENTS

  1. आपने आजम खान को निर्दोष साबित करने के लिए इतना बड़ा लेख लिख मारा है लेकिन सच्चाई आपको भी अच्छे से मालूम है की आजम जिन्ना बनने की राह पर है सारी गलती भाजपा नेतावों पर डाल कर कठमुल्लों को बेदाग बरी कर दिया जिन्होने 2-2 हत्या करने के बाद भी नमाज के बाद भड़काऊ भाषण दिये, अगर वीडियो फर्जी भी था तब भी इस बात मे कहीं भी दो राय नहीं की उन दो जाट लड़को की हत्या बड़ी ही निर्मम तरीके से की गयी थी जिसकी रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की गयी और सारे हत्या आरोपियों को पुलिस ने पकड़ने के बाद भी किसी के दबाव मे छोड़ दिया अब आप उसका भी दोष भाजपा पर लगा दो की उनके कहने पर ही पुलिस ने छोड़ा होगा, इसके अलावा भी जिन दंगा आरोपी मौलाना को स्पेसल प्लेन से अखिलेश ने लखनऊ बुलाया था वो भी भाजपा के ही इशारे पर ही था, आपने इस लेख से शामली के एसपी अब्दुल हमीद की तरह साबित कर दिया की आप भी मुसलमान पहले है बाकी कुछ बाद मे, सेकुलरी का कीड़ा बस हिन्दुवों को ही काटता है।

  2. इक़बाल भाई, आपने जो कुछ कहा है उसमे कुछ बातों को छोड़ दें तो ज्यादातर सही हैं.लेकिन एक बात जिस पर कोई नहीं बोल रहा है की आखिर झगडे की शुरुआत क्यों हुई?क्या ये झूठ है की झगडा कुछ मुस्लिम लड़कों द्वारा हिन्दू लड़कियों को छेड़ने के कारण हुआ जब उनके भाईयों ने प्रतिवाद किया.ये लड़कियों को छेड़ने की घटनाएँ जिन्हें लव जिहाद के नाम से जाना जा रहा है इन्हें रोकने के लिए क्यों नहीं बिरादरी के लोग अपनी आवाज बुलंद करते हैं?केरल में तो उच्च न्यायालय तक इस पर रोक लगाने के लिए निर्देश दे चूका है.लेकिन किसी भी मुस्लिम नेता ने इसकी निंदा नहीं की है.आपने भी नहीं.कौन भाई अपनी बहनों का अपमान बर्दाश्त कर सकता है?और अगर करता है तो वो भाई कहलाने योग्य नहीं है.आखिर इसीलिए तो बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बाँधती हैं.अशोक सिंघल ने गुजरात से तुलना अगर की है तो वो उम्र के कारण जबान का फिसलना मात्र है.उसका ज्यादा महत्व नहीं है.लेकिन ये सही है की अगर वक्त रहते कौम के बुजुर्गों और समझदार लोगों ने इस पर अंकुश लगाने के लिए गंभीरता से प्रयास नहीं किये तो इस समस्या के और भी दुष्परिणाम हो सकते हैं.जिस पर विचार करना चाहिए.

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